
ऐसा दो वजहों से हो सकता है. यदि भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को सरकार बनाने के लिए जरूरी सीटें न मिलें. और दूसरी, यदि राजग के वर्तमान सदस्यों की कुल सीटें इतनी हों कि उन्हें सरकार बनाने के लिए अन्य कई पार्टियों के समर्थन की दरकार हो. तब हो सकता है कि विवादित छवि के चलते मोदी को समर्थन देने वाली पार्टियां भाजपा को उतनी आसानी से न मिलें. ऐसे में भाजपा मोदी के स्थान पर प्रधानमंत्री पद के लिए किसी और का नाम आगे बढ़ा सकती है.
सवाल उठता है कि तब मोदी की राजनीति में फिर क्या बचेगा? क्या उसके बाद भी मोदी उतने ही आक्रामक और प्रभावशाली रह जाएंगे जितने वे आज हैं? क्या प्रधानमंत्री नहीं बन पाने की स्थिति में नरेंद्र मोदी वापस गुजरात चले जाएंगे? या वे राष्ट्रीय राजनीति में अपने लिए एक नई भूमिका तलाशेंगे? उनके प्रतिद्वंद्वियों, समर्थकों, पार्टी और उद्योग जगत के लिए तब किस तरह की परिस्थितियां जन्म ले सकती हैं?
जानकारों का एक वर्ग मानता है कि अगर मोदी इस बार प्रधानमंत्री नहीं बन पाते हैं तो फिर यह उनके राजनीतिक जीवन का बेहद मुश्किल समय होगा. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं, ‘2009 लोकसभा की हार से आडवाणी जी अभी तक उबर नहीं पाए. ऐसे में अगर मोदी इस बार प्रधानमंत्री नहीं बने तो फिर उनका भविष्य अंधकारमय ही नजर आता है. अगले पांच सालों में काफी कुछ बदल जाएगा.’
अगर 16 मई के बाद मोदी के लिए अच्छे दिन नहीं आए तो उनके राजनीतिक करियर पर ग्रहण लगने के विचार से राजनीति के वरिष्ठ जानकार शरत प्रधान भी सहमत नजर आते हैं, ‘वर्तमान चुनावी परिदृश्य को देखते हुए यह लगता तो नहीं है कि मोदी का रथ रुकने वाला है. लेकिन मोदी इस बार प्रधानमंत्री नहीं बने तो उनका पूरा राजनीतिक करियर खतरे में आ जाएगा. जिस तरह की चौतरफा हाइप उन्होंने बना रखी है, ऐसे में अगर वे प्रधानमंत्री नहीं बन पाते हैं तो किसी लायक नहीं बचेंगे. ’
एक तरफ जहां प्रधानमंत्री न बन पाने की स्थिति में मोदी के राजनीतिक जीवन पर ग्रहण लगने की बात की जा रही है, वहीं दिल्ली से लेकर गुजरात तक के राजनीतिक हलकों में इस बात की भी चर्चा है कि पीएम न बन पाने की स्थिति में मोदी वापस गुजरात चले जाएंगे. और वहां मुख्यमंत्री बनें रहेंगे. ऐसा सोचने के पीछे बड़ा कारण यह है कि मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री का पद अभी तक छोड़ा नहीं है. गुजरात भाजपा के एक नेता कहते हैं, ‘मोदी जी ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा नहीं दिया है. ऐसे में यह क्यों माना जाए कि वे पीएम नहीं बनें तो सीएम भी नहीं रहेंगे. वे अभी सीएम तो हैं ही. इसमें गलत क्या है? ’
विभिन्न राजनीतिक बहसों में अब इस बात की भी चर्चा है कि यदि मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने की कोई संभावना न हो लेकिन एनडीए अपने पुराने साथियों या अन्य पार्टियों के साथ सरकार बनाने की स्थिति में आ सकता हो तो ऐसे में क्या होगा? क्या ऐसे में भाजपा के लिए मोदी के स्थान पर किसी और को प्रधानमंत्री बनाना आसान होगा?
रशीद इस संभावना में कई पेंच देखते हैं, वे कहते हैं, ‘अगर ऐसा होता है तो बगावत की सूरत तैयार हो जाएगी. पूरा चुनाव पार्टी ने मोदी के नेतृत्व में उनके नाम पर लड़ा है. ऐसे में जितने भी सांसद जीत कर आएंगे वे सभी मोदी के नाम पर ही आएंगे, ऐसे में वे मोदी के अलावा किसी और को वे शायद ही स्वीकार करें.’ हालांकि टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व संपादक दिलीप पडगांवकर मोदी के अलावा भाजपा से किसी और के प्रधानमंत्री बनने की संभावना से इंकार नहीं करते. वे कहते हैं, ‘ मोदी बहुत व्यावहारिक राजनेता हैं. अगर उस आदमी को लगा कि वो तो पीएम नहीं बन सकता लेकिन किसी और के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन सकती है. तो फिर वो खुद आगे बढ़कर किसी और को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव दे सकता है. ऐसे में सोनिया-मनमोहन जैसा सिस्टम विकसित होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता. जिसमें प्रधानमंत्री एक रबर स्टैंप की तरह काम करे और सोनिया की तरह मोदी असल सत्ता का केंद्र बने रहें.’
शरत प्रधान भी पडगांवकर की बात से सहमत से लगते हैं जब वे कहते हैं, ‘ इतना माहौल बनाने के बाद केंद्र की राजनीति में न आकर राज्य में वापस जाना मोदी के लिए एक बेहद शर्मनाक घटना होगी. ऐसे में यह भी संभव है कि मोदी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाएं.’
हालांकि भाजपा नेताओं से बात करने पर वे ऐसी किसी भी संभावना से इंकार करते हैं. भाजपा के एक उपाध्यक्ष कहते हैं, ‘एक चीज आप समझ लीजिए, मोदी जी अगर प्रधानमंत्री नहीं बने तो वे किसी और को भी बनने नहीं देंगे. या तो वो पीएम बनेंगे या पार्टी विपक्ष में बैठेगी, जिसमें वे नेता प्रतिपक्ष बनकर शासन करने वाले की नाक में दम कर देंगे. वे ऐसे आदमी नहीं हैं कि अगर खुद पीएम नहीं बन पाए तो किसी और का नाम आगे बढ़ा दें. ’
राजनीति को देखने समझने वालों का एक तबका ऐसा भी है जो पूरी तरह से इस बात को स्वीकार कर चुका है कि मोदी का अब सिर्फ शपथग्रहण होना बाकी है. ऐसे ही लोगों का प्रतिनिधित्व गुजरात के वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक देवेंद्र पटेल करते हैं. वे कहते हैं, ‘मोदी का प्रधानमंत्री बनना 100 फीसदी तय है. भाजपा अपने दम पर बहुमत के आंकड़े को छू लेगी.’
हालांकि देवेंद्र पटेल के इस आशावाद पर प्रश्न उठाने वालों की कमी नहीं है. वरिष्ठ पत्रकार अजय बोस कहते हैं, ‘ भाजपा के भीतर ही ये बात शुरू हो चुकी है कि पार्टी की हालत उतनी भी ठीक नहीं है जितना ढिंढोरा पीटा जा रहा है. ऐसी चर्चा हो रही है कि आंकड़ा 170-180 के पार नहीं जा पाएगा. ऐसे में मोदी के पीएम बनने की संभावना पर प्रश्न बना हुआ है.’
अजय यह राय भी रखते हैं कि अगर मोदी पीएम नहीं बने तो वे ऐसा नहीं करेंगे कि अपना बोरिया बिस्तर बांधकर अमित शाह के साथ गुजरात चले जाएं. वे कहते हैं, ‘ये आदमी यहीं दिल्ली में रहेगा लेकिन पहले की तरह आक्रामक और प्रभावशाली नहीं रह पाएगा. क्योंकि जैसे ही आक्रामक होने की वे कोशिश करेंगे भाजपा के नेता उनसे पूछ बैठेंगे कि तुमने तो कहा था कि तुम्हारी सूनामी चल रही है. 300 सीट लेकर आओगे. कहां गईं वे सीटें?’
भाजपा के नेताओं और मुख्यमंत्रियों पर असर
मोदी के प्रधानमंत्री न बन पाने की स्थिति में भाजपा के मुख्यमंत्रियों के और मजबूत होने की संभावना भी जताई जा रही है. रशीद कहते हैं, ‘मोदी अगर पीएम नहीं बने तो जाहिर सी बात है उनके साथी मुख्यमंत्री मजबूत होंगे. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे नेता और मजबूती से चमक के साथ उभरेंगे.’
भाजपा के मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तीन बार मुख्यमंत्री बनने के साथ ही लालकृष्ण आडवाणी के करीबी होने के कारण भी चर्चा में रहे हैं. आडवाणी ने पूर्व में कई बार न सिर्फ मोदी और शिवराज की तुलना की है बल्कि कई बार भाजपा के लौहपुरुष ने सार्वजनिक मंच से शिवराज सिंह के काम को मोदी से बेहतर भी ठहराया है. पिछले साल भाजपा के संसदीय बोर्ड में मोदी और चौहान को शामिल करने की चर्चाएं गर्म थीं. हालांकि अंत में सिर्फ मोदी को बोर्ड का सदस्य बनाया गया. ऐसा भी कहा गया कि लालकृष्ण आडवाणी शिवराज को बोर्ड में शामिल करने के पक्षधर थे. मोदी के पीएम न बनने की स्थिति में आडवाणी के समर्थन से शिवराज के और मजबूत होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
शिवराज के साथ ही भाजपा के अन्य मुख्यमंत्रियों- छत्तीसगढ के रमन सिंह, राजस्थान की वसुंधरा राजे, गोवा के मनोहर पार्रिकर आदि के भाजपा में और ऊपर उठने के आसार बनेंगे.
मुख्यमंत्रियों के अलावा भाजपा के अन्य दूसरी पंक्ति के नेताओं जैसे सुषमा स्वराज आदि की स्थिति भी मजबूत होगी जिन पर मोदी उदय के बाद अंधकार छाया हुआ है. भारतीय जनता पार्टी जो फिलहाल इतनी अधिक मोदी केंद्रित हो गई है कि चर्चाओं में उसे लोग मोदी जनता पार्टी बुला रहे हैं. उस पार्टी के अन्य नेता मोदी के सीन से हटने की स्थिति में न सिर्फ राहत की सांस लेंगे बल्कि सभी के सामने उम्मीदों का एक नया रास्ता खुलेगा.
राजनाथ सिंह
मोदी के पीएम न बनने की स्थिति में भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के लिए छींका फूट जाने की प्रबल संभावना जताई जा रही है. अमित शाह को अगर छोड़ दें तो मोदी के प्रति वफादारी दिखाने के मामले में राजनाथ सिंह का स्थान सबसे ऊपर है. कहा जा रहा है कि इस वफादारी के पीछे राजनाथ सिंह का अपना यह गणित है कि अगर किसी कारण से मोदी पीएम नहीं बन पाते हैं और भाजपा में किसी और के प्रधानमंत्री बनने की संभावना पैदा होती है तो मोदी उनका नाम आगे बढ़ा देंगे. इस वजह से राजनाथ सिंह पिछले कई महीनों से मोदी के कहे अनुसार सबकुछ कर रहे हैं. मोदी की हर बात का समर्थन करने, उनकी हर इच्छा का पालन करने से लेकर राजनाथ ने हर संभव तरीके से मोदी को यह समझाना चाहा है कि कैसे उनके खुद के अलावा कोई और उन्हें पीएम देखने को बेकरार है तो वह सिर्फ राजनाथ ही हैं. भाजपा के बाकी अन्य नेताओं से जहां समय-समय पर मोदी को प्रतिद्वंदिता की बू आती रहती है, वहीं राजनाथ सिंह ने तमाम ऐसे जतन किए हैं जिससे मोदी को उनसे किसी तरह की प्रतिद्वंद्विता का अहसास न हो.
भाजपा के कुछ नेता भी बातचीत में इस बात को स्वीकार करते हैं कि कैसे मोदी के पीएम न बनने की स्थिति में रेस में सबसे आगे राजनाथ ही होंगे. शरत कहते हैं, ‘राजनाथ ये सोच रहे हैं कि मोदी के न बन पाने की स्थिति में उनका नंबर आ जाएगा. क्योंकि सहयोगियो को राजनाथ से कोई आपत्ति नहीं होगी. उनकी कट्टर हिंदूवादी नेता की छवि भी नहीं है, पिछले कुछ समय से खुद को वाजपेयी जैसा दिखाने का उनका प्रयास भी जारी है. संघ से संबंध भी ठीक हैं. ऐसे में मोदी की तरफ से हरी झंडी मिलने के बाद राजनाथ का राजयोग चमक सकता है.’
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लालकृष्ण आडवाणी
पिछले कुछ समय में भाजपा में मोदी का किसी नेता से सबसे अधिक संघर्ष रहा तो वह उनके राजनीतिक गुरु रहे लालकृष्ण आडवाणी ही हैं. गुरु और शिष्य के बीच तल्खी का आलम यह रहा कि जिस गोवा की भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में मोदी को लोकसभा चुनावों के लिए चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया जाना था, उसमें आडवाणी शामिल तक नहीं हुए. पार्टी ने कहा कि आडवाणी जी की तबीयत खराब है इसलिए वे बैठक में नहीं आए, उन्होंने मोदी जी को प्रचार समिति का अध्यक्ष बनने पर शुभकामना दी है. लेकिन पार्टी का यह झूठ उस समय सामने आ गया जब अगले ही दिन आडवाणी ने पार्टी के सभी पदों से न सिर्फ इस्तीफा दे दिया बल्कि यह आरोप भी लगाया कि कैसे पार्टी के अधिकतर नेता इस समय अपने निजी एजेंडे के तहत काम कर रहे हैं.
खैर, कई दिनों की मान-मनुहार और संघ के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया. उसके बाद जब दिल्ली के भाजपा दफ्तर में मोदी को भाजपा का पीएम उम्मीदवार घोषित किया गया तो उस कार्यक्रम से भी आडवाणी दूर रहे. हाल के दिनों में मोदी और उनकी टीम चाहती थी कि आडवाणी लोकसभा छोड़ राज्यसभा को अपना ठिकाना बनाएं लेकिन वयोवृद्ध आडवाणी लोकसभा चुनाव लड़ने पर अड़ गए. यह मामला निपटा तो अगला विवाद लोकसभा सीट को लेकर खड़ा हो गया. आडवाणी भोपाल से लड़ना चाहते थे क्योंकि उन्हें संदेह था कि कहीं उनका शिष्य गांधीनगर से लड़ने पर उनकी हार की साजिश न रच दे. खैर पार्टी ने आडवाणी की नहीं सुनी और उन्हें गांधीनगर से ही संतोष करना पड़ा.
लौहपुरूष कहे जाने वाले आडवाणी के भीतर 2009 में प्रधानमंत्री न बन पाने का मलाल तो है ही साथ में किसी तरह एक बार पीएम बन जाने की उनकी ख्वाहिश भी किसी से छुपी नहीं है. ऐसे में अगर मोदी प्रधानमंत्री बनने से चूकते हैं तो क्या आडवाणी का प्रधानमंत्री बनने का सपना परवान चढ़ सकता है?
राजनीतिक उठापठक को समझने वाले लोगों का आकलन है कि मोदी के न बन पाने की स्थिति में अगर किसी और भाजपा नेता की पीएम बनने की संभावना बनती है तो उसमें लालकृष्ण आडवाणी सबसे आगे हैं. अजय बोस कहते हैं, ‘आडवाणी भाजपा, यहां तक कि भारतीय राजनीति में भी, सबसे वरिष्ठ, अनुभवी और सक्रिय नेता हैं. सुलझे हुए व्यक्ति हैं, साथ में मॉडरेट भी हैं. उनके कद का कोई दूसरा सक्रिय राजनीति में नहीं है. सभी से उनके संबंध अच्छे हैं. यहां तक कि गांधी परिवार तक से उनके संबंध मधुर हैं. ऐसे में मोदी के बाद की स्थिति में वे सबसे मजबूत दावेदार हैं.’
‘गठबंधन के लोगों के लिए बूढ़ा और सक्रिय राजनीति के अंत की तरफ पहुंच चुका राजनेता ज्यादा मुफीद होता है. ऐसे व्यक्ति से अपना काम कराना और उससे निपटना बेहद आसाना हो जाता है’ आडवाणी के रेस में आगे होने की एक और वजह का उल्लेख करते हुए अजय बोस कहते हैं, ‘अटल जी गठबंधन के लोगों को इसीलिए पसंद थे. वे अपना राजनीतिक जीवन जी चुके थे. चला-चली के समय में परायों से भी प्रेम ही किया जाता है. ऐसे आदमी के बारे में माना जाता है कि वे नुकसान नहीं पहुंचाएगा.’
लेकिन क्या संघ और भाजपा के नेता इसके लिए तैयार होंगे? बोस कहते हैं, संघ तो इनके नाम पर तैयार नहीं होगा हालांकि भाजपा के नेता मजबूरन उनके कद के कारण दबाव में साथ देते नजर आएंगे.
संघ
मोदी को लेकर संघ में शुरु से ही एक तबका ऐसा था जो उन्हें प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाने के खिलाफ था. मोदी की खिलाफत करने वाले इस तबके की संघ में अच्छी खासी तादाद है. मोदी का विरोध करने वाले इस वर्ग का मानना था कि मोदी ने गुजरात में 12 साल के अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में संघ को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया. मोदी के कार्यकाल में संघ के कार्यकर्ताओं पर गुजरात पुलिस ने खूब लाठियां भांजी, किसी तरह की सुविधा उन्हें स्वंयसेवक रहे मुख्यमंत्री के कार्यकाल में नहीं मिली और संघ की विचारधारा के खिलाफ जाते हुए न सिर्फ मोदी ने पूरी सत्ता अपने हाथों में ले ली बल्कि संगठन से भी वे बड़े हो गए. ऐसा व्यक्ति अगर प्रधानमंत्री बनता है तो वह संघ के साथ पूरे देश में वही दोहराएगा जो उसने गुजरात में किया है. इस तबके के विरोध के बावजूद पॉपुलर मूड को भांपते हुए संघ ने मोदी को पीएम पद का प्रत्याशी बनाने के लिए हरी झंडी दे दी.
अब ऐसी स्थिति में अगर 16 मई को परिणाम आने के बाद मोदी पीएम नहीं बन पाते हैं तो इसका संघ पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
शरत कहते हैं, ‘ ये तो साफ है कि मोदी को संघ नापसंद करता है. ऐसे में मोदी के पीएम न बनने पर उसे किसी तरह का कष्ट नहीं होगा.’
संघ के नेता और पांचजन्य के पूर्व संपादक बदलेव शर्मा कहते हैं, ‘संघ पर इस बात का रत्तीभर भी कोई असर नहीं पड़ेगा कि मोदी पीएम बनते हैं या नहीं. या भाजपा की सरकार आती है या नहीं. संघ सत्ता से संचालित नहीं होता है. संघ के काम पर कोई असर नहीं होगा. संघ पिछले 80 सालों से काम कर रहा है. इतने वर्षों में तो विरोधी ताकतें ही सत्ता पर काबिज रही हैं. ’
हालांकि सूत्र बताते हैं कि मोदी के रेस से बाहर होने की स्थिति में संघ राजनाथ सिंह या नितिन गड़करी का नाम आगे बढ़ा सकता है.
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मोदी समर्थक भाजपा कार्यकर्ता
वे भाजपा के कार्यकर्ता ही थे जिनके दबाव में पार्टी को मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाना पड़ा. मोदी के प्रत्याशी घोषित होने के बाद से अभी तक भाजपा कार्यकर्ताओं की सक्रियता चरम पर है. सोशल मीडिया से लेकर जमीन पर फैले ये कार्यकर्ता ही मोदी की असली ताकत हैं. ऐसे में अगर ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है कि मोदी पीएम नहीं बन पाएंगे तो इस पर इन कार्यकर्ताओं-समर्थकों की क्या प्रतिक्रिया होगी.
भाजपा कार्यकर्ता और मोदी चालीसा लिखने वाले मेरठ के रमेश जायसवाल कहते हैं, ‘हम तो इसकी कल्पना ही नहीं कर सकते. ऐसा हुआ तो लोग पागल हो जाएंगे. मोदी के अलावा किसी और को प्रधानमंत्री बनाया तो कार्यकर्ता बगावत कर देंगे. हम कार्यकर्ता किसी और को पीएम नहीं बनने देंगे. आप मेरी बात मानिए पार्टी टूट जाएगी. लोग प्रत्याशियों को नहीं बल्कि मोदी को वोट कर रहे हैं. ऐसे में इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. मोदी के अलावा किसी और को कार्यकर्ता स्वीकार नहीं करेगा.’
शरत कहते हैं, ‘ये सही ही है कि कार्यकर्ताओं में मोदी को लेकर भाव है लेकिन एक सीमा के बाद कार्यकर्ता की चलती नहीं है. अगर ऊपर बैठे लोग निर्णय कर लेंगे तो बेचारे कार्यकर्ता के पास उसे मानने के अलावा कोई और चारा नहीं होगा.’
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग)
मोदी के प्रधानमंत्री नहीं बनने का राजग पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? क्या उसका विस्तार होगा ? क्या और पार्टियां भाजपा से जुडेंगी? क्या वे पार्टियां राजग में वापस आएंगी जो मोदी के कारण उससे दूर जा चुकी हैं? क्या ममता और नीतीश मोदी के सीन से बाहर होने की स्थिति में फिर से राजग का दामन थाम सकते हैं?
जानकार इस बात को स्वीकार करते हैं कि मोदी के सीन से बाहर होने की स्थिति में एनडीए के पुराने साथी भाजपा के प्रति जरूर कुछ नरमी बरत सकते हैं. शरत प्रधान कहते हैं, ‘इसकी पूरी संभावना है कि मोदी के फ्रेम से बाहर होने की स्थिति में एनडीए से बाहर चल रहे दल उसकी तरफ फिर से हाथ बढ़ाएं. ऐसे में एनडीए के विस्तार होने और उसके फिर से मजबूत होने की संभावना बनती है.’
हालांकि जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता केसी त्यागी ऐसी किसी भी संभावना से इंकार करते हैं. वे कहते हैं, ‘अटल बिहारी वाजपेयी और जॉर्ज फर्नाडिंस के बीच जो लिखित समझौता हुआ था वो खत्म हो गया है. भाजपा ने अपने घोषणापत्र में इस बार राममंदिर, धारा 370 और समान नागरिक संहिता को शामिल किया है. पूरे चुनाव को भाजपा ने सांप्रदायिक बना दिया है. इस भाजपा से हमारा कोई रिश्ता नहीं हो सकता. ’
लेकिन अगर भाजपा मोदी की जगह किसी और को पीएम बनाने की बात करती है तो क्या जदयू उसका समर्थन करेगी? त्यागी कहते हैं, ‘हम किसी भी सूरत में भाजपा को सपोर्ट नहीं करेंगे. सिर्फ मोदी ही नहीं हमें लगता है कि पूरी भाजपा अब सांप्रदायिक हो चुकी है. ऐसे में चुनाव परिणाम आने के बाद पार्टी किसी को आगे करे, हम उसका समर्थन नहीं करेंगे. चाहें वो राजनाथ सिंह हों या फिर लालकृष्ण आडवाणी’
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अर्थव्यवस्था
नरेंद्र मोदी के प्रति व्यापार जगत की दीवानगी किसी से छिपी नहीं है. जब भाजपा में मोदी की पहचान गुजरात के मुख्यमंत्री तक ही सीमित थी और उनको राष्ट्रीय स्तर पर लाने की कोई सुगबुगाहट तक नहीं थी, तभी देश के प्रमुख उद्योगपतियों ने उन्हें भारत के लिए जरूरी घोषित कर दिया था. रतन टाटा, अंबानी बंधु, अडानी, नारायणमूर्ति से लेकर न जाने कितने छोटे-बड़े उद्योगपति हैं जिन्होंने मोदी के गुजरात में किए गए काम की न खूब न प्रशंसा की बल्कि उसे भारत के लिए मॉडल भी बताया. उद्योगपतियों की तरफ से कहा गया कि मोदी को भारत का प्रधानमंत्री होना चाहिए. ऐसा होने पर जिस तरह का विकास उन्होंने गुजरात में किया है, जिस तरह से उद्योग-धंधे गुजरात में दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं, वैसा ही पूरे देश में होगा. यह भी कहा जा सकता है कि मोदी को पहले पीएम के तौर पर प्रोजेक्ट करने का काम उद्योगपतियों ने ही किया.
हाल के महीनों में चुनावी सर्वेक्षणों में भाजपा की जीत और मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं चरम पर पहुंच जाने के बाद भारतीय बाजार भी अपने चमक के सबसे ऊपरी पायदान पर है.
पिछले छह महीनों में भारत में विदेशी संस्थागत निवेश एक लाख 16 हजार करोड़ पहुंच चुका है. वहीं पिछले 23 अप्रैल को सेंसेक्स ने भी अपने इतिहास की सबसे ऊंची छलांग लगाई और 22913 के आंकड़े को छू लिया. निफ्टी भी 6862 के ऐतिहासिक ऊंचाई को छू पाने में सफल रहा.
मार्केट के कई जानकारों का ऐसा मानना है कि शेयर बाजार और निवेश की यह गुलाबी तस्वीर सिर्फ इस कारण से है कि मार्केट को पक्का विश्वास है कि मोदी 16 मई के बाद पीएम बनने वाले हैं. इस उम्मीद के कारण ही बाजार इस तरह बेहतर प्रदर्शन कर रहा है.
ऐसे में प्रश्न उठता है कि अगर मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन पाते हैं तो फिर बाजार की इस गुलाबी तस्वीर का रंग क्या होगा ?
बाजार के जानकार अभय शाह कहते हैं, ‘ देखिए मोदी के आने की उम्मीद में ही बाजार लहलहाता हुआ दिखाई दे रहा है. हालांकि जमीन पर कुछ हुआ नहीं है लेकिन सेंसेक्स, जो अर्थव्यवस्था का दर्पण होता है, बता रहा है कि मोदी के आने का अर्थतंत्र कितना बेसब्री से इंतजार कर रहा है. अगर किसी कारण से मोदी नहीं आ पाते हैं तो बाजार का चेहरा फिर से पीला पड़ जाएगा. अर्थव्यस्था के रिवाइवल की जो उम्मीद जगी थी वो खत्म हो जाएगी.’
बाजार को जानने वाले लोग बताते हैं कि मोदी के पीएम न बनने की स्थिति में कुछ समय तक सेंसेक्स आदि में भारी गिरावट देखी जाएगी. जैसे सेंसेक्स जो 22913 तक पहुंचा है वह 17 हजार पर आ सकता है. मोदी के पीएम न बनने की खबर पर बाजार बेहद नाकारात्मक प्रतिक्रिया देगा. बाजार को थोड़े समय के लिए गंभीर झटका लगेगा क्योंकि वह यह मान कर बैठा है कि अच्छे दिन आने वाले हैं क्योंकि मोदी आने वाले हैं. ’
शाह कहते हैं, ‘ मोदी की सरकार नहीं बनने की स्थिति में काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि फिर किसकी सरकार बनती है. अगर तीसरा मोर्चा आया जिसमें 10 प्रधानमंत्री के दावेदार होंगे या फिर कांग्रेस आई तो फिर बाजार गर्त में चला जाएगा.’
लेकिन अगर मोदी की जगह भाजपा का ही कोई और पीएम बनता है तब की स्थिति में क्या होगा?
इस सवाल का जवाब देते हुए अर्थशास्त्री भरत झुनझुनवाला कहते हैं, ‘ बाजार के गुलजार होने का कारण सिर्फ मोदी नहीं है. इसका बड़ा कारण सत्ता परिवर्तन की संभावना है. ऐसे में अगर मोदी पीएम नहीं बनते हैं और भाजपा से कोई और प्रधानमंत्री बनता है, तो उस स्थिति में भी बाजार की चमक बनी रहेगी. मोदी के न होने का कोई खास असर नहीं होगा. बाजार को एक स्थाई और प्रो मार्केट वाली सरकार चाहिए.