अरब दुनिया में आई क्रांति की लहर की तरह शुरू हुआ अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन अब एक अलग दिशा में जाता दिख रहा है. यह दिशा बिखराव और साख में गिरावट की है. गिरावट कई मोर्चों पर देखने को मिल रही है. पहला मोर्चा तो एकजुटता का ही है. कश्मीर पर प्रशांत भूषण के बयान के बाद उनके साथ कुछ लोगों द्वारा हुई मारपीट के बाद बाकी टीम ने इस कृत्य की भर्त्सना तो की मगर साथ ही यह भी जोड़ा कि भूषण को कोई भी बयान देने से पहले भली-भांति सोच लेना चाहिए. फिर टीम अन्ना के एक और चर्चित सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र कुमार यह कहते हुए इससे अलग हो गए कि अरविंद केजरीवाल इसमें अपनी तानाशाही चला रहे हैं. अभी हाल ही में टीम के एक और सदस्य कुमार विश्वास ने अन्ना को पत्र लिखकर लोकपाल पर बनी कोर कमेटी को भंग करने की मांग कर डाली. यह बता रहा है कि टीम अन्ना की सीवन उधड़ रही है.
टीम के सदस्यों की नैतिकता पर भी सवाल उठ रहे हैं. आंदोलन के एक और जाने-माने चेहरे किरण बेदी के बारे में ढाई दर्जन ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें आरोप लगा है कि उन्होंने अपने आयोजकों से हवाई टिकट के असल खर्चे से ज्यादा रकम वसूली. उन्होंने इकोनॉमी क्लास में सफर किया और बिजनेस क्लास का भाड़ा वसूल किया. उधर अरविंद केजरीवाल पर आरोप लग रहे हैं कि वे चंदे की राशि का हिसाब नहीं दे रहे. दूसरी तरफ, हिसार उपचुनाव में टीम अन्ना द्वारा कांग्रेस के विरोध के बाद इस आंदोलन से जुड़े वे लोग भी पसोपेश में हैं जो अब तक आंदोलन को पूरी तरह से अराजनीतिक मानकर इसमें निष्ठा से हिस्सा ले रहे थे.
भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुए इस आंदोलन के बारे में अब यह भी कहा जा रहा है कि लोकपाल के लिए शुरू हुआ आंदोलन अपनी दिशा से भटकने लगा है. आंदोलन को एकजुट रखने की चुनौतियों, इसकी आगे की दिशा और इसे चला रही टीम पर लग रहे तमाम आरोपों पर अरविंद केजरीवाल से तहलका संवाददाता अतुल चौरसिया और रेवती लाल की बातचीत के अंश :
इंडिया अगेन्स्ट करप्शन (आईएसी) ने हिसार चुनाव में लोकपाल को मुद्दा क्यों बनाया?
हिसार के कुछ लोग चुनाव से पहले मुझसे आकर मिले थे. उन्होंने मुझसे कहा कि हिसार चुनाव में लोकपाल को मुद्दा बनाना चाहिए.
लेकिन आपने इसे क्यों स्वीकार किया? यह तो आपके अपने विचारों का विरोधाभास ही दिखाता है. आप लोग हमेशा इसे अराजनीतिक आंदोलन कहते आ रहे थे.
हमने कभी नहीं कहा कि हम राजनीतिक नहीं हैं. हमने हमेशा कहा कि यह आंदोलन राजनीतिक है लेकिन पार्टी पॉलिटिक्स से परे है. यह चुनावी राजनीति नहीं है, यह जनता की राजनीति है.
आखिर यह चुनावी राजनीति कैसे नहीं है?
आप इसे चुनावी राजनीति कह सकते हैं, लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता. मैं इसे तब चुनावी राजनीति मानता जब मैं खुद चुनाव लड़ता.
अब यह मान लिया जाए कि आईएसी मौजूदा सरकार और कांग्रेस के खिलाफ है क्योंकि आंदोलन की शुरुआत में जब संयुक्त मसौदा समिति बनी थी तब आप बार-बार कहते थे कि यह आंदोलन सरकार और कांग्रेस के खिलाफ नहीं है. हम अभी भी कांग्रेस और सरकार के खिलाफ नहीं हैं.
हम अभी भी कांग्रेस और सरकार के खिलाफ नहीं हैं
लेकिन आपने हिसार उपचुनाव से लेकर बांदा और लखनऊ की रैलियों में कांग्रेस को हराने की अपील की.
हम कांग्रेस के खिलाफ नहीं हैं. यह संयोग है कि कांग्रेस इस समय केंद्र में सरकार में है. बिल पास करना उनकी जिम्मेदारी है. हिसार चुनाव के बाद प्रधानमंत्री ने अन्ना को पत्र लिखकर बताया कि वे सशक्त लोकपाल बिल लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और संसद के शीतकालीन सत्र में इसे पेश किया जाएगा. अगर यह पत्र 10 दिन पहले आ जाता तो हम हिसार में अभियान नहीं चलाते. जब कांग्रेस ने हमें शीतकालीन सत्र में बिल लाने का पत्र देने से इनकार कर दिया तब हमारे मन में संदेह पैदा हुआ.
लेकिन रामलीला मैदान में आपने आंदोलन यह कहते हुए समाप्त किया था कि आपकी जीत हुई है और सरकार शीतकालीन सत्र में बिल पास करेगी. करोड़ों लोग इस बात के गवाह हैं.
यह कहां से पता चला आपको? जब अन्ना ने रामलीला मैदान में अनशन तोड़ा और संसद ने हमें पत्र दिया उसमें ‘शीतकालीन सत्र’ शब्द का कोई जिक्र नहीं था.
आपके मुताबिक जब अन्ना ने अपना अनशन तोड़ा तब भी आपकी जीत नहीं हुई थी?
यह आंशिक जीत थी.
तो आपने उसी वक्त लोगों को क्यों नहीं बताया कि यह आंशिक जीत है? अगर आपको लगता था कि सरकार के वादे में कुछ खोट है तो आपने उसी वक्त लोगों को जानकारी क्यों नहीं दी?
अन्ना ने अपना अनशन यह कहकर शुरू किया था कि जन लोकपाल बिल को मानसून सत्र में पेश किया जाना चाहिए. जब हमारी सरकार से बातचीत शुरू हुई उस वक्त तक लाखों लोगों के सड़क पर उतरने के बावजूद सरकार हमें तवज्जो नहीं दे रही थी. हम जिसे 10 दिन का मान रहे थे वह आंदोलन सरकार के अड़ियल रवैये के कारण लंबा खिंचता गया. अंत में जब सरकार के साथ सहमति बनी तो स्वाभाविक रूप से सबने मान लिया कि शीतकालीन सत्र में ही बिल आएगा. यह एक गलतफहमी है.
गलतफहमी क्यों है?
क्योंकि जब हमने हिसार उपचुनाव से पहले सभी पार्टियों से यह स्वीकृति मांगी कि वे शीतकालीन सत्र में जन लोकपाल बिल लाएंगे तब कांग्रेस ने इससे इनकार कर दिया. तब हमारे मन में यह आशंका जन्मी कि क्या ये लोग वास्तव में बिल लाने के इच्छुक हैं क्योंकि पहले भी ये लोग कई बार अपने बयानों से मुकर चुके हैं. हिसार उपचुनाव के बाद जब प्रधानमंत्री ने अन्ना को पत्र लिखा तो अन्ना ने उत्तर प्रदेश अभियान स्थगित करने का फैसला किया. पहले उनका उत्तर प्रदेश में 15 अक्टूबर से यात्रा का कार्यक्रम था.
तो फिर आप बार-बार उत्तर प्रदेश में यात्राएं क्यों कर रहे हैं?
हम लोगों को बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री ने अन्ना को पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने आश्वासन दिया है कि सरकार शीतकालीन सत्र में मजबूत लोकपाल बिल लाएगी. अगर सरकार अपने वादे से मुकरती है तो अन्ना जी फिर से कांग्रेस को वोट न देने की अपील जारी करेंगे.
आप कुलदीप बिश्नोई की जीत का श्रेय अपने अभियान को देंगे?
नहीं. हम किसी एक उम्मीदवार को समर्थन नहीं दे रहे थे. जब सुषमा स्वराज ने वहां लोगों से कहा कि अन्ना की टीम बिश्नोई के समर्थन में अभियान चला रही है तब हमने हर सभा में लोगों को बताया कि हमारा उनसे कोई लेना-देना नहीं है.
जब भाजपा इंडिया अगेन्स्ट करप्शन और जन लोकपाल बिल का समर्थन कर रही है तो फिर आप भाजपा के खिलाफ क्यों हैं?
हम किसी के खिलाफ नहीं है. मुद्दा यह है कि सत्ताधारी पार्टी को बिल पास करना है, इसलिए हमारा ध्यान उस पर है.
लोकपाल को संवैधानिक संस्था बनाए जाने के राहुल गांधी के विचार को आप किस रूप में देखते हैं? क्या इसे जन लोकपाल के पक्ष में मानते हैं?
देखते हैं. अगर सरकार लोकपाल को संवैधानिक संस्था बनाना चाहती है तो हमें कोई आपत्ति नहीं है. सबसे महत्वपूर्ण है एक मजबूत कानून.
रामलीला मैदान से लेकर हिसार चुनाव के दरमियान आईएसी के सदस्य जाने-माने चेहरे बन चुके हैं. साथ ही आप लोगों के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रियाएं भी देखने को मिली हैं. आपके ऊपर जूता, प्रशांत के ऊपर हमला. आपको लगता है कि जनता में आपके खिलाफ गुस्सा है?
इसका जवाब आपके सवाल में ही छिपा है. हम लोग जो कुछ भी कहते हैं उसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है.
कश्मीर पर प्रशांत भूषण के बयान के बाद आईएसी कोर कमेटी के सदस्यों के बीच मतभेद उभर आए हैं?
हां, उन्होंने खुद ही कहा है कि ये उनके निजी विचार हैं. ज्यादातर कोर कमेटी के सदस्यों के विचार उनसे भिन्न हैं और उन्होंने इसका सम्मान भी किया है.
ठीक बात है, लेकिन किसी सार्वजनिक स्थान पर अपना व्यक्तिगत विचार भी सार्वजनिक ही माना जाता है. क्या इन मतभेदों के चलते भूषण कोर कमेटी से अलग होने के लिए तैयार थे?
कभी नहीं.
लखनऊ में आपके ऊपर जूता फेंकने वाले को आईएसी के सदस्यों ने जमकर पीटा. यह क्या कहानी थी?
जब उसे पीटा गया तब मैं मंच पर नहीं था. लेकिन मैंने न सिर्फ अपनी टीम से कहा बल्कि मैं खुद उसे पिटाई से बचाने के लिए गया.
आपका आंदोलन जिस ऊंची नैतिकता का हवाला दे रहा था अब उस पर भी सवाल उठ रहे हैं. आपकी सबसे अहम सहयोगी किरण बेदी पर हवाई यात्रा के टिकटों की कीमत से ज्यादा किराया वसूलने के आरोप लग रहे हैं. इकोनॉमी दर्जे में सफर करके बिजनेस दर्जे का किराया वसूलने के आरोप लग रहे हैं.
हमारा आंदोलन बेहद अहम पड़ाव पर है. हमारे ऊपर हर तरफ से आरोपों की बौछार हो रही है. चरित्र हनन से लेकर मारपीट तक हो रही है. पर हम फिर भी मजबूती से खड़े हैं.
लेकिन आपको नहीं लगता कि इस तरह की धोखाधड़ी के आरोपों से घिरे किसी व्यक्ति को भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करने का अधिकार नहीं है?
120 करोड़ लोगों से पूछ लीजिए जो इस आंदोलन का हिस्सा हैं. क्या वे सभी पूरी तरह से पाक-साफ हैं? और क्या इतने भर से उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का अधिकार नहीं रह जाता? क्या यही लोकतंत्र है?
आपके मुताबिक किरण बेदी के खिलाफ हवाई टिकटों में घालमेल के जो आरोप लगे हैं, क्या वे गलत हैं?
जांच कर लीजिए. मैं इस चक्कर में नहीं पड़ना चाहता क्योंकि सरकार की शायद यही मंशा है. आप देखिए, इसका क्या असर हो रहा है. हमारी प्रेस वार्ताओं और सभाओं में आने वाले लोग अब जन लोकपाल की बात नहीं करते, वे किरण बेदी की बात करते हैं, प्रशांत और कश्मीर की बात करते हैं, अरविंद केजरीवाल के इन्कम टैक्स नोटिस की बात करते हैं. सबका ध्यान ही भटका दिया गया है. अगर किरण या अरविंद ने कोई गलत काम किया है तो उनकी जांच कीजिए, उन्हें सजा दीजिए.
इन दिनों आंदोलन में फूट की खबरें भी आ रही हैं. राजेंद्र सिंह ने यह आरोप लगाते हुए कोर ग्रुप छोड़ दिया कि हिसार चुनाव में हिस्सा लेने के फैसले से वे सहमत नहीं थे. कौन आ रहा है, कौन जा रहा है इसका पता कैसे चलेगा?
जिस समय संयुक्त मसौदा समिति बनी थी उस समय इसमें पांच लोग थे- अन्ना, मैं, प्रशांत, शशि भूषण और संतोष हेगड़े. इसके अलावा किरण बेदी और स्वामी अग्निवेश बाहर से समर्थन दे रहे थे. वह दौर खत्म होने के बाद संगठन को व्यापक और संगठित करने की जरूरत थी. इसी के मद्देनजर कोर कमेटी का निर्माण हुआ. लेकिन राजेंद्र सिंह और पीबी राजगोपाल ने कोर कमेटी की एक भी बैठक में हिस्सा नहीं लिया. मुझे विश्वास है कि अगर उन लोगों ने एक भी बैठक में हिस्सा लिया होता तो उनके जाने की नौबत नहीं आती.
रामलीला मैदान में अन्ना के अनशन के दौरान स्वामी अग्निवेश और संतोष हेगड़े से आप लोगों का क्या विरोध हुआ था?
टीम के सदस्यों के बीच हमेशा से विचारों का मतभेद था और यह होना भी चाहिए.
हिसार चुनाव में उतरने को लेकर टीम के बीच मतभेद थे? अंतिम फैसला किसका था?
कोर कमेटी के ज्यादातर लोग हिसार में विरोध करने के पक्ष में थे. एक बात मैं साफ कर दूं. कोर कमेटी के अलावा एक वर्किंग कमेटी भी है. कोर कमेटी तो 24 लोगों की है और इसके सदस्य देश भर में फैले हैं. इसलिए हमें एक वर्किंग कमेटी की जरूरत पड़ी जिसके सभी सदस्य दिल्ली के निवासी हों ताकि किसी आपात स्थिति में तत्काल कोई पैसला लिया जा सके. इसमें छह लोग हैं- मैं, प्रशांत भूषण, मनीष सिसोदिया, किरण बेदी, अरविंद गौर और गोपाल राय.
ऐसा लगता है कि वर्किंग कमेटी से उन लोगों को बाहर रखा गया है जिनके विचार अलग हो सकते हैं?
ऐसा नहीं है. इसका निर्माण तत्काल निर्णय लेने के लिए किया गया है. इसका गठन अन्ना के गांव रालेगन सिद्धी में हुआ था.
स्वामी अग्निवेश के साथ क्या मतभेद थे?
मेरे खयाल से उनकी सीडी इसकी वजह रही. वे खुद छोड़कर गए. हमने उन्हें नहीं निकाला. मैं इस चक्कर में नहीं पड़ना चाहता कि सीडी सही थी या गलत.
आप मानेंगे कि जो टीम इस समय आईएसी के लिए काम कर रही है वह कमोबेश आपके अपने एनजीओ का ही विस्तारित रूप है. और इस समय आंदोलन की जो रूपरेखा है उसमें आपकी भूमिका ही सबसे अधिक है.
इसे समझने की जरूरत है. यह कोई दिल्ली आधारित आंदोलन नहीं है. यह राष्ट्रव्यापी है. इसमें मीडिया, एसएमएस, सोशल नेटवर्किंग की भी अपनी भूमिका है. हमारा दायित्व सिर्फ कार्यालयी सहयोग मुहैया करवाना है. हम निर्णायक नहीं है. फैसले लेने का अधिकार इससे अलग है.
तो इसे एकजुट रखने का काम अन्ना करते हैं या आप?
मेरे खयाल से अन्ना. अन्ना हमारे नेता है. मैं उन्हें सिर्फ दफ्तरी मदद उपलब्ध करवाता हूं.
आरोप है कि आप आंदोलन को मनमाने तरीके से चला रहे हैं, आप खुद से असहमति रखने वालों को बर्दाश्त नहीं करते.
मुझे नहीं पता कि इस तरह की बातें कौन फैला रहा है. ऐसा कुछ भी नहीं है.
तो आप कहना चाहते हैं कि आंदोलन पर आपके नियंत्रण की बातें गलत हैं?
बिल्कुल. ये बिल्कुल बेबुनियाद आरोप हैं. अगर किसी आंदोलन का नेतृत्व समावेशी नहीं होगा तो वह आगे नहीं बढ़ पाएगा. इस आंदोलन की ताकत 120 करोड़ लोग हैं. इनके सामने कोर कमेटी और वर्किंग कमेटी की कोई हैसियत नहीं है.
ये 120 करोड़ का आंकड़ा कहां से मिला?
यह जनता का आंदोलन कहने का एक तरीका है.
(सोनाली घोषाल और जननी गणेशन के सहयोग के साथ)