अखिलेश सरकार के छह माह: चौपट राज

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से ढेरों उम्मीदें तो जनता को थीं, लेकिन जैसे हालात हैं, उनसे लगता है कि अखिलेश दंगाइयों, बलात्कारियों और डकैतों की ही उम्मीदों पर खरा उतर रहे हैं. प्रियंका दुबे की रिपोर्ट.

15 मार्च, 2012 को ‘बदलाव के वाहक’ के तौर पर उत्तर प्रदेश की कमान संभालने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार को छह महीने पूरे हो चुके हैं. एक ओर जहां विपक्षी पार्टियों, राजनीतिक विश्लेषकों और आलोचकों की अखिलेश के कार्यकाल पर कड़ी नजर थी वहीं उत्तर प्रदेश की जनता भी विलायत से पढ़ कर आए अपने नौजवान मुख्यमंत्री से हजारों उम्मीदें लगाए बैठी थी. अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री से सभी को यह उम्मीद थी कि हमेशा ऊंचे महलों की ऊंची दीवारों के पीछे छिपे रहने वाले लखनवी दरबार तक आखिरकार उनकी आवाज भी पहुंच सकेगी.

लेकिन विधानसभा चुनावों के नतीजों की शुरुआती लहर समाजवादी पार्टी (सपा) के पक्ष में जाते ही सपाइयों द्वारा हुड़दंग मचाए जाने की खबरें भी सामने आने लगी थीं. उसी वक्त साफ हो गया था कि सूबे के अगले सदर के सामने सबसे बड़ी चुनौती ‘गुंडाराज को बढ़ावा देने वाली पार्टी’ की अपनी छवि को बदलने की होगी. लेकिन बीते छह महीने  के दौरान हुए घटनाक्रमों ने न सिर्फ प्रदेश में गुंडाराज की वापसी को और पुख्ता किया है बल्कि अखिलेश के ‘बहुप्रतीक्षित सुशासन’ के सारे चुनावी वादों को भी धता बता दिया है. पिछले छह महीने में यूपी पांच सांप्रदायिक दंगे देख चुका है. यहां अलग-अलग हिस्सों में हुए दंगों में कुल सात लोगों की मृत्यु हुई और सैकड़ों जख्मी हुए. आम लोगों को जबर्दस्त नुकसान हुआ और बाजार महीनों बंद रहे.

सपा की सरकार आते ही राज्य के बुंदेलखंड क्षेत्र में डकैतों के पुराने गिरोहों ने भी फिर से सर उठाना शुरू कर दिया है. आठ अगस्त को चित्रकूट से बांदा जिला जेल की ओर जाते वक्त 13 डकैत पुलिस की गिरफ्त से भाग निकले. पुलिस कस्टडी में पेशी से लौटते वक्त फरार हुए इन कैदियों में दुर्दांत डकैत ठोकिया के बहनोई चुन्नी लाल पटेल के साथ-साथ शिवमूरत कोल, रम्मू कोल, हरी कोल और दिनेश नाई जैसे ददुआ गैंग के पुराने सदस्य भी शामिल थे. वहीं सुदेश पटेल उर्फ बालखड़िया के गैंग ने अगली ही रात यानी नौ अगस्त को चित्रकूट के डोडा गांव में सामूहिक नरसंहार को अंजाम दिया. बांदा रेंज के महापुलिस निरीक्षक पीके श्रीवास्तव ने तहलका से बातचीत में स्वीकार किया कि डकैतों के फरार होने में वहां मौजूद छह पुलिसकर्मियों का हाथ था. सूत्रों के अनुसार अब सभी फरार डकैत बालखड़िया गैंग के साथ मिलकर तराई में कुछ बड़ी वारदातों को अंजाम देने की फिराक में हैं.

पिछले छह महीने में प्रदेश पांच सांप्रदायिक दंगे देख चुका है. पुलिस थानों में छह बलात्कार हुए हैं और पिछले महीने ही 13 डकैत पुलिस हिरासत से फरार हुए हैं

डकैतों और दंगों के अलावा आए दिन पुलिस कस्टडी में हो रहे बलात्कारों या शारीरिक उत्पीड़न की खबरों से भी सरकार की खासी किरकिरी हुई है. इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऐसे बढ़ते मामलों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सरकार को महत्वपूर्ण पुलिस स्टेशनों पर सबसे बेहतर रिकॉर्ड वाले ‘सभ्य’ पुलिस अफसरों को तैनात करने के निर्देश भी दिए हैं. राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह दिन-प्रतिदिन बिगड़ती कानून-व्यवस्था के पीछे प्रभावहीन नेतृत्व को जिम्मेदार मानते हैं. वे कहते हैं, ‘कानून-व्यवस्था ठीक बनाए रखने के लिए सबसे जरूरी है ऊपर के नेतृत्व से उर्जा और प्रेरणा का नीचे की तरफ बहना. अखिलेश से सभी को बहुत उम्मीदें थीं. उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद मैं खुद उनसे मिलने गया था, हमने कानू-व्यवस्था सुधारने से संबंधित कई बातें की थीं. उन्होंने आश्वासन भी दिया था कि प्रदेश की सूरत बदलेगी. लेकिन हुआ कुछ नही’. राज्य में हो रहे सांप्रदायिक दंगों और डकैतों की बढ़ती समस्या को गंभीर बताते हुए वे आगे जोड़ते हैं, ‘बांदा क्षेत्र में बहुत मुश्किल से डकैती की समस्या पर काबू पाया गया था. राज्य में डकैतों का फिर से उभरना और आए दिन सांप्रदायिक दंगे होना साफ तौर पर यह बताता है कि कानून-प्रशासन पहले से कई कदम पीछे जा चुके हैं.’

राज्य सरकार द्वारा सदन में पेश किए गए हालिया आंकड़ों पर नजर डालें तो मालूम पड़ता है कि प्रदेश में प्रतिदिन 15 हत्याओं, छह बलात्कारों और कम से कम पांच लूट की घटनाएं दर्ज हो रही हैं. राज्य के प्रमुख राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद कुमार बताते हैं कि प्रदेश की ठप नौकरशाही और अनियंत्रित पुलिसिया खेमा मुसीबत की असली जड़ हैं. ‘यूं तो हमेशा से ही इस पार्टी को गुंडाराज को पालने-पोसने वाली पार्टी के तौर पर जाना जाता रहा है लेकिन इस बार फर्क सिर्फ इतना था कि मुलायम की जगह मुख्यमंत्री नौजवान अखिलेश थे. जाहिर है, लोग युवाओं से परिवर्तन की कुछ ज्यादा उम्मीदें बांध भी लेते हैं. लेकिन आज छह महीने बाद, इस सरकार से लगभग हर कोई असंतुष्ट है और इसके नतीजे लोकसभा चुनावों में साफ नजर भी आ जाएंगे.’ ‘आज सब यही सोच रहे हैं कि अगर चीजें मायावती के समय से बेहतर नहीं हो सकतीं तो कम से कम बुरी तो न हों. लेकिन कानून-व्यवस्था का आलम देखकर तो यही लगता है कि अखिलेश का प्रशासनिक अमला उनके नियंत्रण से बाहर है’,  प्रमोद कुमार कहते हैं. राज्य में कानून-व्यवस्था की वास्तविक स्थिति का जायजा लेने के लिए तहलका ने राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों का दौरा किया. आगे के पन्नों पर लिखी रिपोर्ट उत्तर प्रदेश की लचर कानून-व्यवस्था की कलई खोलने के साथ ही अखिलेश के बहुप्रतीक्षित सुशासन की अनवरत प्रतीक्षा में डूबे उत्तर प्रदेश की आम जनता की नाउम्मीदी को भी रेखांकित करती है.

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