
गीतकार » इकराम राजस्थानी, सुनील चौधरी, अमिताभ वर्मा
संगीतकार » स्नेहा खानवलकर, अमल मलिक
जिन स्नेहा खानवलकर को हम जानते हैं, ‘प्रीत’ के हर रेशे में उनकी रौनक है. वही तबीयत, कभी न सुने गीत को बुनना-बनाना-सुनाना, और साजों-आवाजों से वही आवारागर्दी वाली यारी रखना. जसलीन कौर रॉयल ‘प्रीत’ को ‘काला रे’ की स्नेहा के आस-पास बैठकर ही गाती हैं और ऐसा सुखद जैसे कोई भोला बचपन सफेद कागज पर पहाड़, सूरज धीरे-से धीमे-से गढ़कर दुनिया की रगड़ खत्म कर रहा हो. शकील बदायूँनी के ‘जो मैं जानती बिसरत हैं सैंया’ से आत्मा लेता ‘प्रीत’ देह अपनी बनाता है, और अमिताभ वर्मा अपनी लिखाई से उस देह को प्यार के दुख में खोई एक जिंदगी की चमक देते हैं.