‘लोगों को बरगलाने के लिए कहा जा रहा है कि भगत सिंह हमारे हैं’

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लोगों को बरगलाने के लिए मुखौटे डालकर हर तरफ से यह कहा जा रहा है कि भगत सिंह हमारे हैं और हम भी उन्हीं के जैसे हैं. भगत सिंह के होने का मतलब वह है जो कुछ उन्होंने असेंबली में बम फेंकने के बाद कहा था. जो भगत सिंह के विचारों के एकदम उलट काम कर रहे हैं, वे भी भगत सिंह पर दावा पेश कर रहे हैं. यहां तक कि भाजपा भी उनको अपना बता रही है. भगत सिंह को पगड़ी पहना दें, ये नारे लगा दें, वो नारे लगा दें, यही हाे रहा है. सेंट्रल असेंबली में जाने का निर्णय भगत सिंह ने जान-बूझकर लिया था जिसका कुछ उद्देश्य था. वह यह था कि अगर उनका एक नारा लोग समझ जाएंगे, तो इस व्यवस्था को पूरी तरह गरीबी और गुलामी से मुक्ति मिलेगी. उनके दो नारे थे, ‘इंकलाब जिंदाबाद’ और ‘साम्राज्यवाद का नाश हो’. यह जो द्वंद्वात्मक रिश्ता है शोषण और शोषक के बीच, जिसे गदर पार्टी ने स्पष्ट किया था, भगत सिंह सिर्फ यह चाहते थे कि लोग इसे समझें. कांग्रेस जब पूर्ण स्वराज की बात कर रही थी तब उसके पहले ही भगत सिंह कह रहे थे कि वैयक्तिक स्वतंत्रता मिले बिना पूर्ण स्वराज कैसे संभव है. वे यह चाहते थे कि लोग निजी स्तर पर अपनी आवाज उठा सकें और उन्हें बुनियादी नागरिक अधिकार प्राप्त हों, जो अंतरराष्ट्रीय नागरिक अधिकारों के तहत आते हैं.

भगत सिंह कहते थे कि हमारी लड़ाई दो चीजों को लेकर है- गुलामी और गरीबी. उस समय लोगों पर देशद्रोह के आरोप लगाने का जो षड्यंत्र चल रहा था, भगत सिंह उसके खिलाफ आवाज उठा र​हे थे. आज जब लोग अपने मुद्दे उठा रहे हैं तो उन पर कार्रवाई करके सरकार अपना फर्ज पूरा नहीं कर रही है. भगत सिंह ने शोषण, गरीबी, साम्राज्यवाद, पूंजीवाद आदि के खिलाफ युद्ध छेड़ा था. आज उनके सब मुद्दे गायब हैं. पार्टियां अभी जो कर रही हैं वह लोगों को मूर्ख बनाने के लिए कर रही हैं. एक तरफ नेशनल हाइवे बन रहे हैं तो उसी के ठीक बगल में घोर गरीबी में रह रहे अविकसित इलाके हैं. आप उस पर ध्यान नहीं दे रहे. मतलब आप सिर्फ और सिर्फ लोगों को मूर्ख बना रहे हैं. आप लोगों के लिए नौकरियों का सृजन नहीं कर रहे, जो कि सरकारों का कर्तव्य है. यह संविधान के ​नीति निर्देशक तत्वों में निहित है. वे कह रहे हैं कि पहले आप झंडा लगाइए. पहले आप संविधान की प्रस्तावना पढ़िए. और अगर झंडे की बात है तो अभी भी आरएसएस के आॅफिस पर झंडा नहीं है. 26 जनवरी और 15 अगस्त के अलावा वहां झंडा नहीं होता. अगर आप चाहते हैं कि हर जगह झंडा हो, तो पहले वहां आप झंडे को लेकर बात करें. लेकिन आप वह भी नहीं करेंगे.

आप अब तक जितनी बातें करते हैं उसमें हमारे तीन आदर्श- संविधान की प्रस्तावना, तिरंगा झंडा और नेशनल एंथम का अपमान ही करते हैं. और आप देशभक्त बन रहे हैं और राष्ट्रवाद की बात करते हैं. नौजवान भारत सभा के पर्चे में एक बात कही गई थी कि हम देश के 98 प्रतिशत लोगों के लिए स्वराज चाहते हैं. आज भी आप देखिए कि इस आजादी में 20 प्रतिशत लोग ही शामिल हैं. 80 प्रतिशत तो बाहर हैं. अभी-अभी आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की रिपोर्ट आई है कि भारत में 36 करोड़ लोग कंगाल हैं. उसकी कोई बात नहीं करता. इसीलिए मैं कहता हूं कि जल, जंगल, जमीन और संसाधनों को बचाना हमारा मूल कर्तव्य है. मूल कर्तव्यों को निबाहना राष्ट्रवाद है. और आज क्या है कि जो लोग देश को नष्ट कर रहे हैं, वही देशभक्त बने हैं.

नौजवान भारत सभा के पर्चे में एक बात कही गई थी कि हम देश के 98 प्रतिशत लोगों के लिए स्वराज चाहते हैं. आज इस आजादी में 20 प्रतिशत लोग ही शामिल हैं. 80 प्रतिशत तो अब भी बाहर हैं. भारत में 36 करोड़ लोग कंगाल हैं. उनकी कोई बात नहीं करता

भगत सिंह के अलावा सुभाष चंद्र बोस के साथ इन लोगों ने क्या किया. उनका इतिहास खोद रहे हैं ​लेकिन उनके विचारों पर कौन बात करता है. उनके विचार को तो हमने नहीं माना. उन्होंने रांची कांग्रेस में एक रिजोल्युशन पारित किया था कि साम्राज्यवाद से कोई समझौता नहीं किया जा सकता. अगर हमने साम्राज्यवाद से समझौता किया तो कई दशकों तक हमें दर्द झेलना पड़ेगा. वो दर्द हमने 1947 में सहा और आज तक सह रहे हैं.

मुख्य बात है कि व्यवस्था को आप बदलेंगे नहीं, जबकि भगत सिंह तो कोई बदला लेने वाले थे नहीं, वे तो व्यवस्था को बदलने की बात कर रहे थे. यही बात उन्होंने अपने कोर्ट के बयान में भी कही थी. जबकि हमने उनके साथ प्रचारित किया कि उन्होंने सांडर्स ​की हत्या की. उन्होंने तो मांग की थी कि उन्हें युद्धबंदी माना जाए और गोली से उड़ा दिया जाए.

भगत सिंह ने हमेशा शोषण के सवाल को उठाया. आज बस्तर में जो हो रहा है, जेएनयू जिससे अलग नहीं है, वहां जो हो रहा है, उसका मतलब आप यह नहीं चाहते कि लोगों को यह पता चले कि मोदी का एडवाइजर जो है, एप्को का वे हेनरी किसिंजर है. अमेरिकी कंपनी मोदी की एडवाइजर है और उसका एक रणनीतिकार हेनरी किसिंजर है. हेनरी किसिंजर ने इंडो​नेशियाई राष्ट्रपति सुहार्तो को यही कहा था कि पूर्वी तिमोर में लोगों को मरवा दीजिए, हम लोगों को पता नहीं चलने देंगे कि क्या हुआ है. इस तरह के लोग इनके सलाहकार हैं. इसीलिए सिर्फ प्रधानमंत्री कार्यालय काम करता है, बाकी मंत्रियों के पास काम ही नहीं है. उनको अपनी छुट्टी भी प्रधानमंत्री कार्यालय से लेनी पड़ती है.

उसके साथ जो हरियाणा में हुआ, वह सबसे खराब रहा. कोई नहीं जानता कि वहां क्या हो रहा है. पीएम के साथ मीटिंग के बाद जाटों का प्रदर्शन शुरू होता है. 23 दिसंबर को एक बड़ी मीटिंग थी जंतर मंतर पर और कहा जाता है कि नवजवानों को बुलाइए क्योंकि हमें नवजवानों का साथ मिला है. अब पूरा हरियाणा जलाकर के जातीय बैरियर खड़ा कर दिया गया. बात करते हैं सौहार्द की और पूरा राजनीतिक तंत्र ही सौहार्द बिगाड़ने में लगा है. भगत सिंह इन मसलों बहुत स्पष्ट मत रखते थे, जिन पर आज कोई अमल नहीं हो रहा है.

(लेखक भगत सिंह के भतीजे हैं)

(कृष्णकांत से बातचीत पर आधारित)