‘केवल कुत्तों और गायों को जीने दीजिए, शायद वही डिजिटल इंडिया के राजसी ठाठ-बाट के अधिकारी हैं’

हमारे पूर्वज वर्तमान युग को कलयुग (बुराई का युग) की संज्ञा देते समय एकदम सही थे. हिंदू पौराणिक मान्यता के अनुसार कलयुग की शुरुआत 5000 हजार वर्ष पहले पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध के साथ हुई, जिसकी अवधि 4,32,000 वर्ष है. आज चारों ओर के माहौल को देखते हुए इस समय को कलयुग ही कहा जा सकता है.

आप खुद ही देख लीजिए भारत के सबसे अमीर समुदायों में से एक, पटेलों द्वारा नियम कानून की परवाह न करते हुए आरक्षण की मांग की, आप किस तरह से इसकी व्याख्या करेंगे? इस उग्र आंदोलन के युवा नेता का कहना है कि अगर पुलिस रास्ते में आई तो पुलिस के लोग मारे जाएंगे.

राष्ट्रीय परिदृश्य तब और भी विडबंनापूर्ण होकर उभरता है जब हम पटेलों द्वारा कानून के इस प्रकार उल्लंघन की घटना को दिल्ली के सीमांत इलाके के दादरी में 50 वर्षीय मुस्लिम को भीड़ द्वारा मौत के घाट उतार देने की घटना के बरक्स रखते हैं. भीड़ के इस शख्स को मारने से पहले उसके परिवार के साथ गोमांस खाने की फैली अफवाह ने इसे धार्मिक चोला पहना दिया.

उत्तर प्रदेश के मुज्जफरनगर में 2013 में कथित रूप से मुस्लिम विरोधी हिंसा को भड़काने वाले के रूप से मशहूर शख्स ने इस बार ‘पवित्र गाय के रक्षक’ के रूप में सुर्खियां बटोरीं. हत्या की घटना के बाद भाजपा विधायक संगीत सोम ने दादरी पहुंच कर उस आग में घी डालने का काम किया जिसे संघ परिवार इससे जुड़े संगठन अपनी सांप्रदायिक कड़ाही के नीचे बड़ी मशक्कत से जलाए हुए है.

फिर जल्दी ही मीडिया में अलीगढ़ में इस गाय प्रेमी विधायक का गोमांस का कारखाना होने की खबर गूंजने लगीं. हिंदुत्व मूल्य गाय को अपनी जीविका के लिए मारने और गोमांस खाने वालों के लिए मौत की बात कहते हैं और बमुश्किल ही इस ‘गुनाह’ को माफ करते हैं पर उनके इस गोरक्षा अभियान के नायक का गोमांस का कारखाना चलाना उन्हें नहीं अखरता. ऐसा लगता है कि हिंदुत्व की विचारधारा इस विषय पर स्पष्ट है कि लाभ किसी भी कृत्य को क्षमा कर सकता है चाहे फिर वह गोहत्या पर आधारित व्यवसाय हो या फिर ‘गाय की रक्षा’ के नाम पर गरीब मुस्लिमों (या फिर ईसाईयों के खिलाफ भी जैसा कि ओडिशा के आदिवासी क्षेत्रों में हुआ है) के खिलाफ लामबंदी के लिए उकसाता हो.

दूसरी तरफ, केंद्र और कुछ राज्य सरकारें संघ का अभिन्न अंग हैं. वही संघ, जो दृढ़ता से अपनी ‘हिंदू राष्ट्र’ की विचारधारा के साथ खड़ा होता है. यही विचारधारा सीपीआई नेता और 17वीं शताब्दी के मराठा शासक शिवाजी की जीवनी लिखने वाले गोविंद पानसरे तथा हम्पी में कन्नड़ विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर एमएम कलबुर्गी जैसे स्वतंत्र विचारकों की हत्या का कारण भी बनती है.

एक तरफ इन हत्याओं की जांच करने और हत्यारों को पकड़ने में पुलिस की उदासीनता से निराशा होती है, दूसरी ओर साहित्य अकादमी जैसी बड़ी संस्थाओं की चुप्पी ने भारत के कुछ बड़े लेखकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हमारे संवैधानिक अधिकार की रक्षा के लिए आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया. उदय प्रकाश से जो शुरुआत हुई तो साहित्य अकादमी और साहित्य के लिए अन्य राज्य स्तर के पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों की फेहरिस्त बढ़ती ही जा रही है. यह दृश्य ‘सामूहिक चेतना वाले प्रबुद्ध’ लेखकों के विचार के प्रति भरोसा पैदा करता है.

इस बीच पूर्व पाकिस्तानी विदेश मंत्री की पुस्तक का लोकार्पण आयोजित करने के चलते संघ विचारक सुधींद्र कुलकर्णी के खिलाफ अपना गुस्सा दिखाकर शिवसेना गैर-सांप्रदायिक भारतीयों की नजरों में थोड़ा और चुभने लगी. सुधींद्र कुलकर्णी का काला चेहरा 21वीं सदी के भारत को पीछे अंधयुग की ओर धकेले जाने का सटीक प्रतीक है.

केवल उग्र हिंदुत्व की भीड़ ही नहीं बल्कि सड़कों पर घूमते आवारा कुत्ते भी आम जनता के लिए खतरा बनते जा रहे हैं. इस घटना को ज्यादा समय नहीं गुजरा है जब दिल्ली में एक रिक्शा चालक के घर में खेल रहे सात वर्षीय बच्चे को कुत्तों के एक समूह ने नोच कर मार डाला था. सैंकड़ों लोग कुत्तों के काटने से मर रहे हैं. मेरे साथी एक बार जब कुत्ते के काटने पर सरकारी अस्पताल पहुंचे तो वे कुत्ते के शिकार लोगों की लंबी लाइन देख कर हैरान रह गए. इस लाइन में अधिकांश झुग्गी में रहने वाले लोग थे जो रेबीज के टीके के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे.

मेरे इस साथी का अनुभव मुझे एक कैबिनेट मंत्री की याद दिलाता है जो अक्सर कुत्तों और बिल्लियों के अधिकारों के लिए जोर शोर से बोलते थे. अभिजन समाज के लोग अंधेरी रातों में सड़कों पर कुत्तों के आतंक के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं और इसलिए वे उनके अधिकारों के लिए खड़े हो सकते हैं. वे मंत्री मदर टेरेसा मिशनरियों द्वारा चलाए जा रहे 13 अनाथालयों के लाइसेंस रद्द करने से नहीं झिझके जबकि इन आश्रय स्थलों में लगभग 10 लाख ऐसे बच्चे थे जो पर्याप्त धन नहीं होने अथवा किसी किस्म की अशक्तता से ग्रस्त होने के कारण अपने अभिभावकों द्वारा त्याग दिए गए थे.

एक देश जिसका दुनिया को सबसे बड़ा योगदान महात्मा गांधी का अहिंसा का सिद्धांत और मदर टेरेसा का मानव मात्र के प्रति प्रेम है, ऐसा प्रतीत होता है कि आज वह स्वयं अपने उन मूल्यों को नकारता जा रहा हैै. लेकिन ठीक है, ऐसा होने दीजिए! केवल कुत्तों और गायों को जीने दीजिए, शायद वही डिजिटल इंडिया के राजसी ठाठ-बाट के अधिकारी हैं!

केंद्र और कुछ राज्य सरकारें संघ का अभिन्न अंग हैं. संघ, जो दृढ़ता से अपनी ‘हिंदू राष्ट्र’ की विचारधारा के साथ खड़ा होता है. यही विचारधारा स्वतंत्र विचारकों की हत्या का कारण भी बनती है