‘साजिदा को नवाब का उत्तराधिकारी माना गया फिर उनकी संपत्ति, शत्रु संपत्ति कहां से हो गई’

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इबाद खान और एसएम सफवान भोपाल के कोह-ए-फिजा में जन्म से रह रहे हैं. इबाद खान के पिता ने यह जगह जहां भोपाल के नवाब से ली थी, वहीं सफवान के दादा को यह नवाब से 1952 में तोहफे में मिली थी. बीते वर्ष सीईपी ने नवाब की इस संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित किया है. सफवान बताते हैं, ‘कोह-ए-फिजा में रहने वाले लगभग हजार परिवार इस फैसले से प्रभावित हो रहे हैं. भोपाल घूमेंगे तो पाएंगे कि प्रभावित होने वालों की संख्या कितनी बड़ी है. रिहाइशी इलाके, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, कृषि भूमि सब दायरे में आ रहे हैं.’ इबाद खान कहते हैं, ‘पहले मर्जर एग्रीमेंट के बारे में बात होती थी. नवाब ने भारत सरकार के साथ मर्जर एग्रीमेंट किया था, आजाद भारत में जब रियासतें मर्ज हुई थीं. तब इसे निजी संपत्ति घोषित किया गया था. कहा गया था कि ये आखिर तक नवाब की रहेंगी और अगर वो किसी को देते हैं तो उनका अधिकार हो जाएगा. बाद में मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि यहां अतिक्रमण हुआ है. यह सरकारी संपत्ति है. उनके पास एग्रीमेंट का रिकॉर्ड नहीं था. हमने सबूत पेश किए तो मामला निपट गया. अब नया विवाद शत्रु संपत्ति का खड़ा हो गया है.’ सफवान कहते हैं, ‘आबिदा पाकिस्तान चली गई थीं पर नवाब तो यहीं थे, उनकी अगली वारिस साजिदा तो भारतीय थीं. स्वयं तत्कालीन सरकार ने उन्हें नवाब का उत्तराधिकारी माना था. फिर कहां से यह शत्रु संपत्ति हुई? हम तो ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. जब संपत्ति सरकार की थी तो क्यों साजिदा सुल्तान को उस पर उत्तराधिकार दिया? क्यों साजिदा को महारानी का टाइटल दिया?’ हालांकि इबाद खान को यकीन है कि मर्जर एग्रीमेंट के विवाद की तरह ही यह मामला भी निपट जाएगा. वे कहते हैं, ‘नवाब के वारिस सीईपी के फैसले के खिलाफ मुकदमा लड़ रहे हैं. फैसला उनके पक्ष में आता भी दिख रहा है. इससे हमें भी राहत मिलेगी.’ पर साथ ही वे, सफवान और प्रभावित अन्य लोग कानूनी लड़ाई की भी तैयारी कर रहे हैं. इसका कारण यह है कि कानून के प्रावधान उनसे उनका मालिकाना हक छीनने वाले हैं. सफवान कहते हैं, ‘नवाब के मामले में अदालती फैसला जो भी आए पर हमें तो अपना सुरक्षित पक्ष लेकर चलना पड़ेगा न. जो संपत्ति कस्टोडियन की है ही नहीं, उस पर वह कैसे फैसला सुना सकता है? मनमर्जी कानून बनाकर आप किसी को उसके घर से नहीं निकाल सकते. हमारी संपत्ति , शत्रु संपत्ति साबित होती भी है तो सरकार को लीज देनी पड़ेगी. वैसे तो यह बाद की बात है. हम तो मालिक हैं.’