मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) की भर्ती परीक्षाओं में हुई धांधली का ओर-छोर कहां है अभी तक इसका कुछ पता नहीं लेकिन एक नए घटनाक्रम ने इसकी गुत्थी और उलझा दी है. दरअसल बीते चार जून को नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज, जबलपुर के प्रभारी डीन डॉ डीके साकल्ये ने कथिततौर पर आत्महत्या कर ली थी. वे अपने कॉलेज में फर्जी तरीके से पीएमटी (प्री मेडीकल परीक्षा) परीक्षा पास कर पढ़ रहे छात्रों की जांच कर रहे थे और उनकी जांच के आधार पर तकरीबन 80 विद्यार्थियों को कॉलेज से निष्कासित किया गया था. मध्य प्रदेश में पीएमटी परीक्षा का आयोजन व्यापमं ही करता है और इस लिहाज से उनकी मृत्यु के पीछे साजिश देखी जा रही है.
चार जून को सुबह 7.30 बजे डॉ साकल्ये का शव बुरी तरह जली हुई अवस्था में अपने घर के बरामदे में पाया गया था. वे कॉलेज परिसर में ही बने क्वार्टर में रहते थे. घटना वाले दिन उनकी पत्नी भक्ति साकल्ये सुबह की सैर के लिए गईं थी. कुछ देर बाद जब वे घर आईं तो उन्होंने पाया डॉ. साकल्ये बरामदे में बेसुध पड़े हैं. उनका शरीर बुरी तरह जला हुआ था. उन्हें तुरंत ही कॉलेज के आपातकालीन चिकित्सा विभाग में ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने जांच के बाद कहा कि डॉ साकल्ये पहले ही मृत्यु हो चुकी थी.
पुलिस को मौके से पांच लीटर की एक केरोसिन की कुप्पी (जिसमें साढ़े तीन लीटर केरोसिन बचा हुआ था), माचिस, बाल्टी और रबर की चप्पल बरामद हुई थी. पोस्टमार्टम रिपार्ट आने के पहले और बाद में भी पुलिस इसे महज आत्महत्या ही बता रही है. हालांकि मौके से कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं किया गया. डॉ साकल्ये की आत्महत्या पर इसलिए भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि पोस्टमार्टम के वक्त उनका विसरा (शरीर के अंदरूनी अंगों के नमूने) भी सुरक्षित नहीं रखा गया. यदि ऐसा होता तो इस बात की जांच और पुख्ता तरीके से हो सकती थी कि उनकी मृत्यु किन परिस्थितियों में हुई. हालांकि पुलिस अपने आत्महत्या वाले नतीजे से इतर कुछ भी सोचने को तैयार नहीं है.
डॉ साकल्ये की कथित आत्महत्या पर संदेह करने की सिर्फ यही वजहें नहीं हैं. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. अरविंद जैन तहलका को बताते हैं, ‘ पूरा मामला बेहद संदेहास्पद है. कोई भी फॉरेंसिक एक्सपर्ट आत्मदाह जैसी कठिन और दर्दनाक मौत नहीं चुन सकता क्योंकि इसमें असहनीय पीड़ा तो होती ही है, साथ ही मौत की कोई निश्चित गारंटी भी नहीं होती.’ भक्ति साकल्ये का कहना है वे घटना के बीस मिनट पहले तक अपने पति के साथ थीं. इस आधार पर डॉ जैन तर्क देते हैं कि केवल 20 मिनट के भीतर ही कोई 98 फीसदी जलकर नहीं मर जाता. वे अपनी बात आगे बढ़ाते हैं, ‘ डॉ साकल्ये के शरीर पर गहराई तक जलने के निशान नहीं थे. यही नहीं उनकी पीठ भी नहीं जली थी. चमड़ी की रंगत देखकर भी नहीं कहा जा सकता था कि वे 98 फीसदी जले हैं.’ डॉ जैन आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘ घटनास्थल पर मौजूद साक्ष्य किसी और ही दिशा में इशारा कर रहे हैं. जहां डॉ साकल्ये जले, वहां फर्श पर कोई निशान नहीं पड़ा. न तो मिट्टी के तेल का, न ही जलने का. यह कैसे मुमकिन है? उनका विसरा भी संरक्षित नहीं किया गया. पुलिस ने पूरे मामले को आनन फानन में निपटा दिया. मौके से फिंगर प्रिंट नहीं लिए गए. उनकी त्वचा का रासायनिक विश्लेषण भी नहीं किया गया. ‘