‘आप एक शहीद के साथ हैं या उस व्यक्ति के साथ जिसका यौन दुराचार के आरोप में वध कर दिया गया है?’ पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र का लगातार चार बार प्रतिनिधित्व करने वाले मार्क्सवादी पार्टी के विधायक अजित सरकार के शहादत दिवस यानी 14 जून को उनके बेटे अमित सरकार ने वहां मौजूद भीड़ से जब यह सवाल किया तो यह साफ लग रहा था कि 25 जून को होने वाले उपचुनाव का मुद्दा विकास या भ्रष्टाचार नहीं होगा बल्कि यहां दो तत्कालीन विधायकों की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर को वोट में बदलने की ही कोशिश होगी.
पूर्णिया विधानसभा सीट पर भाजपा के विधायक राजकिशोर केसरी की चार जनवरी को हुई हत्या के बाद उपचुनाव कराया जा रहा है. केसरी की हत्या कथित तौर पर एक स्थानीय स्कूल संचालिका रूपम पाठक ने कर दी थी. पाठक का आरोप था कि केसरी उनका लगातार यौन उत्पीड़न किया करते थे. रूपम इस समय जेल में हैं और उन पर गैरइरादतन हत्या का आरोप है.
पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र के लिए यह एक संयोग ही है कि यहां का प्रतिनिधित्व करने वाले दो तत्कालीन विधायकों की हत्या कर दी गई. राजकिशोर केसरी के पहले 1998 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन विधायक अजित सरकार की भी हत्या कर दी गई थी. शायद पूर्णिया की जनता में सहानुभूति की भावना को देखते हुए ही भाजपा और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने एक ही तरह की रणनीति अपनाई है. भाजपा ने जहां इस बार राजकिशोर केसरी की पत्नी किरण केसरी को अपना उम्मीदवार बनाया है वहीं माकपा ने अजित सरकार के पुत्र अमित सरकार को मैदान में उतारा है. एक तरफ माकपा अपने नेता अजित सरकार की हत्या की सहानुभूति पर नैया पार लगाना चाहती है तो दूसरी तरफ ऐसी ही कोशिश भाजपा की भी है.
माकपा, भाजपा, कांग्रेस और भाकपा (माले) चुनाव में कूद पड़े हैं वहीं राजद-लोजपा ने उम्मीदवार खड़ा नहीं किया हैभाजपा उम्मीदवार किरण केसरी ने तो पहले ही इस तरह का संकेत दे दिया था. किरण ने अपनी नामजदगी का पर्चा भरते समय कहा था, ‘मेरे पति ने वर्षों तक इस क्षेत्र की जनता की सेवा की है, इसलिए मैं उम्मीद करती हूं कि यहां की जनता उनके योगदान को देखते हुए हमें जरूर जीत दिलाएगी.’ हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस विकास को ही मुद्दा बनाना चाहती है. पर कांग्रेस के स्थानीय नेता भी मान रहे हैं कि यह एक बड़ी चुनौती है. पूर्णिया से कांग्रेस विधायक रहे अमरनाथ तिवारी कहते हैं, ‘पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र की यह बदकिस्मती है कि जनता के सामने विकास की बजाय सहानुभूति जैसी बातों को चुनावी मुद्दा बना कर पेश किया जा रहा है.’ कांग्रेस ने रामचरित यादव पर दोबारा भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट दिया है जो 2010 के विधानसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर थे. इसी तरह भाकपा (माले) ने इस्लामुद्दीन को जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने ओमप्रकाश भगत को उम्मीदवार बनाया है.
एक तरफ जहां माकपा, भाजपा, कांग्रेस, भाकपा (माले) के उम्मीदवार चुनावी अभियान में कूद पड़े हैं वहीं राष्ट्रीय जनता दल-लोकजनशक्ति गठबंधन ने अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है. इस संबंध में राजद के प्रदेश अध्यक्ष अब्दुल बारी सिद्दीकी कहते हैं, ‘राजद-लोजपा गठबंधन इस बार भाजपा को वॉक ओवर देने नहीं जा रहा बल्कि हम यह सुनिश्चित करने में लगे हैं कि किसी ऐसे उम्मीदवार का समर्थन किया जाए जो भाजपा को हरा सके.’ हालांकि सूत्रों का कहना है कि राजद-लोजपा इस चुनाव के बहाने कांग्रेस से निकटता बढ़ाने की जुगत में हैं. राजद के एक नेता इशारों में कहते हैं, ‘पार्टी कोशिश कर रही है कि वह कांग्रेस का समर्थन करे. इसके लिए बातचीत चल रही है.’ कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान भी देते हैं. उन्होंने 13 जून को कहा, ‘भाजपा और कांग्रेस में से किसी एक को चुनना पड़ा तो हम निश्चित तौर पर कांग्रेस के साथ जाएंगे.’ इधर अभी तक कांग्रेसी खेमे से कोई अधिकृत प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन कांग्रेस के एक नेता का कहना है कि पार्टी इस मुद्दे पर अगले कुछ दिनों में ही फैसला करेगी.
पिछले छह महीने से किसी न किसी तरह रूपम पाठक भी एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बनी रही हैं. राजकिशोर केसरी की हत्या की आरोपित रूपम ने पहले घोषणा की थी कि वे भी चुनाव लड़ेंगी. आठ जून को नामजदगी का पर्चा दाखिल करने की आखिरी तिथि समाप्त होने से पहले तक पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र में यह चर्चा जोरों पर थी कि वे भी चुनाव मैदान में कूदेंगी. पर आखिरी वक्त में पाठक ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया.