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Web-F2ज्यादा वक्त नहीं बीता जब ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने सोशल मीडिया पर फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण को लेकर कामुक टिप्पणी की और वीडियो अपलोड किया. इसे ‘ओह माय गॉड! दीपिका’ज़ क्लीवेज शो’ जैसे घटिया शीर्षक के साथ लगाया गया था, जिसके बाद इस हरकत की आलोचना का दौर शुरू हुआ और दीपिका पादुकोण ने अखबार को करारा जवाब दिया. सोशल मीडिया पर यह वीडियो लगातार शेयर होता रहा. बहसें होती रहीं. इस पूरी बहस का परिणाम यह हुआ कि ‘द गार्जियन’ और बीबीसी जैसे विदेशी मीडिया संस्थानों ने आगे बढ़कर इस मुहिम में दीपिका पादुकोण का समर्थन किया.

विडंबना ये रही कि इस पूरी आलोचनात्मक कार्रवाई का परिणाम उलटा पड़ गया. एक तरह से टाइम्स समूह की वेबसाइट के लिए यह असफलता ख्याति में तब्दील हो गई. यानी दीपिका पादुकोण के वीडियो पर हुए अनगिनत हिट्स की बदौलत यह मीडिया समूह लगातार चर्चा में बना रहा. आजकल सभी मीडिया समूह धीरे-धीरे उस ओर बढ़ रहे हैं जहां ‘क्लिक’ और ‘हिट्स’ की बदौलत पाठकों तक अपनी पहुंच और खबरों की गुणवत्ता को मापा जाता है.

आजकल भारतीय ऑनलाइन मीडिया में भी किसी विषय पर राय रखने के लिए क्रमवार तरीके से पॉइंट्स बना कर लिखने का चलन हो गया है. अंग्रेजी में इसे ‘लिस्टिकल’ कहते हैं. हाल ही में एक दोस्त ने किसी फिल्म पर अपनी राय रखने के लिए लिस्टिकल का प्रयोग किया. जब किसी ने प्रश्न किया तो जवाब में उसने कहा, ‘आजकल मीडिया में लिस्टिकल ही काम की चीज है’. जाहिर भी है क्योंकि आज के समय में जिस तेजी की दरकार है, उसके साथ खबरों के विस्तृत स्वरूप पीछे छूट जाते हैं. वे दिन अब बीतने लगे हैं जब लोगों की बालकनियों में हॉकर अखबार फेंक जाया करते थे और उन अखबारों के संपादकीय पन्नों को छानने में लंबा वक्त गुजरता था. अब मोबाइल और लैपटॉप पर खबरें देखकर काम पर निकल जाने का समय आ चुका है. साथ ही साथ तमाम मीडियाघरों के एप्स और वेबसाइटों ने खबर खंगालने के पुराने दिनों को चलता कर दिया है. अब यह दौर ज्यादा दिलचस्प और अतिशयोक्तिपूर्ण सनसनीखेज पत्रकारिता का है.

चलताऊ अर्थों में सनसनीखेज पत्रकारिता के नाम से जाना जाने वाला ‘क्लिकबेट जर्नलिज्म’ दरअसल पत्रकारिता का वह नुस्खा है जिसका मकसद गहरी और सही खबरों की आड़ में ऑनलाइन राजस्व पैदा करना होता है. यहां बेट का अर्थ चारे से है. मौजूदा समय में पाठक रोज-ब-रोज सोशल मीडिया पर सक्रिय होते जा रहे हैं, ऐसे में प्रकाशकों को करना सिर्फ इतना होता है कि वे अपने कंटेंट को पाठकों की न्यूजफीड में दाखिल कर दें और यह सुनिश्चित करें कि पाठक वह पढ़ लें. लेकिन इसके बाद प्रश्न उठता है कि ऐसी क्या चीज है कि ऑनलाइन खबरें पढ़ने वाला किसी खबर पर क्लिक करे? जवाब आता है ‘हेडलाइन’. पाठक वह पढ़ने में ज्यादा यकीन रखता है, जो समसामयिक हो, थोड़ा जाना-पहचाना विषय हो और सनसनीखेज हो. इसलिए खबरें बनाते समय ऐसे की-वर्ड्स यानी खास शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है ताकि पाठक का ध्यान खुद-ब-खुद उन खबरों की ओर चला जाए और वह उन पर क्लिक करे. ऑनलाइन कंटेंट लेखक नयनतारा मित्र के मुताबिक, ‘किसी खबर की हेडलाइन में यदि सनी लियोन का नाम है तो जाहिर है कि वह खबर भारी संख्या में पाठकों को रिझाएगी.’

ठीक इसी तरह राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी या योग के हेडलाइन से जुड़ी खबर देश के किसी हिस्से में खाद्यान्न की कमी से जुड़ी खबर से ज्यादा पढ़ी जाएगी. दीपिका पादुकोण के जवाब के बाद अपनी सफाई में टाइम्स समूह ने दावा किया, ‘ऑनलाइन दुनिया अखबारों की दुनिया से काफी अलग है. यह दुनिया ज्यादा अव्यवस्थित, हो-हल्ले और सनसनीखेज हेडलाइनों से भरी हुई है.’

कोई भी एक डिजिटल मीडिया संस्थान अपने पाठक समूह के रूप में 15 से 25 साल के उत्साही युवाओं को चुनती है, जो सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय रहते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस पाठक समूह की ध्यानावधि कम होती है, जिसके दौरान वे ज्यादा मसालेदार सामग्रियां तलाशते हैं. इस संबंध में ‘स्कूपव्हूप’ नाम की वेबसाइट का जिक्र आता है, जो इस समय चर्चा में है. भारत के ‘बजफीड’ के नाम से मशहूर ‘स्कूपव्हूप’ ने अपने उद्घाटन के बाद से ही लाखों पाठकों को आकर्षित करना शुरू कर दिया था. इस समय ‘स्कूपव्हूप’ के ट्विटर पर 30 हजार के आसपास फाॅलोवर हैं तो वहीं फेसबुक पेज पर 10 लाख से ज्यादा लाइक्स. इसके सह-संस्थापक और चीफ ऑपरेटिंग अफसर ऋषि प्रतिम मुखर्जी अपने यहां की खबरों की खासियत बताते हुए कहते हैं, ‘उनकी खबरें दिल से ‘सोशल’ होती हैं. किसी स्टोरी में पाठक की रुचि और पाठक द्वारा सोशल मीडिया पर उसकी शेयरिंग को देखकर उन्हें अपनी वेबसाइट के लिए सामग्री का चयन करने में मदद मिलती है.’

‘क्योरा’ जैसे माध्यमों पर बहुत सारे पाठकों ने ऐसी वेबसाइट की खबरों और भाषा को औसत दर्जे का करार दिया है. हालांकि इस पर मुखर्जी तर्क देते हैं, ‘एक बड़े, तेज और अस्थिर पाठक समूह तक अपनी बात पहुंचाने के लिए खबरें बनाने और उन्हें पेश करने के तरीके में भारी बदलाव आया है. यही कारण है कि आज की तारीख में ऐसी खबरों, स्लाइड-शो और वीडियो की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, जिनके ‘रीड एंड शेयर’ वाला हिस्सा आसमान छू रहा है.’

क्लिकबेट पत्रकारिता का यह नया स्वरूप आम बोलचाल की भाषा के इस्तेमाल के साथ-साथ खबरों की प्रकृति पर भी निर्भर है. सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा शेयर होने वाली खबरें वे होती हैं जिनके शीर्षक भ्रामक और रोचक लगते हैं, जिससे पाठक में उत्सुकता जगे. मिसाल के लिए ‘क्या आपके इस्तेमाल किए गए शब्दों से आपकी उम्र का अंदाजा लगाया जा सकता है?’ या ‘आपको भरोसा नहीं होगा कि इस बच्ची ने अपने पालतू जानवर के साथ क्या किया’ जैसे शीर्षक और ज्यादा पाठकों का ध्यानाकर्षण करने के लिए इस्तेमाल में लाए जाते हैं.

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