1. 15 नवंबर, 2000 को बिहार से अलग होकर झारखंड बना. एनडीए की सरकार बनी. भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री बने. भाजपा के 32 विधायक थे तो स्वाभाविक तौर पर उसका दावा था. पांच विधायक समता पार्टी के थे, तीन जदयू के, दो निर्दलीय. सबने मिलकर सरकार बनाई. लेकिन पार्टी में खिचखिच जारी रही और 17 मार्च, 2003 को मरांडी की सरकार चली गई. वजह रही समता पार्टी और जदयू के विधायकों का विरोध. उनमें से कोई बिजली बोर्ड के अध्यक्ष को हटाने की मांग कर रहा था तो कोई ट्रांसफर-पोस्टिंग में अपने अधिकार मांग रहा था. बात संभल न पाई. देखते ही देखते सत्ता पक्ष के सात विधायक विपक्ष की कुर्सी पर बैठ गए. तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने खुद ही मुख्यमंत्री बनने का दांव खेला, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए. यूपीए अपने विधायकों और मरांडी से नाराज एनडीए विधायकों को लेकर पिकनिक मनाने चला गया. मरांडी परेशान रहे, मैनेज करने की कोशिश में लगे रहे, लेकिन बात बन न सकी और भाजपा भी सत्ता बचाने के फेर में अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाने को राजी हो गई. मुंडा पुराने भाजपाई नहीं थे, झामुमो से राजनीति शुरू करने के बाद एक चुनाव पहले ही भाजपा में आए थे लेकिन उनकी किस्मत ने साथ दिया था तो भला कौन रोकता.
2. 18 मार्च, 2003 से दो मार्च, 2005 तक मुंडा सत्ता संभालते रहे. 2005 में चुनाव हुआ. भाजपा 30 सीटों पर विजयी हुई लेकिन सरकार बनाने का दावा झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन ने पेश किया. सोरेन दो मार्च, 2005 को मुख्यमंत्री बने लेकिन दस दिन बाद ही उनकी कुर्सी चली गई. सोरेन ने झामुमो के 17, कांग्रेस के नौ, राजद के सात, सीपीआई के दो और निर्दलीयों के भरोसे सरकार बनाई थी. लेकिन जब सदन में बहुमत साबित करने की बात आई तो उसके पहले ही छह निर्दलीय विधायक राजस्थान देशाटन करने चले गए. सरकार गिर गई. 10 दिन की सरकार का एक रिकॉर्ड शिबू सोरेन के नाम बन गया.
3. सोरेन पूर्व मुख्यमंत्री बन गए तो फिर दांव भाजपा ने खेला. पार्टी के पास अपने 30 विधायकों सहित जदयू के छह, आजसू के दो और चार निर्दलीय विधायक भी आ गए. अर्जुन मुंडा फिर मुख्यमंत्री बने. लेकिन 12 मार्च, 2005 से शुरू हुआ मुख्यमंत्री पद का उनका सफर 14 सितंबर, 2006 को खत्म हो गया. इस बार मधु कोड़ा ने विरोध का बिगुल फूंका. कोड़ा पहले भाजपाई थे, लेकिन बाद में निर्दलीय हो गए थे. कोड़ा ने कोल्हान इलाके के हाट-गम्हरिया पथ के निर्माण कार्य में ठेकेदार बदलने की मांग की और यह मांग न माने जाने पर वे विपक्ष के पाले में बैठ गए. निर्दलीय विधायक एनोस एक्का, कमलेश सिंह और हरिनारायण राय भी उनके रास्ते पर चल निकले. अर्जुन मुंडा की सरकार के दिन पूरे हो गए.