
‘देखिए भैया, हम बहुत मेहनत करके शाम की रोटी का जुगाड़ करते हैं. हमें ये पता है कि हम मेहनत नहीं करेंगे तो बच्चों के साथ भूखा ही सोना पड़ेगा. ऐसे में हम अपनी मेहनत का श्रेय भगवान को नहीं दे सकते. या कहिए कि हम भगवान को नहीं मानते हैं. आपको आपका भगवान रोटी देता होगा, आप मानिए. हमको रोटी हमारी मेहनत की मिलती है. हमको समाज में इज्जत हमारे कर्मों से मिलती है, तो हम इसे ही सबसे बेहतर मानते हैं.’ ये कहना है शांति देवी का. शांति देवी उत्तर प्रदेश के बरूर गांव (कानपुर देहात) की रहने वाली हैं और गांव की प्रधान भी रह चुकी हैं.
शांति ने बीए तक की पढ़ाई की है और लंबे समय तक अपने गांव की प्रधान भी रही हैं. हमारे देश में जहां धर्म की जड़ें बहुत गहरी हैं और उसकी रक्षा के नाम पर आतंकवाद से लेकर दंगे तक होते रहे हैं, वहां शांति देवी जैसे कुछ लोगों की ये बातें अजीब लगती हैं. बहरहाल ऐसा कहने वाली शांति अकेली नहीं हैं. हाल ही में जारी किए गए जनगणना 2011 के आंकड़ों में बताया गया है कि देश में 28 लाख से अधिक लोग छह प्रमुख धर्मों में से किसी का पालन नहीं करते हैं. वे नास्तिक हैं. इनमें से 5.82 लाख उत्तर प्रदेश में हैं. इसमें से एक बड़ा वर्ग अर्जक संघ से जुड़ा हुआ है.
अर्जक संघ उत्तर प्रदेश में सक्रिय सबसे बड़ा नास्तिक समूह है. इसका प्रभाव कानपुर, बस्ती, फैजाबाद, वाराणसी, फतेहपुर, इलाहाबाद और प्रतापगढ़ के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में फैला हुआ है. साथ ही इस संघ से बिहार व झारखंड में भी लोग जुड़े हुए हैं. शांति इसी अर्जक संघ से जुड़ी हुई हैं. वे कहती हैं, ‘हम हमेशा से नास्तिक नहीं थे, लेकिन कई साल पहले जब हमारे पति ने ये बातें समझाईं तो लगा कि वह सही बोल रहे हैं. अगर हम थोड़ा सा भी दिमाग लगाएंगे तो पता चल जाएगा कि भगवान तो है ही नहीं, फिर हम क्यों फालतू में उनके चक्कर में परेशान होते हैं.’
‘आपके पास चढ़ावे के लिए पैसा है तो आपने पंडित जी, मौलवी जी को घूस दिया और आपके सारे कष्ट दूर. इससे बड़ा मजाक कुछ और हो नहीं सकता है. इस तरह तो आप भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं’
कुछ ऐसा ही मानना बरूर गांव के पूर्व प्रधान यशवंत सिंह का भी है. 65 वर्षीय यशवंत कहते हैं, ‘आपको आज का माहौल तो पता ही है. धर्म के नाम पर लोग इतने पागल हो गए हैं कि सिर्फ बीफ की अफवाह पर किसी की पीट-पीटकर हत्या कर दे रहे हैं. धर्म को बचाने के नाम पर जेहाद करते हैं. यहां तक कि धर्म की राजनीति करके सरकारें गिराई और बनाई जा रही हैं. अब मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि ऐसा करके हम अपने समाज को किस तरफ ले जा रहे हैं. एक तरफ दुनिया के वैज्ञानिक ब्रह्मांड की उत्पत्ति वाले कण की खोज करने का दावा कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सामाजिक और धार्मिक पिछड़ेपन के शिकार लोग आस्था के नाम पर अंधविश्वास के अंधे कुएं से बाहर नहीं आना चाहते.’ यशवंत से बातचीत करते हुए हम बरूर गांव की गलियों में घूमने लगते हैं.
आगे हमारी मुलाकात कुंती वर्मा से होती है. वे अपने घर के बाहर वाले चौखट पर बैठी होती हैं. कुंती कहती हैं, ‘हम भगवान की पूजा नहीं करते हैं, आप हमारे घर में आकर देख लीजिए, अगर आपको पूजा घर या भगवान के कैलेंडर मिल जाएं. यह हमारे घर का ही हाल नहीं है. आप इस गांव के ज्यादातर घरों में ऐसा ही पाएंगे. लेकिन आप यह न समझिए कि हम त्योहार नहीं मनाते. हमारे गांव में धार्मिक त्योहार से ज्यादा धूमधाम से राष्ट्रीय त्योहार मनाया जाता है.’ जब हमने उनसे पूछा कि क्या गांव में लोग पूजा-पाठ नहीं करते हैं तो उन्होंने कहा, ‘कुछ साल पहले तक गांव के ज्यादातर लोग पूजा-पाठ के चक्कर में नहीं फंसते थे, पर अब कुछ लोग पूजा-पाठ करने लगे हैं. उन्हें पता होता है कि हम भगवान में विश्वास नहीं करते हैं तो हमें नहीं बुलाते हैं. हां, कई बार प्रसाद वगैरह दे जाते हैं, कहते हैं मिठाई समझकर खा लीजिए.’ इसी बातचीत के दौरान यशवंत जी कहते हैं, ‘हमारे गांव में पिछले कई दशकों से किसी मंदिर का निर्माण नहीं किया गया है. जो लोग पूजा-पाठ करना चाहते हैं, उन्हें कोई रोकता नहीं है. जब मैं प्रधान था तो कई बार लोगों के ऐसे धार्मिक अनुष्ठानों में जाना भी पड़ता था पर हम पर कोई दबाव नहीं डालता था.’ वह आगे कहते हैं, ‘देखिए, भगवान है या नहीं है इस विवाद में हम नहीं पड़ना चाहते हैं. हम मानववादी लोग हैं, अर्जक संघ भी मानव को श्रेष्ठ मानता है. अर्जक का अर्थ है वह समुदाय जो हाथ मजदूरी या श्रम के काम में लगा रहता है और यही कारण है कि जो लोग ब्राह्मण या सवर्ण जाति में जन्म लेते हैं उनके लिए इस संगठन की सदस्यता खुली हुई नहीं है. अर्जक संघ ब्राह्मणवाद, मूर्तिपूजा, भाग्य या किस्मत, पुनर्जन्म, आत्मा आदि का कट्टर विरोधी है.’ सवर्ण जातियों को संघ में शामिल न किए जाने का कारण पूछे जाने पर यशवंत कहते हैं, ‘दूसरे धर्मों के धर्मग्रंथों की तरह हिंदू धर्मग्रंथों को भी ईश्वर की इच्छा बताया जाता है. क्या यह ईश्वर की इच्छा है कि आप अपने कर्मों की वजह से नीच जाति में जन्म लेते हैं और ब्राह्मण सामाजिक व्यवस्था के ऊपरी पायदान पर हैं. दरअसल यह एक पाखंड है. हम इसी पाखंड के विरोधी हैं.’

वे कहते हैं, ‘अर्जक संघ रामायण को ‘ब्राह्मण महिमा’ मानता है और 1978 में दयानतपुर गांव में उसके संस्थापक रामस्वरूप वर्मा ने रामायण की कॉपियों को जलाया था. उस दौरान करीब 80 लोगों को हिरासत में ले लिया गया था. इलाके में माहौल बहुत खराब हो गया था. आप समझ सकते हैं कि आज से करीब चार दशक पहले ऐसी बात करना कितना कठिन रहा होगा.’ 1978 में हुई गिरफ्तारी में दयानकपुर गांव के राम आधार कटियार भी शामिल थे. वह अभी समाजशास्त्र के प्रवक्ता पद से रिटायर हुए हैं. राम आधार उस दिन को याद करते हुए कहते हैं, ‘वह हमारे लिए बहुत बड़ा दिन था. हमने पहली बार उस व्यवस्था को खारिज किया था जिसके जरिए सदियों तक हमें गुलाम बनाया गया था. पहली बार वैज्ञानिक आधार और तार्किक ढंग से बात कही गई थी. इसका फल हमें मिला, हमें बराबरी का एहसास हुआ.’ यह पूछे जाने पर कि क्या उसके बाद गांव में हालात फिर पहले जैसे सामान्य हो पाए या सवर्णों और बाकी जातियों में तनाव बना रहा, राम आधार कहते हैं, ‘शुरुआत के कई सालों तक हमारे बीच में काफी तनाव रहा, लेकिन धीरे-धीरे सब सामान्य होता गया. दरअसल कई सदियों से शीर्ष पर कायम ब्राह्मणों को जब चुनौती मिली थी तो वह बौखला गए. गांव में बहुत तरह की बातें हुईं, पुरानी पीढ़ी ज्यादा कट्टर थी. पर अब सब सामान्य है.’
अर्जक संघ से जुड़ने का भी वे बड़ा मजेदार कारण सुनाते हैं. वे कहते हैं, ‘देखिए, विकास के कितने भी दावे कर लिए जाएं पर हकीकत आज भी वही है कि शिक्षा और ज्ञान की कमी से जूझ रहे लोगों में अंधविश्वास जड़ तक समाया हुआ है. इसके शिकार महिला और पुरुष दोनों बन रहे हैं. अब आप लोगों की समस्याएं सुनिए. किसी की नौकरी चली गई है, किसी को बेटा नहीं हो रहा है, किसी का पति शादी के बाद परदेस चला गया है, किसी की शादी में बार-बार रुकावटें आ रही हैं, किसी बेटे या मां को कोई बीमारी हो गई है. अब इसका उपाय यह है कि इसके लिए आप पंडे और मौलवी की शरण में चले जाएं. पूजा-पाठ, व्रत, उपवास रखने लगें. ये सारी बातें ठीक हो जाएंगी. मुझे लगता है कि आज के समय में ऐसे काम करने से बेहतर है कि आप अपने ऊपर भरोसा करें और अपने लोगों पर भरोसा करें जो आपको सही सलाह व मदद दे सकें.’
इस बात पर यशवंत कहते हैं, ‘आप अगर इन बातों को लेकर किसी पंडे या मौलवी के पास जा रहे हैं या भगवान को चढ़ावे चढ़ा रहे हैं तो एक तरह से आप भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं. आखिर आपके पास चढ़ावे के लिए पैसा है तो आपने पंडित जी, मौलवी जी को घूस दिया और आपके सारे कष्ट दूर. इससे बड़ा मजाक कुछ और हो नहीं सकता है. ब्राह्मणवादी व्यवस्था ने हमारे समाज में भ्रष्टाचार को जन्म दिया और उसे बढ़ावा भी दिया है.’
बहरहाल, तकनीक के इस दौर में अंधविश्वास के प्रति बढ़ रही आस्था वाकई हमारे समाज पर सवाल खड़ा कर रही है. जबकि पचास के दशक के उत्तरार्द्ध में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने धारा 51 ए को लेकर अपना मसविदा संसद के सामने पेश किया था, जिस पर संसद ने मुहर लगाई थी. उन दिनों की संसद की बहसें बताती हैं कि सांसदों के विशाल बहुमत ने अंधश्रद्धा से मुक्त होकर स्वाधीन भारत की प्रगति की दिशा में आगे बढ़ने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की थी. भारतीय संविधान की धारा 51 ए सभी नागरिकों का मूल कर्तव्य तय करते हुए सभी को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने और तर्क की प्रवृत्ति विकसित करने पर जोर देती है. अर्थात भारतीय संविधान समाज में वैज्ञानिक सोच स्थापित करने पर जोर देता है. अर्जक संघ इसी को बढ़ावा देने के काम में लगा हुआ है.
जब आप कानपुर देहात में सिकंदरा के पटेल चौक से गुजरेंगे तो अर्जक संघ के कार्यालय पर आपकी नजर पड़ेगी. एक पुरानी-सी खस्ताहाल इमारत जिस पर लिखा हुआ है, ‘भगवान से यदि न्याय मिलता तो न्यायालय नहीं होते, सरस्वती से यदि विद्या मिलती तो विद्यालय नहीं होते.’ बाहर से देखने और इसके अंदर जाने पर भी आपको यह एक बेहद सामान्य-सा कार्यालय नजर आता है, लेकिन यह जो काम कर रहा है वह बड़े संगठनों को सीख देने लायक है.