हमने उनसे कुछ जानना चाहा तो वो बोले, ‘एक्के बात के बार-बार पूछ रहे से… देख्यो नहीं हमारी हालत. चले जाओ यहां से… हमें कुछ न बताना… देख ना रहा हमारी हालत… चले जा यहां से… हमें न करनी बात…’ चतर सिंह हमें चले जाने को कहते हैं लेकिन हमारे जाने का इंतजार किए बिना, खुद ही हमसे दूर चले जाते हैं. हम उन्हें जाते हुए देख रहे हैं. वो हमसे थोड़ी दूर जाकर एक पेड़ के नीचे बैठे गए हैं. घुटनों के सहारे जमीन पर बैठे चतर सिंह के दोनों हाथ उनके िसर पर हैं. वो हमारी तरफ देख भी नहीं रहे हैं. कई कोशिशों के बाद हम में इतनी हिम्मत शेष नहीं है कि फिर से चतर सिंह के करीब जाएं और उनसे पूछें कि जब उनका दामाद जेल चला गया तो इससे उनकी जिंदगी किस-किस तरह से बदली.