इस प्रकरण में सच क्या है, यह पता करना मुश्किल है. इसकी वजह यह है कि इस मामले की पड़ताल और उसे फालो-अप करना तो दूर, किसी न्यूज चैनल ने इसे रिपोर्ट करने लायक तक नहीं माना. चैनलों के लिए यह टिकर पर चलने लायक खबर भी नहीं बन पाई. सवाल यह है कि बिना स्वतंत्र रिपोर्टिंग, छानबीन और फालो-अप के इस मामले का सच कैसे सामने आएगा. हालांकि अगले दिन कुछ अखबारों ने इस घटना की संक्षिप्त रिपोर्ट छापी, लेकिन चैनलों की चुप्पी चुभनेवाली थी. आखिर उन्हीं दिनों न्यूज चैनलों पर प्रीति जिंटा-नेस वाडिया मामले की 24×7 रिपोर्टिंग हो रही थी और ऐसे सभी मामलों की रिपोर्टिंग में चैनलों की सक्रियता और उत्साह देखते ही बनती है.
यही नहीं, चैनलों का दावा रहा है कि महिलाओं के उत्पीड़न और परेशान करने के कई मामलों में उनकी सक्रियता के कारण ही पीड़ितों को न्याय मिल पाया. फिर चैनलों ने तनु शर्मा की आत्महत्या की कोशिश के मामले को रिपोर्ट करने लायक क्यों नहीं माना? कहीं यह चैनलों के प्रबंधन के एक सामूहिक अपराध में शामिल होने के कारण बने ‘ओमेर्ता कोड’ का नतीजा तो नहीं है जिसमें अघोषित सहमति के आधार पर कोई चैनल, दूसरे चैनल के अंदरूनी हालात/घटनाओं की रिपोर्ट नहीं करता है? कहीं इसके पीछे यह डर तो नहीं है कि आज अगर इस मामले को रिपोर्ट किया तो कल उनके यहां भी ऐसे ही मामलों की रिपोर्ट होने लगेगी और चैनलों के सुनहरे पर्दों के पीछे छिपे दमघोंटू माहौल और पत्रकारों खासकर महिला पत्रकारों के कामकाज की बदतर परिस्थितियों और सेवाशर्तों की सच्चाई सामने आ जाएगी? आखिर इसके अलावा तनु शर्मा-इंडिया टीवी मामले की रिपोर्ट न करने का और क्या कारण हो सकता है? यह कोई पहला मामला नहीं है जब चैनलों ने अपने अंदर की ‘खबरों’ को अनदेखा किया है. कुछ महीनों पहले चैनलों ने नेटवर्क-18 /टीवी-18 से 350 से ज्यादा पत्रकारों/कार्मिकों की छंटनी पर चुप्पी साध ली थी.
इसी तरह अखबारों में कार्यरत पत्रकारों को मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक वेतन न देने के बारे में अनगिनत शिकायतों की रिपोर्ट आपको किसी अखबार/चैनल में नहीं दिखाई देगी. शायद कॉरपोरेट न्यूज मीडिया के अंदर लागू इस ‘ओमेर्ता कोड’ से बने दमघोंटू माहौल, कामकाज की बदतर परिस्थितियों और कहीं कोई सुनवाई नहीं होने के कारण हताशा में तनु शर्मा को आत्महत्या की कोशिश जैसा चरम कदम उठाना पड़ा. लेकिन अफसोस! यह भी चैनलों के ‘ओमेर्ता कोड’ को तोड़ने में नाकाम रहा. लगता है कि चैनल किसी मौत का इंतजार कर रहे हैं.