‘सितंबर 2014 की बात है… मेरी मां अस्पताल में भर्ती थी… पुलिस कस्टडी में मैं उनसे मिलने अस्पताल गया था… मेरे मिलकर आने के दो दिन के बाद ही मां ने दम तोड़ दिया… घर वालों ने बताया कि वो बार-बार मेरा ही नाम ले रही थीं… मुझे याद कर रही थीं लेकिन जब उनके प्राण निकले तो मैं वहां नहीं था… मुझे अगले दिन मालूम हुआ कि मेरी मां अब इस दुनिया में नहीं है… पुलिस कस्टडी में ही मैं अपनी मां के अंतिम संस्कार में भाग ले पाया… इसके अगले दिन ही मुझे फिर से जेल में डाल दिया गया.’
हरियाणा के कैथल निवासी नरेश कुमार के जीवन का सबसे बड़ा दुख यही है. अपने इस दुख के लिए वो देश की व्यवस्था को दोषी मानते हैं. वो कहते हैं, ‘जिस दिन प्लांट में झगड़ा हुआ उस दिन मैं छुट्टी पर था…मेरे एक संबंधी के यहां शादी थी… मैं वहां था… फिर भी जब मुझे मालूम हुआ कि पुलिस मुझे खोज रही है तो मैं खुद ही पुलिस के सामने पेश हो गया… मुझे नहीं मालूम था कि वो मुझे गिरफ्तार करके जेल में डाल देंगे जहां से मैं 30 महीने बाद जमानत पर बाहर आ सकूंगा.’
नरेश के अनुसार वो खुद ही पुलिस के सामने पेश हुए थे लेकिन पुलिस के मुताबिक नरेश को मानेसर में मारुति प्लांट के बाहर से गिरफ्तार किया गया था. जब हम पुलिस द्वारा दिए गए तथ्य को नरेश के सामने रखते हैं तो वो कहते हैं, ‘पुलिस के मुताबिक तो सारे के सारे लड़के वहीं से गिरफ्तार किए गए हैं. लेकिन वास्तविकता ऐसी नहीं है. तीन साल होने वाले हैं इस मामले को. अब तो कुछ दिन में फैसला ही आ जाएगा. फैसला आने के बाद यह तय हो जाएगा कि सही कौन है और गलत कौन है.’
मामले की अंतिम सुनवाई इसी साल जुलाई में होने वाली है और इसके बाद अदालत का फैसला आ जाएगा. इस फैसले का इंतजार नरेश के साथ-साथ वो सारे मजदूर भी कर रहे हैं जो जमानत पर रिहा हो चुके हैं या अभी भी जेल में ही हैं.