धोनी में निर्णय लेने और अपने निर्णय पर कायम रहने की गजब की क्षमता है. टीम में उन्होंने खुलकर युवा चेहरों को मौका देने की वकालत की और वनडे और टी-20 के साथ टेस्ट में भी नये चेहरों को मौका देते रहे. हालांकि सीनियर्स की अनदेखी करने, टीम में गुटबाजी, चेन्नै सुपर किंग्स के खिलाड़ियों को टीम में तरजीह देने जैसे आरोप भी उन पर लगे. साथी खिलाड़ियों से संवादहीनता और अनुपलब्ध रहने की खबरें भी मीडया में आती रहीं. सबसे महत्वपूर्ण विवाद रहा फैब फोर के एक स्तंभ वीवीएस लक्ष्मण का बयान जिसके मुताबिक धोनी उनसे बात तक नहीं करते थे. आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में बोर्ड अध्यक्ष श्रीनिवासन और मयप्पन के साथ नजदीकियों के चलते उनके ऊपर हितों के टकराव जैसे सवाल भी उठे. सोशल मीडिया में तो यहां तक कहा जाने लगा कि टीम इंडिया अब इंडिया सीमेंट्स की टीम है और धोनी उसके मैनेजर की तरह काम करते हैं.
वरिष्ठ खेल पत्रकार अयाज मेमन ने भी एक टीवी इंटरव्यू में कहा, ‘जब आग लगी है, तो उसकी आंच धोनी तक भी जाएगी ही.’ टेस्ट क्रिकेट से उनके संन्यास के फैसले को भी वे इससे जोड़कर देख रहे हैं. 2011 के बाद बतौर कप्तान और खिलाड़ी भी टेस्ट क्रिकेट में उनका प्रदर्शन गिरता चला गया.
2011-12 में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ लगातार 8 टेस्ट मैच गंवाने के बाद उन्हें टेस्ट की कप्तानी से हटाए जाने की जबर्दस्त मांग उठी थी. विदेशी धरती पर टेस्ट मैचों में टीम इंडिया की लगातार हार ने धोनी को हमेशा से ही आलोचकों के निशाने पर रखा. इसके बाद धोनी ने 2013-14 में साउथ अफ्रीका और न्यूजीलैंड की धरती पर टेस्ट सीरीज गंवाई और फिर इसी साल इंग्लैंड के हाथों टेस्ट सीरीज में 0-3 से हार के बाद ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज भी गंवा बैठे.
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में बोर्ड अध्यक्ष श्रीनिवासन और मयप्पन के साथ नजदीकियों के चलते उनके ऊपर हितों के टकराव जैसे सवाल भी उठे
2012 में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान धोनी ने कहा था कि मैं टीम से निकाले जाने का इंतजार नहीं करूंगा. मुझे निकाला जाए, इससे पहले ही सम्मानजनक विदाई ले लूंगा. इस लिहाज से महाकवि निराला की पंक्तियां ‘जो मार खा रोई नहीं, वह गौरव और गरिमा थी.’ पूरी तरह उपयुक्त बैठती हंै. यह नायकत्व की पहचान है कि जिसने भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को खुशी और उपलब्धियों के बेतहाशा मौके दिए, उसने हारी हुई टेस्ट श्रृंखला में ड्रॉ खेलकर सम्मानजनक विदाई ली. सफेद जर्सी पहने धोनी को अपने पूर्ववर्ती खिलाड़ियों सचिन, गांगुली या कुंबले की तरह साथियों के कंधे पर आखिरी बार मैदान से जाते नहीं देख सकने का अफसोस लाखों-करोड़ों प्रशंसकों को जरूर रहेगा.
कई खिलाड़ियों का मानना है कि एक दशक के क्रिकेट करियर में महेंद्र सिंह धोनी टेस्ट क्रिकेट के लिहाज से ‘अंडरअचीवर’ रहे हैं. आलोचकों का कहना है कि खिलाड़ी के तौर पर धोनी टेस्ट क्रिकेट में अपनी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं कर सके. टेस्ट कभी धोनी की प्राथमिकता में नहीं था. क्रिकेट के इस ‘ज्यादा थकाऊ और कम कमाऊ’ फॉर्मेट के लिए धोनी में वैसी गंभीरता नजर नहीं आती थी. सौरभ गांगुली, अजहरुद्दीन समेत कई पूर्व खिलाड़ियों का कहना है कि आईपीएल में धोनी टीम के लिए ऊपरी क्रम में आकर बैटिंग करते हैं, लेकिन टेस्ट क्रिकेट में ऐसा नहीं करते.
आईपीएल फिक्सिंग विवाद में धोनी की छवि धूमिल हुई. हितों के टकराव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सीधे-सीधे सवाल उठाए. फिलहाल मामले की जांच चल रही है. एक दशक के उनके करियर में कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिनमें उनका भटकाव साफ नजर आता है. 2009 में पद्मश्री सम्मान लेने की जगह किसी ऐड फिल्म की शूटिंग में जाना, 2011 में न्यूजीलैंड दौरे पर जब टीम लगातार हार रही थी, तब प्रैक्टिस सेशन छोड़कर अंगूरों के बाग की सैर करना. भारतीय उच्चायोग की तरफ से आयोजित डिनर में शामिल नहीं होना, जैसी कई घटनाओं के लिए उनकी आलोचना हुई. आलोचनाओं से परे कभी महानता की इबारत नहीं लिखी जा सकती और धोनी भी इसके अपवाद नहीं हैं.
आने वाले वक्त में जब धोनी का मूल्यांकन होगा तो उनकी असाधारण उपलब्धियों के साथ उनके व्यक्तित्व और कमजोरियों पर भी बात होगी. प्रतिभा, अवसर और अनुकूल परिस्थितियों के बाद भी धोनी सफलतम कप्तान और महत्वपूर्ण खिलाड़ी से आगे नहीं जा सकेंगे. बहुत संभव है कि 2015 वर्ल्ड कप के बाद धोनी क्रिकेट के सभी संस्करणों से संन्यास ले लें. उनके जाने के बाद भी धोनी की झलक टीम में ढूंढ़ी जाएगी. जैसे आज भी सचिन की झलक क्रिकेट प्रेमी ढूंढ़ते हैं. हो सकता है कोहली की कप्तानी में, पुजारा के धैर्य में और रोहित शर्मा की आक्रामकता में धोनी का एक-एक हिस्सा प्रंशंसक ढूंंढ़ते रहें.
कहते हैं महान से महानतम बनने की यात्रा बहुत मुश्किल होती है. आईपीएल और विवादों के साथ टेस्ट के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया, कुछ चुनिंदा खिलाड़ियों को असफल रहने के बाद भी बार-बार मौके देना. ये कुछ ऐसी बातें हैं जो महेंद्र सिंह धोनी के मूल्यांकन में हमेशा उनके लिए नकारात्मक रहेंगी. इसके बाद भी धोनी सिर्फ एक खिलाड़ी और कप्तान भर नहीं हंै. छोटे शहरों और कस्बाई युवाओं के सपनों और संघर्ष की मिसाल हैं. लाखों युवाओं के लिए सपने देख सकने की हिम्मत देने वाले स्रोत हैं. दरअसल निम्न मध्यवर्ग से आए सभी संकोची, लेकिन महत्वाकांक्षी युवाओं के प्रेरणास्त्रोत हैं. भारतीयों के जीवन में ही क्रिकेट है और क्रिकेट के विशालतम ग्रंथ का महत्वपूर्ण अध्याय टेस्ट में धोनी के संन्यास के साथ समाप्त हो गया.