मानव समाज की बेहतरी के लिए दान ज़रूरी
डॉ. राम प्रताप सिंह
प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व में 5 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय दान दिवस (इंटरनेशनल चैरिटी-डे) के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस मदर टेरेसा की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिनका सम्पूर्ण जीवन मानव सेवा में गुज़रा।
परोपकारी गतिविधियों को बढ़ाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सन् 2012 में इस दिवस को घोषित किया गया था। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्तर पर व्यक्तियों, संगठनों तथा राष्ट्रों को चैरिटी से सम्बन्धित गतिविधियों के लिए प्रेरित करना, ताकि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सके।
समझना होगा दान का महत्त्व
घोर पूँजीवादी एवं व्यक्तिगत स्वार्थ के इस दौर में दान (चैरिटी) की भावना लोगों में कम होती जा रही है। सामुदायिक तथा वैश्विक कल्याण की बजाय आज अधिकतर लोग, विभिन्न संगठन तथा देश केवल अपने हितों के बारे में सोच रहे हैं। आज दुनिया के विभिन्न देशों में लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। वर्तमान समय में कई ऐसे देश हैं, जहाँ लोगों को भरपेट भोजन, शिक्षा तथा रोज़गार जैसी मूलभूत सुविधाएँ नहीं मिल रही हैं। कई देशों के लिए ग़रीबी एक बहुत बड़ी चुनौती है।
आज करोड़ों लोग बेहतर इलाज पाने के लिए तरस रहे हैं। सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में दान बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है। दान के माध्यम से ग़रीबी तथा भुखमरी जैसी कई गम्भीर समस्याओं को ख़त्म किया जा सकता है। इसके अलावा सुविधाहीन लोगों के स्वस्थ करने, उन्हें गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करने, उन्हें रोज़गार प्रदान करने और लोगों के बीच असमानता को ख़त्म करने में भी दान की ख़ास भूमिका हो सकती है। इस तरह से दुनिया को सभी के लिए बेहतर बनाया जा सकता है।
हाल की सतत् विकास और मानव विकास सूचकांक की रिपोट्र्स हमें यह बताती हैं कि विकसित तथा विकासशील देशों के बीच बुनियादी सुविधाओं के स्तर पर आज भी बड़ा अन्तर है, जिसे हर हाल में कम करने की ज़रूरत है। कई अफ्रीकी तथा एशियाई देश ऐसे हैं, जहाँ लोग भुखमरी तथा ग़रीबी के कुचक्र से निकल नहीं पा रहे हैं। ऐसे में अमीर देशों की नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है कि वे इनकी आर्थिक मदद करें।
पिछले कुछ वर्षों में बिल गेट्स, अज़ीम प्रेमजी, शिव नादर, टाटा कम्पनी इत्यादि ने दान करके कई परिवारों को बेहतर जीवन दिया हैं। भारत के शीर्ष 10 में कुमार मंगलम बिड़ला, रतन टाटा, शिव नादर, सुष्मिता एंड सुब्रतो बागची, अजीम प्रेमजी, राधा एंड एनएस पार्थसारथी, अजय पीरामल, नंदन निलेकणी, अनिल अग्रवाल, मुकेश अंबानी, गौतम अडाणी और ए.एम. नाइक जैसे पूँजीपति हैं।
महामारी के समय भारत में खेल तथा फ़िल्म क्षेत्र के कई दिग्गजों ने आगे आकर केंद्र और राज्य सरकारों को दान दिया तथा आम जनता की मदद की। कई लोगों ने संगठन बनाकर आम लोगों को खाना खिलाया तथा दवाइयाँ बाँटी, पैसे बाँटे। कई देशों में आज भी समय-समय पर कई तरह के खेल आयोजित किये जाते हैं, जिससे ज़रूरतमंद लोगों की मदद की जा सके।
परोपकार की परम्परा
भारत में प्राचीन समय से ही लोगों में परोपकार की भावना रही है। ज़रूरतमंदों की मदद का इस देश का लम्बा इतिहास रहा है।
आज भी देश में आए दिन परोपकार से जुड़ी ऐसी कई सकारात्मक ख़बरें सुनने को मिलती हैं, जिनसे लगता है कि लोगों के अन्दर इंसानियत आज भी ज़िन्दा है। चार दिन की इस ज़िन्दगी में हमें यह याद रखने की ज़रूरत है कि मानव सेवा से बढक़र यहाँ कोई भी धर्म नहीं। इसलिए इस दुनिया को बेहतर बनाने के लिए हमें यह संकल्प लेना होगा कि परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, हम हर हाल में स्वहित त्यागकर ग़रीबों तथा ज़रूरतमंदों की सेवा के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे।
(लेखक मणिपाल यूनिवर्सिटी जयपुर, राजस्थान में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।)