अगर खोटा हूं तो छोटा हूं

बहुचर्चित दिल्ली गैंग रेप के पांच आरोपितों में से एक ने जब बीते पखवाड़े अपने ‘किशोर’ होने का दावा करते हुए अपनी सुनवाई किशोर न्यायालय (जुविनाइल कोर्ट) में स्थानांतरित करने के लिए अपील की तो इस घटना ने वयस्क अपराधियों द्वारा किशोर न्याय अधिनियम (जुवेनाइल जस्टिस एक्ट) के दुरुपयोग की ओर साफ इशारा किया. तहलका ने जब यह मुद्दा खंगाला तो दिल्ली से लेकर बिहार तक ऐसे मामलों का पता चला जहां वयस्क अपराधियों ने इस कानून की आड़ लेकर बच निकलने की कोशिश की है. 

भारतीय किशोर न्याय अधिनियम के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के सभी आरोपितों की सुनवाई विशेष किशोर अदालतों में होती है. इन विशेष अदालतों में होने वाली सुनवाई के बाद किशोर अपराधियों को सामान्य बंदीगृह के बजाय सुधार-गृह भेजा जाता है. किशोरों के लिए सुधारवादी सोच के साथ बनाए गए इस कानून के मुताबिक जघन्यतम अपराधों के लिए मिलने वाली अधिकतम सजा के तौर पर किशोरों को अधिकतम तीन साल के लिए सुधारगृहों में रखा जाता है.  लेकिन कई मामले हैं जो बताते हैं कि किशोर आरोपितों के लिए बनाए गए इस अधिनियम के उदार प्रावधानों का फायदा उठाकर शातिर अपराधी  कठोर सजाओं से बचने और पुलिस को चकमा देने की भरसक कोशिशें कर रहे हैं.

 16 दिसंबर गैंग रेप मामले की दिल्ली की एक फास्ट ट्रैक अदालत में जारी सुनवाई के पहले ही दिन आरोपित विनय शर्मा के वकील एपी सिंह ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश योगेश खन्ना की अदालत में अपील दायर करते हुए चिकित्सीय जांच द्वारा अपने मुवक्किल की उम्र की पुष्टि करवाने की गुहार लगाई. अदालत के बाहर पत्रकारों से बातचीत में उनका कहना था, ‘विनय वयस्क नहीं, किशोर है इसलिए उनके मामले की सुनवाई किशोर अदालत में होनी चाहिए.

उसकी मां का कहना है कि परिवार ने विनय का दाखिला स्कूल में जल्दी करवाने के लिए उसकी पैदाइश मार्च, 1994 की दर्ज करवाई. उसकी असली जन्म तिथि एक मार्च 1995 है. उसकी हड्डियों की मेडिकल जांच करवाने से यह साबित हो जाएगा कि वह अवयस्क है.’  लेकिन कुछ ही घंटों में मेडिकल रिपोर्ट सामने आते ही साफ हो गया कि विनय की उम्र 19 साल है और यह अपील उसे कड़ी सजा से किसी तरह बचाने की तरकीब के तौर पर दायर की गई थी. दिल्ली गैंग रेप मामले में शामिल छह आरोपितों में से एक किशोर आरोपित की सुनवाई का मामला फिलहाल किशोर न्यायालय में है जबकि अन्य पांचों की सुनवाई फास्ट ट्रैक अदालत में चल रही है.

जानकार मानते हैं कि किशोर न्याय अधिनियम के बढ़ते दुरूपयोग के लिए कानून के क्रियान्वयन में बरती जा रही लापरवाहियां भी जिम्मेदार हैं

वयस्क अपराधियों द्वारा किशोर न्याय अधिनियम के दुरुपयोग से जुड़ा दूसरा बड़ा मामला तब सामने आया जब हाल ही में दिल्ली पुलिस ने नीरज बवाना नामक कुख्यात अपराधी से जुड़े हालिया अदालती निर्णय के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की. पुलिस आयुक्त (बाहरी दिल्ली) बीएस जायसवाल बताते हैं कि बवाना ने फर्जी दस्तावेज बनवाकर दिल्ली की रोहिणी अदालत में खुद को किशोर साबित करवा दिया था ताकि वह कम से कम वक्त में सुधारगृह से निकल सके.

वे कहते हैं, ‘फिरौती से लेकर हत्या और लूटपाट तक के कई मामलों में पुलिस को बवाना की  तलाश थी. सबसे पहले उसे 2008 में सुल्तानपुरी इलाके में हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया. उसने तभी किशोर होने के आधार पर अपना केस किशोर न्यायालय में शिफ्ट करने की अपील की थी, लेकिन अदालत द्वारा कागजात मांगने पर उसने अपनी अर्जी वापस ले ली.’ इसके बाद बवाना जमानत पर बाहर आया और कुछ दिन बाद फिर हत्या के आरोप में हरियाणा के रोहतक में गिरफ्तार हुआ.

इस बार वह ओपन स्कूल में दाखिले के फर्जी दस्तावेज दिखाकर अपने आपको किशोर साबित करने में सफल हो गया और हरियाणा अदालत ने मामला हरियाणा किशोर न्यायालय के सुपुर्द कर दिया. आगे जोड़ते हुए बीएस जायसवाल कहते हैं, ‘भारत की किसी भी अदालत में दिया गया फैसला हर दूसरी अदालत में मान्य होता है. इसी नियम के तहत बवाना ने खुद को रोहिणी की निचली अदालत से भी किशोर अदालत में स्थानांतरित करवा लिया. फिर जब हमने उस पर मकोका लगवाकर उसके पुराने दस्तावेजों की जांच की तो पता चला कि उसने खुद को बचाने के लिए फर्जी कागजात बनवाए थे ताकि वह अपनी उम्र कम साबित करके मामले को किशोर न्यायालय में ले जा सके और इतने जघन्य अपराध करने के बाद भी सिर्फ तीन साल सुधारगृह में गुजारकर बाहर निकल सके. लेकिन अब दिल्ली पुलिस ने निचली अदालत के निर्णय को चुनौती देते हुए हाई-कोर्ट में अपील दाखिल कर दी है और मामला विचाराधीन है.’

20 मार्च, 2012 को दिए गए एक महत्वपूर्ण निर्णय में ‘दिल्ली किशोर न्याय बोर्ड’ की प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट अनुराधा शंकर भारद्वाज ने पुलिस समेत किशोर न्याय अधिनियम के क्रियान्वयन से जुड़े सभी सरकारी अमलों को फटकार लगाई थी. उनका कहना था कि ढांचागत लापरवाहियों के चलते वयस्क किशोर न्याय अधिनियम की आड़ में सजा से बचने की कोशिश कर रहे हैं और बच्चों को बड़ों की अदालतों में धकेला जा रहा है. अपने निर्णय में वे लिखती हैं, ‘हमें हरसंभव कोशिश करके यह सुनिश्चित करना होगा कि वयस्क अपराधी आरोपी किशोर न्याय अधिनियम का फायदा न उठा पाएं और बच्चों को बड़ों की जेलों में न जाना पड़े.’ लेकिन इन तमाम हिदायतों के बाद भी खूंखार अपराधी लगातार किशोर न्याय अधिनियम को ढाल की तरह इस्तेमाल करके अदालती कार्यवाहियों को उलझाने और अपने आप को बचाने के प्रयास कर रहे हैं. ऐसा ही एक महत्वपूर्ण मामला बिहार के जमुई जिले में सामने आया है.

क्षेत्र में 19 बड़ी डकैतियों को अंजाम देने वाले गुलाबी यादव को स्थानीय जिला अदालत ने मेडिकल सर्टिफिकेट के आधार पर किशोर घोषित कर दिया. जिला अभियोजन अधिकारी ज्ञानचंद्र भारद्वाज और तत्कालीन जिला पुलिस अधीक्षक राम नारायण सिंह ने बिहार राज्य के महाधिवक्ता को पत्र लिखकर इस निर्णय में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की अपील भी की है. तहलका से बातचीत में भारद्वाज बताते हैं कि गुलाबी यादव क्षेत्र के सबसे कुख्यात अपराधियों में से एक है.

क्षेत्र में 19 बड़ी डकैतियों को अंजाम देने वाले गुलाबी यादव को स्थानीय जिला अदालत ने मेडिकल सर्टिफिकेट के आधार पर किशोर घोषित कर दियावे कहते हैं, ‘पहले वह अपने स्कूल के दाखिले के कागज लाया लेकिन वे खारिज कर दिए गए. लेकिन फिर 2011 में जिला न्यायालय ने उसे एक मेडिकल सर्टिफिकेट के आधार पर किशोर घोषित कर दिया. कानून के अनुसार आरोपी की मेडिकल जांच के दौरान एक रेडियोलॉजिस्ट का मौजूद होना जरूरी है  जबकि यहां पूरे क्षेत्र में एक भी रेडियोलॉजिस्ट नहीं है. जाहिर है कि आरोपी ने कम सजा और जल्दी बाहर निकलने के लिए फर्जी कागजात बनवाए थे. लेकिन इतने खूंखार अपराधी अगर कानून का दुरुपयोग करके बाहर आ गए तो वे आगे और मुसीबत खड़ी कर सकते हैं. इसलिए हमने तुरंत राज्य के महाधिवक्ता को पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के लिए पत्र लिखा.’ 

जानकार मानते हैं कि अपराधियों द्वारा किशोर न्याय अधिनियम के बढ़ते दुरुपयोग के पीछे कानून के क्रियान्वयन में बरती जा रही लापरवाही और पुलिस के साथ अपराधियों का बढ़ता गठजोड़ भी जिम्मेदार है. दिल्ली सरकार के महिला और बाल विकास विभाग के सहायक निदेशक पी खाखा का मानना है कि उम्दा कानूनों के लचर क्रियान्वयन की वजह से दुर्दांत अपराधी किशोरों के लिए बनाई गई न्याय प्रणाली का फायदा उठाने में कामयाब हो रहे हैं. वे कहते हैं, ‘दिल्ली के अंदर इस कानून से छेड़छाड़ करना हमेशा मुश्किल रहा है.

इसलिए अब अपराधी दूसरे राज्यों के किशोर न्याय बोर्डों में खुद को किशोर साबित करवा लेते हैं. बड़े पैमाने पर फैले भ्रष्टाचार की वजह से फर्जी स्कूल एडमिशन कार्ड बनवा पाना बहुत आसान हो गया है. ज्यादा हुआ तो हेडमास्टर को ताकत या पैसे के बल पर धमकाया जा सकता है कि वह बयान देने उपस्थित ही न हो या कह दे कि रिकार्ड ही गुम हो चुका है. अपराधी अपनी जिंदगी बचाने के लिए कई बार गवाहों को धमकाते भी हैं. दूर-दराज के क्षेत्रों में तो पुलिस भी अपराधियों के साथ साथ-गांठ कर अपराधी के फर्जी कागजात तैयार करवाने में मदद करती है. ऐसे में किशोर न्याय अधिनियम का सजा से बचने के शॉर्टकट के तौर पर इस्तेमाल तो होना ही था.’

लेकिन किशोरों के अदालती मामलों को लंबे समय से शामिल रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अनंत अस्थाना मामले का एक दूसरा पक्ष भी रखते हैं. उनके मुताबिक किशोर न्याय अधिनियम के दुरुपयोग की सबसे महत्वपूर्ण वजह है जन्म पंजीकरण कानून का ठीक से क्रियान्वयन नहीं हो पाना. तहलका से बातचीत में वे कहते हैं, ‘ आजकल वयस्क अपराधी किशोर न्याय अधिनियम का फायदा उठाने के लिए फर्जी दस्तावेज बनवाकर न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करने की बहुत कोशिश कर रहे हैं.

लेकिन किसी भी कानून का इतना दुरुपयोग तभी होता है जब उसके क्रियान्वयन में झोल हों. लेकिन हर अपराध से निपटने के अपने कानूनी तरीके हैं. ज्यादातर लोग शुरुआत में तो इस कानूनी उठा-पठक में शामिल हो जाते हैं लेकिन बाद में पकड़े जाते हैं. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर यह समस्या पैदा ही क्यों हो रही है. इसके सबसे बड़ा कारण है जन्म पंजीकरण कानून के क्रियान्वयन में गड़बड़ी. अगर हम हर बच्चे का जन्म पंजीकरण कानूनी तरीके से करवाएं तो इस कानून के दुरुपयोग की गुंजाइश बहुत कम
हो जाएगी.’
(रूपेश सिंह के सहयोग के साथ)