झारखंड 15 साल का हो गया. आप जैसे लोग झारखंड आंदोलन से जुड़े रहे हैं. इस 15 सालों के सफर में झारखंड की दशा-दिशा पर क्या सोचते हैं?
झारखंड बनने के लिए लंबा आंदोलन चला. राज्य बनने के पहले भीतरी-बाहरी की लड़ाई थी. हम लोगों ने समझ लिया कि ऐसा तो होगा नहीं कि यहां जो रह रहे हैं, उन्हें भगा दिया जाए. तो नया नारा दिया- कमानेवाला खाएगा, लूटनेवाला जाएगा. लेकिन यह सपना भी पूरा नहीं हो सका. हुआ बस यही कि झारखंड का बनना एक सांस्कृतिक जीत की तरह रह गया.
सपना पूरा नहीं हो सका तो किसे दोषी माना जाए?
किसी एक को दोषी नहीं माना जा सकता. लेकिन यह दुखद है. झारखंड ही वह इकलौता राज्य था जहां आदिवासियों के लिए पहली बार आवाज उठी थी. इसके पहले देश में महिलाओं, किसानों, मजदूरों के लिए कई आंदोलन तो हुए लेकिन आदिवासियों के अधिकार व मानवाधिकार के लिए पहला आंदोलन झारखंड में ही हुआ और वहां आदिवासियों के सपने का पूरा न होना दुखद तो है ही, लेकिन दुर्भाग्य यह भी रहा कि झारखंड का निर्माण उस समय हुआ, जब भूमंडलीकरण का जोर दुनिया में था और जीडीपी जैसा शब्द अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन गया था और भारत की जीडीपी झारखंड जैसे राज्य पर ही आकर टिक गई. भारत की जीडीपी बढ़ाने में झारखंड 15 सालों में बर्बाद हो गया.
कहने का मतलब कि पिछले 15 सालों में जो सरकारें रहीं, झारखंड को बर्बाद करने में उनसे ज्यादा भूमिका भूमंडलीकरण की रही. पहले पूरे राज्य में सड़क बनाने, स्कूल-अस्पताल बनाने के लिए एक पैसा तक नहीं होता था. राज्य बनने के बाद से सिर्फ अपार्टमेंट ही बनते रहे और बन रहे हैं. आप क्या कहेंगे ?
जो सरकार रही, वह तो भूमंडलीकरण के एजेंडे को ही आगे बढ़ाती रही. काॅरपोरेट हित में ही काम करती रही.
इसमें तो सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाली भाजपा के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसी पार्टियां भी शामिल रहीं ?
हां, किसी पार्टी की बात कर ही नहीं रहा. कांग्रेस भी रही. आजसू जैसी पार्टी रही. झामुमो भी रही. लालूजी की पार्टी भी रही. भाजपा तो लंबे समय तक रही ही.
इतने सालों तक आदिवासी ही मुख्यमंत्री रहे फिर भी उन्होंने आदिवासियों की पीड़ा नहीं समझी, क्यों ?
हां, यह बात सभी कहते हैं लेकिन यह भी तो सब जानते हैं कि इस देश की प्रधानमंत्री एक महिला भी हुई थी तो क्या देश में महिलाओं का विकास हो गया था. पुरुष सत्ता से महिलाओं को मुक्ति मिल गई थी. और जो ये सवाल उठाते हैं उनसे तो मैं यह कहता हूं कि सिर्फ आदिवासी सीएम की बात क्यों याद करते हैं. चार आदिवासी सीएम रहे तो चार बार राष्ट्रपति शासन भी रहा. आदिवासी सीएम सक्षम नहीं थे, गवर्नेंस चलाने में या राज करने में तो चार बार के राज्यपाल शासन में तो साबित करना चाहिए था झारखंड में विकास कराके. लेकिन सबसे बुरी स्थिति तो राष्ट्रपति शासन के दौरान ही रही.
झारखंड आंदोलन के आपके साथी शिबू सोरेन भी तो सत्ता में रहे, उनके बारे में क्या कहेंगे ?
हां. शिबू सोरेन रहे. वे झारखंड आंदोलन से जुड़े एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे. जब वे एमपी बने तो मैं उनके साथ दिल्ली में रहा था. उनके आवास पर. वे कहते थे कि शेर को तुम लोग पिंजरे में बंद कर दिया. शिबू स्थितियों को जान गए थे लेकिन वे कुछ कर नहीं सके. लेकिन दूसरे तो जान समझ भी नहीं सके. अर्जुन मुंडा आजसू आंदोलन के नेता थे लेकिन उनके समय में ही सबसे ज्यादा एमओयू हुए. बाबूलाल मरांडी के मुख्यमंत्री बनने के दो माह बाद ही कोयलकारो कांड हुआ था. नौ आदिवासी मारे गए थे और एफआईआर तक नहीं दर्ज हो सकी थी. मधु कोड़ा मुख्यमंत्री बने तो 4,500 करोड़ रुपये का घपला कर दिया. इसलिए सीएम कौन है, यह महत्वपूर्ण नहीं. झारखंड दूसरे किस्म के दुष्चक्र में फंसता गया. यहां अचानक पैसे की आवक बढ़ी. यह लूट का अड्डा बन गया. यहां जो भी सीएम बने वो इस्तेमाल होते रहे. आप देखिए कि दस साल पहले कोयले की कीमत क्या थी. दस साल में दस गुना बढ़ोतरी हुई. पिछले 15 सालों में झारखंड सिर्फ खनन का ही केंद्र बना रह गया. लेकिन वह भी अब ज्यादा दिन नहीं चलने वाला. झारखंड जल्द ही आॅस्ट्रेलिया की राह पर जाने वाला है.