गर आदमी हो तो क्या आदमी हो!

मनीषा यादव
मनीषा यादव

‘आज केवल आदमी होने से काम नहीं चलता है.’

‘दद्दा, मुझे लगता है आदमी होना ही बड़ी बात है.’

‘अगर आदमी ही होना बड़ी बात होती तो, आदमी को मयस्सर नहीं है इंसा होना, गालिब ने फिर क्यों कहा!’

‘आदमी और इंसान एक ही बात है!’

‘तुम भ्रमित हो! फर्क है!’

‘अगर फर्क होगा भी तो रत्ती भर!’

‘नहीं, जमीन आसमान का फर्क है!’

‘चलिए तो एक पल को मान लेते है कि दोनों एक ही है’

‘तो फिर मैं कहना चाहूंगा कि मात्र आदमी होने से काम नहीं चलता.’

‘अच्छा एक बात बताओ!’

‘पूछिए!’

‘पुरुष कितने प्रकार के होते हैं!’

‘तीन प्रकार के’

‘कौन-कौन से!’

‘प्रथम पुरुष, उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष’

‘और विकास पुरुष, लौह पुरुष भूल गए!’

‘अरे!’

‘अब बताओ, पुत्र कितने प्रकार के होते है!’

‘दो… जैविक पुत्र, दत्तक पुत्र’

‘एक और होता है!’

‘कौन सा.’

‘मानस पुत्र’

‘यह कैसा पुत्र!’

‘जो आपका जैविक पुत्र न हो, मगर आपकी विचारधारा से एकमत हो!’

‘दद्दा एक पुत्र और होता है!’

‘कौन-सा!’

‘धरती पुत्र!’

‘बहुत सही! अब तुम राजनीतिक बातें करने लगे!’

‘हा हा हा’

‘देखो बहुत मौके से याद आया.’

‘क्या दद्दा!’

‘गॉड फादर जानते हो’

‘माने जो आपको अवसर दे, जो आपका करियर, जिंदगी बनाए.’

‘तो जिनके गॉड फादर होते है उनके फादर नहीं होते होंगे.’

‘होते होंगे!’

‘लेकिन काम कौन आ रहा! एक अनजाना आदमी.’

‘दद्दा समझा नहीं!’

‘देखो यहां जैसे एक बाप से काम नहीं चलता, वैसे ही मात्र आदमी होने से काम नहीं चलता…’

‘यानी किसिम-किसिम के आदमी…’

‘हां मगर, अपना आदमी आदमी की एक खास किसिम होती है.’

‘अच्छा!’

‘जो काम दे, जिससे काम निकले… इसे यूं समझो… जिससे काम मिलना है, जिससे काम निकलवाना हो, कैसे निकलवाओगे!’

‘काबिलियत के दम पर’

‘ओय काबिलियत के दम भरने वाले! जीवन में जाति, धर्म, क्षेत्र, वर्ण न जाने कितने पेंच फसते हंै, इन्हीं पेंचों को ढीला करने के लिए भी… छोड़ो! एक जवाब दो!’

‘पूछें दद्दा’

‘दो समान काबिलियत के दावेदार आ जाए तो तुम किसको मौका दोगे!’

‘आप ने तो फंसा दिया!’

‘अब फर्ज करो! तुम में काबिलियत नहीं है, तो तुम दूसरे को कैसे रोकोगे! तुम दौड़ने में फिसड्डी हो तो रेस कैसे जितोगे!’

‘लंगड़ी लगाकर!’

‘यह नकारात्मक भाव है.’

‘फिर दद्दा आप बताए!’

‘इत्ती देर से समझा रहा हूं, अबे कैसा आदमी है!’

‘क्या दद्दा…’

‘अपना आदमी बन कर घोंचू.’