अकबरुद्दीन ओवैसी का जो बयान है, आप उससे इत्तेफाक रखते हैं?
देखिए, जो भाषण है मैं उस पर कोई बयान नहीं दे सकता क्योंकि यह मामला अदालत में है. उम्मीद है कि कोर्ट हमें न्याय देगा. उनकी दो तकरीरें हुई थीं. एक निजामाबाद में और दूसरी निर्मल में. निजामाबाद का जलसा आठ दिसंबर को हुआ और 24 दिसंबर को निर्मल में जलसा हुआ. उसके 22 दिन बाद मामला दर्ज हुआ. मान लिया जाए कि निजामाबाद में उन्होंने भड़काऊ बयान दिया था, तो उन्हें निर्मल में जलसे की इजाजत क्यों दी गई? दूसरी बात यह कि यहां अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग पैमाने अपनाए जा रहे हैं. यह बहुत खतरनाक है. अगर उनकी स्पीच भड़काऊ है तो फिर मुझे बताइए कि 1991 में किसने कहा था कि एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद तोड़ दो. जिस बाल ठाकरे ने मुसलमानों को इस देश का कैंसर कहा था, उसकी मौत पर उसे पूरा राजकीय सम्मान क्यों दिया गया? मैं मुसलमान हूं तो मेरे खिलाफ दूसरा कानून चलेगा और बाकियों के खिलाफ दूसरा?
आप यह कह रहे हैं कि व्यवस्था ईमानदारी से अपना काम नहीं कर रही है इसलिए उन्होंने ये सारी बातें कहीं?
मैं आपसे कहूंगा कि अकबरुद्दीन ओवैसी मीडिया के शिकार हो गए हैं. वही मीडिया जो बाल ठाकरे की मौत का 24 घंटे लाइव प्रसारण करता है.
देखिए, व्यवस्था से किसी को भी एतराज हो सकता है. नक्सली भी भारतीय व्यवस्था को चुनौती देते रहते हैं. लेकिन किसी धर्म को निशाना बनाना और उसे व्यवस्था से जोड़ना कहां तक ठीक है?
आप यह बताइए, 153ए, 295 धाराएं आपने लगाईं, ठीक है हम कोर्ट में लड़ेंगे. लेकिन 121 आईपीसी आपने कैसे लगाया कि हम हिंदुस्तान से बगावत कर रहे हैं. आप मुसलमानों को क्या पैगाम दे रहे हैं कि मुसलमान मुल्क से जंग कर रहा है.
व्यवस्था से विरोध हो सकता है, लेकिन उनकी तकरीर में हिंदू धर्म के प्रति जो भद्दी बातें की गईं, उससे लगता है कि उनके मन में धर्म विशेष के खिलाफ ही कड़वाहट है.
देखिए, मैंने आपसे पहले ही कह दिया है कि उनकी तकरीर में क्या था, मैं उस पर बात नहीं करूंगा. इस पर फैसला अब कोर्ट को करना है. जहां तक मेरा और मेरी पार्टी का सवाल है तो हम न किसी मजहब के खिलाफ हैं, न रहे हैं, न आगे कभी रहेंगे. हमारी लड़ाई फिरकापरस्त ताकतों के खिलाफ है.
अकबर ने राम के जन्म और उनकी माता कौशल्या को लेकर एक तरह की अश्लील टिप्पणी की है. यह ऐसा है जैसे कोई कुरान पर सवाल खड़ा करे या कोई पैगंबर मुहम्मद के वजूद को नकारे.
देखिए, आप बार-बार तकरीर के कंटेंट पर आ जाते हैं. आप यह क्यों भूल जाते हैं राम जेठमलानी ने भी राम के ऊपर कुछ बातें कही हैं. डीएमके के प्रमुख करुणानिधि ने भी राम के ऊपर सवाल खड़ा किया है. उन्हें किसी ने क्यों गिरफ्तार नहीं किया?
इसमें अंतर है. अपने व्यक्तिगत दायरे में कोई अपनी राय रख सकता है लेकिन कोई इस तरह की बात किसी तरह का सियासी फायदा उठाने के लिए करे तो वह गलत बात है.
मैं फिर वही कह रहा हूं कि इसका फैसला कोर्ट करेगा.
दो घंटे की उनकी तकरीर में मुसलमानों की दुर्दशा, उनकी तरक्की, उनकी शिक्षा, उनकी बेहतरी पर कोई बात सुनने को नहीं मिलती.
ये सारी बातें उन्होंने कही हैं. मैं आपको भेजता हूं उनकी तकरीरें. यहां हैदराबाद में हम मेडिकल कॉलेज, दवाखाने, स्कूल, कॉलेज सब कुछ चलाते हैं.
सवाल यह है कि जब आप इस तरह की भड़काऊ बातें करते हैं तो कुछ जगहों पर आपको इसका फायदा मिल सकता है. लेकिन जहां मुसलमान कम संख्या में हैं वहां स्थितियां बहुत कठिन हो जाती हैं.
किसी के जान-माल की रक्षा करना किसी सरकार की जिम्मेदारी है या नहीं? मेरी या मेरे भाई की किस तकरीर ने गुजरात में फसाद करवा दिए. अखिलेश यादव की हुकूमत में फसाद हो गए, क्या मेरी वजह से हो गए? हुकूमत की जिम्मेदारी है कि वो अपने नागरिकों के जान-माल की रक्षा करे. कहना आसान है कि मेरी वजह से दंगा हो गया. मैं मानता हूं कि कोर्ट को आपसे और मुझसे ज्यादा कानून पता है.
आप यहां यह कहेंगे कि एमआईएम दो समुदायों के बीच खाई पैदा करने वाली किसी भी चीज का समर्थन नहीं करता और निर्मल में जो भी कहा गया वह सही नहीं था?
नहीं, देखिए आप घुमा-फिराकर एक बात कहलवाना चाहते हैं. मैं इस पर कुछ नहीं कहूंगा. आज की तारीख में हैदराबाद में मेरे पास सबसे ज्यादा कॉरपोरेटर हैं. पिछले पांच सालों में तीन बार तो हमने दलितों को हैदराबाद का मेयर बनाया है. हम अपनी लड़ाई हिंदुस्तान के कायदे-कानून के तहत रहकर लड़ेंगे. हम इसके बाहर नहीं हैं. हां, फिरकापरस्ती का विरोध हम करते रहेंगे. यह लड़ाई न तो मुल्क से है न किसी धर्म से है.