​गिलगित-बाल्टिस्तान को लेकर पाकिस्तान से नाराज अलगाववादी

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Photo- AFP

कश्मीर के अलगाववादी नेता फिर एक बार गुस्से में हैं. हालांकि इस बार कारण भारत सरकार नहीं बल्कि पाकिस्तान सरकार है. पाकिस्तान सरकार ने गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का संवैधानिक प्रांत बनाने का प्रस्ताव रखा है, जिसके बाद जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के अध्यक्ष यासीन मलिक ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को एक पत्र भेजा है. 12 जनवरी को लिखे गए इस पत्र में मलिक ने शरीफ से पाक अधिकृत कश्मीरी क्षेत्र की प्रांतीय स्थिति न बदलने का आग्रह किया है क्योंकि इससे कश्मीर विवाद बदतर हो जाएगा. मलिक लिखते हैं, ‘कई बार ये संभावनाएं उठती रही हैं कि आपकी सरकार में गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान में मिलाने पर आम सहमति बन सकती है. इससे जम्मू-कश्मीर पर चल रहा विवाद और उलझेगा. अगर पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान को अपने संवैधानिक अधिकार में ले लेता है तो भारत को इसे कश्मीर के साथ एकीकृत करने का राजनीतिक और नैतिक अधिकार मिल जाएगा.’

हुर्रियत अध्यक्ष सैयद अली शाह गिलानी ने इस पर और कड़ी प्रतिक्रिया दी है. उनका कहना है कि सरकार के पास गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान में मिलाने का कोई संवैधानिक और नैतिक तर्क नहीं है, साथ ही ऐसा कोई कदम उठाना कश्मीरियों के साथ धोखा करने जैसा होगा. गिलानी कहते हैं, ‘साथ ही ऐसा करना कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र के दिए गए प्रस्तावों का सीधा हनन है.’ वहीं हुर्रियत के उदारवादी धड़े के अध्यक्ष मीरवाइज़ उमर फारूक का कहना है कि पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान को अपना पांचवां प्रांत बनाने से भारत को लद्दाख को मिलाने का बहाना मिल जाएगा, जबकि अगर भौगोलिक रूप से देखें तो ये एक ही क्षेत्र यानी अविभाजित कश्मीर का ही हिस्सा है.

गिलगित-बाल्टिस्तान को लेकर छिड़े इस हो-हल्ले की शुरुआत नवाज़ शरीफ के एक सुधार कमेटी के गठन के बाद हुई, जिसे शरीफ ने इस प्रांत का एक रोडमैप तैयार करने की जिम्मेदारी दी थी. इस कमेटी के मुखिया, विदेशी मामलों में शरीफ के सलाहकार सरताज़ अज़ीज़ हैं. बीते कुछ महीनों में ये कमेटी इस्लामाबाद में तीन बैठकें कर चुकी है, जिसमें इस बात पर चर्चा की गई कि कैसे इस मुद्दे को संभाला जाए कि ऐसा करने पर कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की स्थिति प्रभावित न हो.

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इस्लामाबाद की तरफ से इस प्रांत के मुद्दे पर जल्दबाजी करने की वजह लगभग 46 अरब डॉलर की लागत का चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा है. विवादित क्षेत्र में इस निवेश को कानूनी जामा पहनाने के लिए चीन कथित तौर पर पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है. अरबों डॉलर के इस प्रोजेक्ट के लिए गिलगित-बाल्टिस्तान प्रवेश द्वार का काम करेगा. चीन इस क्षेत्र में औद्योगिक पार्क, हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट, रेलवे लाइन और सड़कें बना रहा है. इसके अलावा इस प्रोजेक्ट में काराकोरम हाईवे का विस्तार चीन के अशांत रहने वाले शिंजिआंग सूबे तक किया जाएगा. इससे घाटी तक चीन को मुक्त और ट्रेन से तेज रफ्तार पहुंच मिलेगी. एक बार गिलगित-बाल्टिस्तान और पाकिस्तान के अन्य प्रांतों तक रेलवे लाइन और सड़कों का काम पूरा हो जाने पर, ग्वादर, पासनी और ओरमारा में चीन द्वारा निर्मित नौसेना बेस के रास्ते आने वाले चीनी कार्गो को पाकिस्तान पहुंचने में सिर्फ 48 घंटे लगेंगे. अभी इसमें 16 से 25 दिन का समय लगता है.

ये मुद्दा इसलिए और जटिल है क्योंकि यह क्षेत्र अविभाजित कश्मीर का हिस्सा है और इसलिए इसे इस विवादित क्षेत्र से अलग नहीं किया जा सकता. इस मामले में न ही इस्लामाबाद से इस क्षेत्र के संवैधानिक संबंधों से मदद मिल रही है और न ही भारत का इस आर्थिक गलियारे को गिलगित-बाल्टिस्तान से गुजारने पर की गई आपत्ति से ही कोई फर्क पड़ा है.

एक हालिया बयान में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा है कि पूरा जम्मू कश्मीर, जिसमें वर्तमान में पाक अधिकृत हिस्सा भी आता है, भारत का ही अभिन्न हिस्सा था. उन्होंने बताया कि सरकार के पास गिलगित-बाल्टिस्तान की राजनीतिक स्थिति से जुड़ी कई रिपोर्ट हैं, जिन पर वह संज्ञान ले रही है. स्वरूप ने मीडिया से कहा कि भारत का रवैया इस पर बिलकुल साफ है.

पाकिस्तान अब अपने द्वारा दिए गए एम्पावरमेंट एंड सेल्फ गवर्नेंस आॅर्डर, 2009 को संशोधित करना चाहता है. इस आॅर्डर के अनुसार गिलगित-बाल्टिस्तान में विधानसभा और गिलगित-बाल्टिस्तान काउंसिल बनीं, जिसने इस क्षेत्र के लोगों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार दिया. इस तरह गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का संवैधानिक हिस्सा बने बिना ही एक ‘डीफेक्टो’ (वास्तविक जैसा) क्षेत्र का दर्जा मिल गया, जिससे लगभग 15 लाख लोगों को अपनी सरकार और अपना मुख्यमंत्री चुनने का अधिकार मिला. इस क्षेत्र में पहला चुनाव 2009 में हुआ, जिसमें पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी सत्ता में आई. 5 साल के कार्यकाल के बाद जून 2015 में दूसरे चुनाव हुए, जिसमें मौजूदा प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) को बहुमत मिला.

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हालांकि, असली सत्ता हमेशा से इस क्षेत्र के प्रशासन के जिम्मेदार रहे कश्मीरी मामलों और उत्तरी क्षेत्र के मंत्रालय के हाथ में ही रही, जिसने सिर्फ असंतोष को बढ़ाया.

एक पाकिस्तानी दैनिक के हवाले से, इस प्रस्ताव के लागू हो जाने के बाद गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान के अस्थायी संवैधानिक हिस्सा हो जाएंगे. संविधान में शामिल होने के अलावा इस हिस्से से दो प्रतिनिधि पाकिस्तान की संसद में भेजे जाएंगे. हालांकि उन्हें पर्यवेक्षक का ही दर्जा दिए जाने की संभावना है.

पाकिस्तान से गिलगित-बाल्टिस्तान का रिश्ता 1947 में उसके इस क्षेत्र के आधिपत्य के बाद से काफी बदल गया है. तब 24 साल के मेजर ब्राउन ने जम्मू कश्मीर नरेश हरि सिंह द्वारा नियुक्त गवर्नर ब्रिगेडियर घंसारा सिंह को सत्ता से हटाकर गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान के हवाले कर दिया था. हालांकि, पाकिस्तान ने स्थानीय नेताओं द्वारा दिए गए विलय के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया क्योंकि इससे पूरे कश्मीर पर पाकिस्तान की दावेदारी कमजोर हो जाती. इस्लामाबाद में बैठी सरकार ये भी चाहती थी कि इस इलाके के ज्यादा से ज्यादा पाक समर्थक संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में होने वाले जनमत-संग्रह में भाग लें, जिससे उनके जीतने की संभावनाएं बढ़ जाएं.

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इस इलाके का क्षेत्रफल 85,793 वर्ग किमी. है पर 1970 में पाक सरकार ने इसे ‘आजाद जम्मू कश्मीर’ और उत्तरी इलाकों में बांट दिया था. जहां ‘आजाद जम्मू कश्मीर’ को 1974 में ‘सेमी-स्टेट’ का दर्जा मिल गया, ये उत्तरी इलाके संवैधानिक रूप से अधर में ही लटके रहे. 2009 में सरकार बनने के बाद स्थितियां बदलीं. इससे न केवल उत्तरी इलाकों को स्थानीय सरकार मिली, बल्कि गिलगित-बाल्टिस्तान का नाम भी मिला, जिससे यहां के लोगों पहचान मिली. पर अब इस इलाके के लोगों की और प्रामाणिक संवैधानिक पहचान की मांग को भारत ही नहीं बल्कि नियंत्रण रेखा के कश्मीरियों के भी कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है. सितंबर 2012 में गिलगित-बाल्टिस्तान की विधानसभा ने इस इलाके को प्रांतीय दर्जा देने के एक सुझाव को मंजूरी दी थी पर तुरंत ही इसे पाक अधिकृत कश्मीर की सरकार का प्रतिरोध भुगतना पड़ा. इसके बाद 13 जनवरी को, इस्लामाबाद सरकार के गिलगित-बाल्टिस्तान को प्रांतीय दर्जा देने की गंभीरता को समझते हुए, पाक अधिकृत कश्मीर की विधानसभा ने सम्मिलित रूप से, इस प्रस्तावित कदम के विरोध में दो सुझाव दिए.

पहले प्रस्ताव के अनुसार, गिलगित-बाल्टिस्तान को पांचवां पाकिस्तानी प्रांत बनाने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाक जम्मू कश्मीर मुद्दे पर कमजोर पड़ जाएगा. दूसरा, गिलगित-बाल्टिस्तान जम्मू कश्मीर का हिस्सा है, और अगर कभी भी यहां के लोगों के बीच कोई जनमत-संग्रह करवाया जाता है तो जम्मू-कश्मीर के बाकी हिस्सों की तरह ही, यहां के लोगों को भी अपने भविष्य के बारे में फैसला लेने का अधिकार मिलना चाहिए. पाक अधिकृत कश्मीर सरकार के पुनर्वास मंत्री अब्दुल मजीद का कहना है, ‘जम्मू-कश्मीर को अलग करने के किसी भी कदम के विरोध में खड़े होना हमारी संयुक्त जिम्मेदारी है.’

इस तरह गिलगित-बाल्टिस्तान का क्षेत्र एक भू-राजनीतिक खेल में फंस गया है, जहां चीन इसको आर्थिक गलियारे के अपने फायदे के रूप में इस्तेमाल कर रहा है, जो कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है.

इस क्षेत्र को इसी स्थिति में रहने देने का अर्थ  होगा अविभाजित कश्मीर के साथ इसकी पहचान, जिससे यह क्षेत्र स्वतः ही भारत-पाक के बीच कश्मीर को लेकर चल रहे विवाद का हिस्सा बन जाता है. कश्मीरी अलगाववादियों का इस क्षेत्र को प्रांत का दर्जा देने पर भड़कना इस बात की ही पुष्टि करता है.

मलिक ने नवाज़ को लिखे पत्र में कहा है, ‘अगर आपकी सरकार गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान में मिलाती है और इसके परिणामस्वरूप अगर भारत पूरे कश्मीर पर संयुक्त रूप से अपना हक बताता है, तो ये लोगों कि उम्मीदों का सौदा करने जैसा होगा. कश्मीर मसला सिर्फ जमीन या क्षेत्र का ही तो नहीं है. ये लोगों के हक का है. जमीन के बदले इन हकों का सौदा लोगों की महत्वाकांक्षाएं कुचलना होगा.’