यौन शोषण विरोधी कानून

क्या है यौन शोषण विरोधी कानून?
पिछले साल 16 दिसंबर को दिल्ली में घटी गैंगरेप की घटना के बाद महिलाओं के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों के खिलाफ कड़ी और प्रभावी सजा के लिए नया कानून ‘आपराधिक कानून (संशोधित) अधिनियम 2013’ अस्तित्व में आया. इस कानून के जरिए बलात्कार की परिभाषा को और विस्तृत करते हुए सजाओं को अधिक सख्त बनाया गया है. इसके मुताबिक दुष्कर्म के अलावा भी महिलाओं के साथ किसी तरह की शारीरिक छेड़छाड़ को बलात्कार माना जाएगा. इतना ही नहीं, महिलाओं के खिलाफ किसी भी तरह के यौन दुर्व्यवहार के लिए कड़ी सजा का प्रावधान इस कानून के जरिए किया गया है. नए कानून के मुताबिक अगर यौन शोषण के किसी मामले में पीड़िता की मौत हो जाती है तो दोषी को फांसी की सजा का भी प्रावधान है.

कैसे अस्तित्व में आया नया कानून?
पिछले साल 16 दिसंबर को हुई अमानवीय घटना के बाद पूरे देश में महिलाओं के यौन उत्पीड़न के खिलाफ एक आक्रोश पैदा हो गया था. लोगों के विरोध को देखते हुए सरकार ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था. इस कमेटी को महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों से कारगर तरीके से निपटने के उपायों के बारे में रिपोर्ट सौंपनी थी. कमेटी को देश भर से हजारों सुझाव मिले. विस्तृत सलाह और सुझावों के बाद समिति ने अपने सुझाव सरकार को सौंपा जिसमें तत्कालीन कानूनों को कड़ा करने की सिफारिश की गई थी. बाद में संसद ने भी थोड़े-बहुत संशोधनों के साथ इस प्रस्ताव को पारित कर दिया.

नया कानून आने के बाद क्या है स्थिति?
इस कानून के बनने के बाद भी महिलाओं के खिलाफ होने वाले  अपराध लगातार बढ़े हैं. पिछले 13 साल की तुलना में इस साल बलात्कार के सबसे ज्यादा मामले सामने आए. अकेले दिल्ली में ही 30 नवंबर तक बलात्कार के लगभग पंद्रह सौ मामले दर्ज किए गए जो कि 2012 में दर्ज मामलों की तुलना में दोगुने से अधिक हैं. जानकार इस पर एक और राय रखते हैं. उनके मुताबिक पहले ऐसे मामले दर्ज नहीं कराए जाते थे. लेकिन लोग अब जागरूक हो गए हैं और मामले दर्ज कराने लगे हैं.

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