महाराष्ट्र में रातोंरात ‘तख्तापलट’ के बाद भाजपा के साथ मिलकर एनसीपी के वरिष्ठ नेता और पार्टी प्रमुख के भतीजे अजित पवार के सीएम देवेंद्र फडणवीस के साथ डिप्टी सीएम का पद संभालने के बाद सियासी भूचाल ला दिया था। इसमें नैतिकता और संविधान की अब तक कि उड़ी धज्जियों को कहीं पीछे छोड़ दिया गया था।
बाजी पूरी तरह सीनियर पवार यानी शरद पवार के हाथ में आ गई थी। उन्होंने खुद को न सिर्फ मराठा चाणक्य साबित किया, बल्कि सियासत के बड़े बड़े सूरमाओं को पटकनी दे दी। या कहें कि सांप भी मार लिया और लाठी भी नहीं टूटी। इसके लिए पवार ने सियासी के साथ पारिवारिक रिश्तों को भी अहमियत दी।
परिवारिक सहानुभूति के लिए ख़ून का रिश्ता याद दिलाया। और इसमें अजित की चाची से लेकर परिवार में खूनी रिश्ते में डोर रहने वाली ओर सबसे करीबी तीन बुआओं का सहारा लिया। और इसमें कामयाब भी हुए।
परिवार और पार्टी में वापसी कराने में घर की चार बड़ी महिलाओं ने बड़ी भूमिका निभाई है। इन महिलाओं में शरद की पत्नी प्रतिभा का तो योगदान था ही, लेकिन उनकी बहनें यानी अजित की तीन बुआएं – सरोज ताई पाटिल, रजनी ताई सांसणे और मीना ताई जगताप ने इमोशनली कोशिश कर उन्हें भाजपा का साथ छोड़ने पर मजबूर कर दिया। बुआओं ने अजित पवार को कहा, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पर परिवार नहीं टूटना चाहिए। और आखिर मराठी अजित महिलाओं के आगे पिघलने को मजबूर हो गए।