कौन: मणिपुर के आदिवासी
कब: नवंबर, 2015 से
कहां: जंतर मंतर, दिल्ली
क्यों
जंतर मंतर पर बने एक अस्थायी टेंट के पास खड़े सैम नगैहते चिल्लाते हैं, ‘हमें गरीब आदिवासियों के लिए न्याय चाहिए.’ सैम ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की पढ़ाई कर रहे है. उनके साथ मणिपुर से आए कई सामाजिक कार्यकर्ता दिल्ली के प्रसिद्ध धरनास्थल जंतर-मंतर पर नवंबर की शुरुआत से ही डटे हुए हैं. ये लोग मणिपुर के चूराचांदपुर कस्बे में 1 सितंबर को पुलिस की गोलियों का शिकार हुए 9 युवा आदिवासियों के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं. मणिपुर विधानसभा द्वारा पारित तीन ‘आदिवासी विरोधी’ बिलों का विरोध करने के लिए एक प्रदर्शन हुआ था, जिसमें ये 9 युवा भी शामिल थे.
दिल्ली में इस प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे मणिपुर आदिवासी फोरम, दिल्ली (एमटीएफडी) ने टेंट के अंदर 9 प्रतीकात्मक ताबूत रखे हुए हैं.
घटना के विरोध में मृतकों के परिवारों ने शव लेने और दफनाने से मना कर दिया है. उनकी मांग है कि मणिपुर सरकार आरोपी स्पेशल पुलिस कमांडो के खिलाफ कार्रवाई करे, जिन्होंने कथित तौर पर फायरिंग की, जिससे प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों की मौत हो गई.
मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में कुछ समय से तनाव की स्थिति बनी हुई है. 31 अगस्त को बुलाए गए विधानसभा के विशेष सत्र में पास किए गए विवादित विधेयकों के कारण हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों ने कथित तौर पर एक सांसद और पांच विधायकों के घरों में आग लगा दी, जिसमें राज्य के स्वास्थ्य मंत्री फुंगजथंग तोनसिंग का घर भी शामिल था. प्रदर्शनकारियों ने विधायकों पर आरोप लगाया कि विधायकों ने उनके हितों का ध्यान नहीं रखा और जब विधेयक पास किए जा रहे थे तब वे मूकदर्शक बने रहे.
पुलिस का दावा है कि जब भीड़ ने आग बुझाने के लिए जा रही अग्निशमन की गाड़ियों को रोका गया तब उन्हें उग्र भीड़ पर फायरिंग करनी पड़ी. इस फायरिंग में 11 साल के बच्चे समेत कुल आठ लोगों की मौत हो हुई थी.