जब हम विकास से पूछते हैं कि उन्हें जमानत पर रिहा हुए एक सप्ताह हो चुका है, क्या इस दौरान उनके जीवन में कोई बदलाव आया है? क्या वो अब अपने परिवार की मदद कर पा रहे हैं? इन सवालों के जवाब देने से पहले विकास रिपोर्टर काे देखकर हंसते हैं और फिर कहते हैं, ‘मदद क्या कर सकता हूं. मेरी मां बीमार है… बिस्तर पर है. मेरे पास नौकरी नहीं कि मैं उसका इलाज करा सकूं. मेरी एक बेटी है. वो तीन साल की है. मैंने सोचा था कि उसे पहले दर्जे से ही अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ाऊंगा लेकिन फिलहाल मैं ऐसा नहीं कर सकता. नौकरी करने की सोच रहा हूं लेकिन जब तक इस मामले में फैसला नहीं आ जाता तब तक कहीं नौकरी नहीं मिलेगी. अब आप ही बताइए कि जमानत मिलने से मेरी जिंदगी कितनी बदल गई? हां… इतना हुआ कि मैं जेल में नहीं हूं और अपने परिवार के साथ रह रहा हूं लेकिन इतना काफी तो नहीं होता?’
फिलहाल हमारे पास विकास के किसी भी सवाल का जवाब नहीं है. हां… हमारे पास इनके लिए एक के बाद एक कई सवाल हैं. हम अपना अगला सवाल विकास के सामने रखते हैं. हम उनसे जानना चाहते हैं कि अब वो क्या करने की सोच रहे हैं. इस सवाल के जवाब में विकास कहते हैं, ‘कुछ तो करना ही होगा… बेरोजगार तो रहा नहीं जा सकता… मैं ऐसे किसी परिवार से तो हूं नहीं कि अगर काम नहीं करूंगा तब भी सब कुछ ठीक से चलता रहेगा. मैं तो रोज कमाने और खाने वाले परिवार से हूं. अगर मैं काम नहीं करूंगा तो मेरे परिवार को खाने के लाले पड़ जाएंगे. देखते हैं आगे क्या करना है? अभी कुछ सोचा नहीं है…’
विकास से हमारी ये बातचीत गुड़गांव के जिला एवं सत्र न्यायालय के परिसर में हो रही है. वो अदालत में पेशी के लिए आए हैं और अब वक्त हो गया है कि वो अदालत के सामने हाजिर हों. विकास हमसे विदा लेते हैं लेकिन जाते-जाते कहते हैं, ‘बतलाने के लिए बहुत कुछ है लेकिन इससे कोई फायदा नहीं है. जो होना था सो हुआ और जो आगे होना होगा वो भी होगा ही…’