क्या हैं अदालत द्वारा दिए गए राजनीतिक सुधारों के चर्चित फैसले?
सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले के अनुसार आपराधिक मामलों में दोषी सिद्ध होते ही किसी भी सांसद या विधायक की सदस्यता निरस्त हो जाएगी. साथ ही ऐसे विधायक या सांसद चुनाव लड़ने से भी तब तक प्रतिबंधित हो जाएंगे जब तक उन्हें ऊपरी अदालत से दोषमुक्त नहीं किया जाता. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों को भी चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया है जो नामांकन के दौरान जेल में या पुलिस हिरासत में हों. एक अन्य निर्णय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश में होने वाली जाति आधारित राजनीतिक रैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया है.
अब तक क्या थे संबंधित प्रावधान?
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(4) के मुताबिक अब तक किसी विधायक या सांसद को सजा होने पर भी उसकी सदस्यता से निलंबित नहीं किया जा सकता था. दोषी सिद्ध होने के तीन महीने के भीतर यदि विधायक या सांसद ऊपरी अदालत में अपील या पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दे तो उसे चुनाव लड़ने से भी प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता था. अब सर्वोच्च न्यायालय ने इस धारा को ही निरस्त कर दिया है. इसके साथ ही अब तक जेल में होते हुए भी कोई व्यक्ति चुनाव लड़ सकता था. इस पर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 4, 5, और 62(5) की साथ में व्याख्या करते हुए कोर्ट ने माना कि जब जेल में या पुलिस हिरासत में होने के चलते व्यक्ति का मतदान का अधिकार निरस्त हो जाता है तो उसे चुनाव लड़ने का अधिकार कैसे दिया जा सकता है.
कोर्ट के फैसले में विवाद क्या है?
जेल या पुलिस हिरासत में बंद लोगों को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने पर विवाद खड़ा हो गया है. राजनीतिक दलों का तर्क है कि न्यायालय द्वारा दोषी सिद्ध होने तक व्यक्ति को निर्दोष ही माना जाता है. ऐसे में किसी को भी पहले ही प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता. इस प्रावधान का दुरुपयोग होने की भी संभावना कुछ लोग जता रहे हैं. इनका मानना है कि सत्ता पक्ष में बैठे लोग अपने विरोधियों को नामांकन के दौरान झूठे मामलों में पुलिस से गिरफ्तार कराके कर ही चुनावी प्रक्रिया से बाहर करवा सकते हैं.
राहुल कोटियाल