3-बजाय सिर्फ यह कहने के कि डीएमके के दबाव में आई केंद्र सरकार के दबाव में मुख्य न्यायाधीश ने आरोपित जज को गलत कार्यकाल विस्तार दिया जस्टिस काटजू अपने ब्लॉग में इसका आंखों-देखा हाल सुनाते हैं. लेकिन जब उनसे यह पूछा जाता है कि वे इस मामले को 10 साल तक दुनिया के सामने क्यों नहीं लाए या अब इसके बारे में क्यों बता रहे हैं तो वे सामने वाले को झिड़कने की हद तक नाराज हो जाते हैं. क्या वे नहीं जानते कि एक गलत तरीके से बनाया गया भ्रष्टाचारी जज देश का कितना नुकसान कर सकता है? क्या वे नहीं जानते कि वह जज अगर आगे जाकर हाईकोर्ट का जज बना तो सुप्रीम कोर्ट का भी बन सकता था और इसके और भी गंभीर परिणाम हो सकते थे? आज केवल इस मामले पर अकादमिक बहसें और विवाद आदि ही हो सकते हैं, लेकिन क्या वे तब कुछ नहीं कर सकते थे जब उस कथित भ्रष्टाचारी जज को देश और समाज का नुकसान करने से रोका जा सकता था? क्यों उन्होंने सिर्फ एक बार मुख्य न्यायाधीश से शिकायत करने के बाद इस मामले पर 10 साल का मौन व्रत रख लिया?
4- माना कि जस्टिस काटजू का उठाया मुद्दा पहले जितना न सही लेकिन आज भी बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन क्या जस्टिस काटजू उसके महत्व को खुद ही कम नहीं कर रहे हैं? गैर-जरूरी तफसील में जाकर, उनसे पूछे जाने वाले सवालों पर भड़ककर क्या वे मुख्य मुद्दे से ध्यान भटकाने का काम नहीं कर रहे हैं? अच्छा होता कि वे अपने आपको थोड़ा संयमित रखके केवल एक जज और जजों की नियुक्ति प्रक्रिया पर ही बात करते और जरूरी होने पर ही राजनीति और उसे साधने वालों को भी बीच में लाते. ऐसे नहीं कि सारा मुद्दा उनके बीच ही फुटबॉल बन जाए.
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Good article. Katju sahab ki surkhiyon me rahne ki adat hai isliye we ye sab karte rhte hai
पर आपने काटजू ने जो कहा है उसपर ज्यादा कुछ नहीं कहा है।