‘लोग संगठन बनाकर चुनाव लड़ते हैं हमने चुनाव के जरिए संगठन बनाया है’

फोटोः विकास कुमार
आम आदमी पार्टी के नेता और विधायक मनीष सिसोदिया. फोटो: विकास कुमार
आम आदमी पार्टी के नेता और विधायक मनीष सिसोदिया. फोटो: विकास कुमार

दिल्ली के चुनाव को लेकर आपकी पार्टी इतनी जल्दबाजी में क्यों हैं ?
जल्दबाजी चुनाव को लेकर नहीं है. दिल्ली में हो क्या रहा है कि एक अभिभावक को अपने बच्चों के स्कूल में एडमिशन के लिए एमएलए का चक्कर लगाना पड़ रहा है. ब्यूरोक्रेसी अपने हिसाब से चल रही है. दिल्ली को एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार की तुरंत जरूरत है. सब एक-दूसरे पर टाल रहे हैं. बिजली-पानी की स्थिति खराब हो गई है. राजनीतिक नेतृत्व का आना जरूरी है. नेतृत्व का खालीपन हो गया है. कितनी देर तक यह राजनीतिक खालीपन को बनाए रखेंगे. दिल्ली को एक चुनी हुई सरकार की जरूरत है.

कुछ लोगों का कहना है कि अगर आप चुनाव थोड़ा और टाले तो उसे ही फायदा होगा. कुछ दूसरे लोगों का मानना है कि आपके कार्यकर्ता हड़बड़ी में हैं, कुछ छोड़कर जा रहे है वे परेशान हैं. अगर यह ज्यादा समय तक टलेगा तो आपके लिए उन्हें बनाए रखना बड़ा मुश्किल होगा.
कार्यकर्ता देश बदलने के लिए आए हैं. वे तो चुनाव से पहले आए थे. चुनाव के बाद वे दूसरी तरह से काम करेंगे.

उनमें से कई लोग बहुत निराश हैं. एक तो जिस तरह से दिल्ली की सरकार से आप हटे और बाद में जिस तरह से आप कार्यकर्ताओं को पहले निर्णय की प्रक्रिया में शामिल करते थे अब वैसा नहीं रहा. इसको लेकर कार्यकर्ताओं में काफी नाराजगी है.
हो सकता है कि कुछ लोगों मे ऐसा हो. जैसे-जैसे लोगों की संख्या बढ़ेगी इस तरह की कुछ बातें होंगी. आज जो कार्यकर्ता हमारे साथ खड़ा है वह दूसरी भूमिका में है. कल अगर सरकार बनती है तो वह दूसरी भूमिका में हमारे साथ खड़ा होगा. काम तो कार्यकर्ता ही करेगा. पर हमारे दिमाग में वह बात नहीं है. हमारे सामने स्थिति साफ होनी चाहिए. अगर उपराज्यपाल का ही शासन रहना है तो वही साफ कर दिया जाय.

राजनीतिक लाभ की निगाह से देखें तो आपको नहीं लगता कि थोड़ा और समय लिया जाय तो आप लोगों को और अच्छी तरह से समझा पाएंगे.
मुझे लगता है कि इसकी कोई लिमिट नहीं है. यह तो परीक्षा देनेवाले बच्चे जैसी स्थिति है. वह चाहता है कि दो दिन और मिल जाते तो थोड़ा और तैयारी हो जाती पर यह तो कोई समाधान नहीं है.

कार्यकर्ताओं का जो मामला है वह बड़ी समस्या है. लोकसभा चुनावों में हार के बाद कंस्टीट्यूशन क्लब में हुई बैठक में आप लोगों ने एक रिड्रेशल कमेटी बनाई थी. उसका क्या हुआ. उन्होंने क्या सुझाव दिए?
वह सुझाव देने के लिए नहीं थी. वे सारी चीजें मिशन विस्तार के तहत जोड़ दी गई हैं. मिशन विस्तार के तहत पूरे देश में जो लोग जुड़ते हैं उन्हें जिम्मेदारियां दी जाती हैं.

पर जो खबरें आ रही हैं वह चिंताजनक हैं. जिस करन को आप लोगों ने वालंटियर रिड्रेसल कमेटी की जिम्मेदारी सौंपी थी अब उसे ही बाहर का रास्ता दिखा दिया है. उसके सुझाव को आपने खारिज कर दिया.
करन का काम सुझाव देना नहीं था. करन का काम ये था कि ऑफिस में जो कार्यकर्ता आते हैं उन्हें शीर्ष नेताओं के साथ जोड़ना था. लोगों के बीच में कम्युनिकेट करना था. करन ने थोड़ी-सी गलतियां की. उसे लगा कि उसका काम जगह-जगह जाकर सिर्फ वालंटियर को जोड़ना रह गया है. उसने कई विधानसभाओं में जाकर मीटिंग करनी शुरू कर दी, फिर कुछ और ऐसी एक्टिविटी की जो पार्टी के लिए ठीक नहीं थी तो इस वजह से उसे निकालने का फैसला करना पड़ा. कंस्टीट्यूशन क्लब में जो फैसला हुआ था उसका मकसद यह था कि सेंट्रल ऑफिस में एक टीम होगी जो देश-भर से जुड़ रहे नए लोगों को अलग-अलग कमेटियों और विभागों से जोड़ने और उन्हें डायवर्ट करने का काम करेगी. ताकि कोई अनअटेंडेड न रहे. किसी को यह अहसास न हो कि वह हमसे जुड़ना चाहता था लेकिन किसी ने उसे एंटरटेन ही नहीं किया गया.

अब लोगों के जुड़ने का सिलसिला कैसा चल रहा है. विधानसभा चुनाव के बाद तो हर व्यक्ति आप से जुड़ना चाहता था.     
दो तरह के लोग हमेशा जुड़ते हैं. एक तो पार्टी जब चुनाव जीत रही होती है तब ऐसे लोग जुड़ना चाहते हैं जिन्हें लगता है कि कुछ अच्छा काम करना है और यह पार्टी उनका मकसद पूरा कर सकती है. दूसरे वे लोग होते हैं जो राजनीति में करियर बनाना चाहते हैं, टिकट पाना चाहते हैं. जो लोग करियर की इच्छा लेकर आते हैं वे तो बाद में निकल लेते हैं. जो लोग देश बदलने की इच्छा लेकर आते हैं उन्हें पता है कि यह रास्ता इतना आसान नहीं है.

तो आपको लगता है कि अब भले ही कम लोग जुड़ रहे हैं लेकिन जो लोग जुड़ रहे हैं वे ठोस और अच्छी नीयत से जुड़ने वाले लोग हैं.
कम या ज्यादा का सवाल नहीं है. इस समय हमारी कोई एनरोलमेंट की ड्राइव नहीं चल रही है. आज भी लोग हर दिन आते हैं मेरे दफ्तर में जो हमसे जुड़ना चाहते हैं.

पर अब वैसी बड़ी खबरे नहीं आ रही हैं कि कैप्टन गोपीनाथ जुड़ रहे हैं, बालाकृष्णन जुड़ रहे हैं. अब इसके उलट खबरें आ रही हैं कि शाजिया इल्मी जा रही हैं, योगेंद्र यादव जा रहे हैं. ये नकारात्मक खबरें ज्यादा आ रही हैं.
देखिए जब पार्टी ऊपर जा रही होती है तब लोग आते हैं. जब पार्टी नीचे जाती है तब लोग जाने लगते हैं. यह तो प्रकृति का नियम है.

कार्यकर्ताओ का तो हम नहीं आंक सकते लेकिन वेबसाइट के माध्यम से डोनेशन मिलने की जो रफ्तार है उसका अंदाजा तो मिल ही जाता है.
नहीं उसमे भी लोगों को एक गलतफहमी है. आम आदमी पार्टी ने हमेशा ड्राइव चलाया है. हमने हमेशा लोगों को कॉल दी है कि हम चुनाव लड़ना चाहते हैं या हम फलाना काम करना चाहते हैं हमे पैसे की जरूरत है. उसमें भी हम एक कैंप लगाकर चलते हैं कि इस सीमा से ऊपर हमें डोनेशन नहीं चाहिए. आपको याद होगा हमने दिल्ली के चुनाव में 20 करोड़ रुपये पर कैप लगा दी थी. अब हमने कोई काल ही नहीं कर रखी है. अब आगे अगर कोई चुनाव होगा तब हम लोगो को कॉल करेंगे कि हमें पैसे की जरूरत है.

हालांकि आपने लोकसभा में कोई कैप नहीं लगाई थी पर शायद वह ड्राइव इतनी सफल नहीं रही.
हां लोकसभा में हमने नहीं लगाया था.

अच्छा हम पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र पर लौटते हैं. यह बात बार-बार आ रही है कि पार्टी के भीतर लोकतंत्र का अभाव है. यही बात शाजिया के मामले में आई, योगेंद्र यादव यही बात कह रहे थे. योगेंद्र यादव ने जो मुद्दे उठाए उस पर आपका लिखा जवाब सामने आया था. उस पत्र में योगेंद्र यादव के उठाए मुद्दों का जवाब नहीं था बल्कि कहीं न कहीं ऐसा लग रहा था कि आप थोड़ा पर्सनल हो गए थे.
देखिए हमारी पार्टी अभी शुरुआती अवस्था में है. इस दशा में कुछ गलतियां होंगी, कुछ बदलाव होंगे. कुछ अच्छे काम भी होंगे. शाजिया ने जो मुद्दे उठाए मैं बहुत सारे मुद्दों से सहमत हूं. आप इसे इवॉल्यूशन से जोड़कर देखिए कि पहले कुल पंद्रह-बीस लोग थे दिल्ली में वही लोग हर कमेटी में काम कर रहे थे. वही मेनिफेस्टो कमेटी में थे, वही लोग सिलेक्शन कमेटी में होते थे, वही लोग अलग-अलग कमेटियों में होते थे. आज पार्टी बहुत बड़ी हो गई है. इसके पास 27 एमएलए, चार एमपी, तीन सौ उम्मीदवार हैं जिनमें से कई बहुत हाई प्रोफाइल लोग हैं. अब हम उस स्थिति में है कि जिम्मेदारियों को बांटकर जो तथाकथित कोटरियां है उन्हें तोड़ सकें. आज कर्नाटक मे रहने वाले पृथ्वी रेड्डी संगठन के सबसे प्रमुख व्यक्ति बन गए हैं. आज से डेढ़ साल पहले कहते तो शायद ही बन पाते.

आपने कहा कि शाजिया के कुछ मुद्दों से आप सहमत हैं. योगेंद्र यादव ने भी लगभग उसी तरह के मामले उठाए थे. पर आपने उनका जवाब काफी व्यक्तिगत स्तर पर जाकर दिया.
देखिए योगेंद्र भाई के पत्र का मैंने जवाब नहीं दिया था. वो आप लोगों का इंटरप्रेटेशन है. वह असल में 35 लोगों के बीच चल रही चर्चा थी. उसमें योगेंद्र भाई ने कुछ कहा, मैंने कुछ कहा दस और लोगों ने कुछ कहा होगा. उसका लीक होना दुर्भाग्यपूर्ण है. उसमें जो कुछ कहा गया मेरा मानना है कि वह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है. जब हम 35 लोग ग्रुप में बैठते हैं तो हम 35 तरह की बातें भी कर सकते हैं और एक तरह की भी. अब बाद में कोई सिर्फ दो लोगों की बात को उठाकर इस तरह से उसकी व्याख्या करे तो यह ठीक नहीं है. योगेंद्र भाई और मेरे बीच जो चर्चा हुई वह असल में 35 लोगों के बीच चल रहा एक जीमेल डिस्कशन था. हमारे बीच में कोई गलतफहमी नहीं है.

लेकिन योगेंद्र यादव ने जो सवाल उठाए थे वे हम आपके सामने रख रहे हैं क्योंकि वह सवाल फिर भी महत्वपूर्ण हैं. उनका कहना था कि लोकसभा चुनाव के बाद सिर्फ लोकल यूनिटों को भंग कर देना ठीक नहीं है, जवाबदेही ऊपर तक तय होनी चाहिए. वरना पार्टी में हाई कमान कल्चर की नींव पड़ जाएगी. यह तो कांग्रेसी संस्कृति हो गई कि आप कोई चुनाव जीत गए तो गांधी परिवार की वजह से और हार गए तो लोकल लीडरशिप और कार्यकर्ता जिम्मेदार हैं. जिम्मेदारी मनीष सिसोदिया से लेकर अरविंद केजरीवाल तक सबकी होनी चाहिए थी या नहीं.
पहली बात वह लेटर नहीं है वह हमारे बीच की बातचीत है. अरविंद ने कुछ कहा, मैंने कुछ कहा योगेंद्र भाई ने कुछ कहा. वो सब चीजें जब पार्टी के भीतर 35 लोग तय कर लेते हैं तब वह पार्टी का निर्णय बनता है. वह एक बहुत प्रीमेच्योर बातचीत को सिलेक्टिवली उठा लिया गया है. मान लीजिए आपकी किसी मुद्दे पर एक सोच थी. आप आए, मुझसे बातचीत की और आपकी सोच बदल गई कि हां भाई यह बात ज्यादा सही है. अरविंद ने या किसी और वरिष्ठ नेता ने अपना एक नजरिया रखा था वह यूनिटों को भंग करने का फैसला नहीं था. अब उस पर योगेंद्र भाई ने अपना विचार रखा. अब सिर्फ योगेंद्र भाई के किसी विचार को लीडरशिप के ऊपर हमले जैसा परसेप्शन बनाएंगे तो यह ठीक बात नहीं है.  

पर आप लोगों ने पहले बहुत व्यवस्थित तरीके से जिला स्तर की कमेटियां गठित की थीं. रिजनल ऑबसर्बर बनाया, एक सेंट्रल ऑबसर्बर उसकी निगरानी कर रहा था. तो वह सब अचानक से भंग हो गया…
मिशन बुनियाद के तहत मैंने ही उसका ढांचा तैयार किया था. आप जो कह रहे हैं कि भंग हुआ वह सही नहीं है. किसी आदमी ने बैठक में विचार रखा कि कमेटियां भंग कर देनी चाहिए. कुछ लोगों ने उस पर काउंटर विचार रखे.

ताजा हालात पर एक सवाल है. आपका कहना है कि भाजपा और कांग्रेस मिलकर सरकार बनाने जा रहे थे. आप ने समय रहते उन्हें एक्सपोज कर दिया शायद इसी वजह से उन्होंने सरकार बनाने का विचार त्याग दिया है. ऐसा ही एक आरोप आप के ऊपर भी लग रहा है कि आप लोग भी कांग्रेस के कुछ विधायकों के साथ संपर्क में थे और सरकार बनाने की मंशा रखते थे. लेकिन समय रहते उन्होंने भी आपका खेल बिगाड़ दिया. यहां तक कि आपको मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा भी चल रही थी.
देखिए, यह राजनीति है. यहां सारा खेल विश्वसनीयता का है. आसिफ कुछ कहेंगे, मैं कुछ कहूंगा. जनता उसकी बात मानेगी जो ज्यादा विश्वसनीय होगा. दोनों अपना पक्ष रख रहे हैं. फैसला जनता को करना है.

मैंने योगेंद्र भाई से जो कुछ कहा वह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी है. मैंने उन्हें कोई पत्र नहीं लिखा था. वह 35 लोगों के बीच चल रहा गूगल टॉक था. उसका लीक होना दुर्भाग्यपूर्ण है

हाल ही में जगह-जगह आपके लोगों ने पोस्टर लगवाकर कहा कि आपके विधायकों को 20 करोड़ रुपये में खरीदने की कोशिश हो रही है. आप अभी भी उस बात पर कायम हैं. आपके नेता अरविंद केजरीवाल ने शपथग्रहण के मंच से कहा था कि अगर कोई घूस मांगे तो उसका स्टिंग कर दीजिए. यह बताइए आपने खुद उन लोगों का स्टिंग क्यों नहीं किया जो आपके विधायकों को खरीदना चाहते थे. आपके पास तो आशीष खेतान के रूप में सबसे बड़ा स्टिंग करनेवाला पत्रकार भी है.
हम अपनी बात पर कायम हैं. देखिए क्या होता है कि जब कोई आता है तब हमे पता नहीं होता कि वह किस मकसद से आ रहा है. तो कैसे हम उसका स्टिंग कर दें.

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पर बातों में आप उसे फंसा सकते थे.
हां हम कर सकते थे पर नहीं किया. हम नहीं करेंगे. यह जरूरी नहीं है कि हम स्टिंग करें. पर लोगों के सामने तो रखेंगे ही. मेरे पास एक आदमी आया और बोला कि वह मुझे खरीदना चाहता है. मैं इंतजार नहीं करूंगा. आप कह रहे हैं कि पहले स्टंग करो फिर चिल्लाना लेकिन मैं तो तुरंत ही चिल्लाना शुरू कर दूंगा. अगर वह दोबारा आएगा तो हो सकता है कि मैं स्टिंग भी कर लूं.

अब सामने आ रहा है कि आप लोग हरियाणा का भी चुनाव नहीं लड़ेंगे. इस पर आखिरी फैसला आ चुका है क्या?
हमारी नेशनल एक्जक्युटिव की बैठक होगी उसमें आखिरी फैसला होगा. उस पर अभी कुछ कहना थोड़ा जल्दबाजी होगी.

आज की तारीख में दिल्ली का चुनाव लड़ने पर ही ज्यादातर लोग एकमत हैं?
फिलहाल हमारा फोकस है कि दिल्ली में मेहनत करके सरकार बनाई जाय. इसके बाद पंजाब हमारा बहुत उपजाऊ इलाका है. वहां हम फोकस करेंगे.

पार्टी के भीतर कहीं यह सोच है कि दिल्ली सरकार से इस्तीफा देना बहुत बड़ी भूल थी.
देखिए एक बात है कि सैंद्धांतिक रूप से क्या सही था. उस लिहाज से इस्तीफा देना एकदम सही कदम था. लेकिन उससे पहले लोगों से बात भी कर लेते तो ज्यादा अच्छा रहता. अगर हम लोगों के बीच जाते तो बहुत संभव है कि लोग हमें उसूलों के आधार पर इस्तीफा देने के लिए ही कहते पर गलती यह हुई कि हमने लोगों से पूछा नहीं.

अरविंद केजरीवाल ने बनारस के चुनाव के बाद कहा कि उनसे कुछ भूले हो गईं. तो वे कौन सी भूलें थीं.
एक भूल तो यही हो गई कि लोगों से नहीं पूछा हमने. सरकार गिराना भूल नहीं थी, लोगों से न पूछना एक बड़ी चूक थी. सरकार गिराने के फैसले में लोगों की सहमति भी शामिल हो जाती तो हमारा फैसला बहुत क्रेडिबल हो जाता. मेरी व्यक्तिगत समझ यह है कि सरकार गिराकर दोबारा से बहुमत की सरकार लाना सही कदम था.

तो अबकी बार दिल्ली से क्या उम्मीद है
इस बार पांच साल पूरी सरकार चलेगी. हमारी उम्मीद यही है कि कम से कम 50 विधायक आएंगे हमारे. जिस तरह से अच्छे दिन का गुब्बारा फूट रहा है उससे हमारे पक्ष में एक लहर बन रही है.

किसी उचित मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल या किसी वरिष्ठ नेता से सवाल पूछने की गुंजाइश पार्टी के भीतर है या नहीं. क्योंकि हमने नवीन जयहिंद या कुछ अन्य मसलों में देखा कि जो भी कुछ सवाल खड़े करता है पार्टी उसके ऊपर भाजपा का एजेंट, कांग्रेस का एजेंट, टिकट का लालची जैसे आरोप लगाकर बाहर कर देती है.
अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बोलना कोई अपराध नहीं है लेकिन एंटी पार्टी एक्टिविटी करना तो अपराध है. अगर पार्टी आपके लिए कोई जिम्मेदारी तय करती है और आप दूसरे के काम में टांग अड़ाते हैं, वहां कोई असहज हालात पैदा करते हैं तो आपके लिए पार्टी में जगह नहीं है. मैं आपको तमाम ऐसे उदाहरण बता सकता हूं जिसमें अरविंद खिलाफ थे उसके बावजूद वे काम हुए हैं. जैसे चार सौ सीटों पर चुनाव लड़ने का जो फैसला था अरविंद उसके लिए कभी तैयार नहीं थे लेकिन पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का मानना था कि हमें लड़ना चाहिए तो हम लड़े. योगेंद्र जी भी उनमें से एक थे. ये जो परसेप्शन बनाने की कोशिश की जा रही है कि अरविंद के खिलाफ कोई बोल नहीं सकता वह गलत है.

आपके सीमित संसाधनों को देखते हुए 400 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला कहीं से भी समझदारी भरा नहीं था.
यह अपने देखने का नजरिया है. दूसरी पार्टियां संगठन बनाकर चुनाव लड़ती हैं हमने चुनाव लड़कर संगठन खड़ा करने का काम किया है. आज त्रिपुरा में भी हर कार्यकर्ता को पता है कि वहां आप का प्रतिनिधि कौन है, उम्मीदवार कौन है. तो इस फैसले ने हमें देश-भर में पहुंचाने का काम किया है.

आप कह रहे हैं कि चुनाव लड़कर आपने संगठन खड़ा कर लिया. चार सौ सीटों को छोड़िए आपकी सबसे महत्वपूर्ण सीट बनारस को लेते हैं. वहां आपके कार्यालय पर ताला लटका हुआ है. कार्यकर्ताओं को पता ही नहीं है कि वहां आप का प्रतिनिधि कौन है या उन्हें किसके सामने अपनी बात रखनी है.
बनारस की बात अलग है.

चलिए आगे बात करते हैं. जब आप इतने कम समय में चार सौ से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला करते हैं तो आपके अपने ही मानकों पर खरा उतरने वाला उम्मीदवार ढूंढ़ना कैसे संभव है. इस तरह के लोग तो आपकी छवि को और खराब करने का काम करेंगे.
देखिए हो सकता है कि चार सौ में से सौ-सवा सौ लोग गड़बड़ हों. पर तीन सौ लोग तो ठीक होंगे. तीन में से सौ लोग और हटा दीजिए कम से कम दो सौ लोग तो होंगे जो आप के लिए पूरी तरह से समर्पित होंगे. तो इन दो सौ लोगों को जोड़ पाना भी तो अपने आप मे एक बड़ी सफलता है.

अन्ना आंदोलन के समय आप बहुत व्यस्त थे. पर उस समय भी आप वॉलेंटियर और मीडिया को आसानी से उपलब्ध रहते थे. दिल्ली में सरकार बनाने के बाद आप पूरी तरह से गायब हो गए. आप लोगों से बात करना दूभर हो गया.
मैं आपको एक घटना बताता हूं. अरविंद मेरे घर आए हुए थे. तो हम दोनों लोग परिवार के साथ यहीं पास में खाना खाने के लिए चले गए. वहां हमारे मुहल्ले के ही एक आदमी मिले. उन्होंने मुझसे कहा, ‘विधायक जी थोड़ा इलाके में दिखो.’ मेरी पत्नी ने उनसे एक दिलचस्प सवाल किया- ‘भैया आप कह रहे हैं इलाके में दिखो, मैं कहती हूं घर में दिखो. जब ये इलाके में नहीं दिखते, घर में भी नहीं दिखते तो फिर ये जाते कहां है.’ आप देखिए कि दो फोन हैं मेरे पास. सुबह से ही बजने लगते हैं. यह संभव नहीं है कि सारे फोन अटेंड कर पाऊं तो बेहतर है कि उसे डायवर्ट कर दिया जाय और बाद में उनसे संपर्क कर लिया जाय. अन्ना आंदोलन के समय हम राजनीति में नहीं थे. किसी ने दस फोन किया और एक भी हमने उठा लिया तो उसे लगता था कि अच्छा है बात तो हो जाती है. आज कोई एक फोन भी करता है और अगर फोन नहीं उठा तो वह सीधे कहता है कि अच्छा राजनीति में आकर बदल गए. पर यह समस्या व्यावहारिक है कि मैं सारे फोन नहीं उठा सकता. खासकर पत्रकार यह आरोप लगाते हैं. एक सच यह भी है हमने भी पत्रकारों का फोन उठाना थोड़ा कम कर दिया है.

क्यों आप पत्रकारों से इतना नाराज क्यों हैं?
मैं नाराज नहीं हूं. वजह ये है कि इतने सारे टीवी चैनल, इतने अखबार और इतनी पत्रिकाएं है कि अगर मैं सबसे बात करना शुरू करूं तो सुबह से शाम हो जाएगी मैं यहीं बैठा रह जाऊंगा. फिर मैं पार्टी का काम कब करूंगा और विधायक की जिम्मेदारी कब निभाऊंगा.

आखिर में पार्टी की आगे की राह और भविष्य को लेकर क्या योजनाएं हैं?
हम लोग उत्साह से भरे हुए हैं. एक बात हमारे दिमाग मे साफ है कि हम अपने लिए कुछ नहीं कर रहे हैं. जब तक देश के लोगों को लगेगा कि यह लड़ाई देश की लड़ाई है तब तक हम लड़ेंगे जिस दिन हमें लगेगा कि यह करियर है तब मैं पहला आदमी होऊंगा जो इसे छोड़ दूंगा. हम यहां करियर बनाने नहीं आए हैं.

अन्ना हजारे को लोकसभा चुनाव से पहले जोड़ने की कोशिश की थी आपने.
नहीं कोई कोशिश नहीं की हमने.

क्यों, इतनी नाराजगी आप लोगों के बीच क्यों हो गई?
ये तो अन्नाजी बताएंगे. हम तो चाहते थे कि वो हमसे जुड़ें.

पर आप तो कह रहे हैं आपने कोई कोशिश ही नहीं की जोड़ने की.
उन्होंने खुद ही इतने सारे बयान दे दिए, उसके बाद हमारे सामने कोई विकल्प ही नहीं बचा था.

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1 COMMENT

  1. Good Questions.Good and Straight Answers…Hope u asked what are the responses of ppl they meet..And what are the volunteers in each constituency of Delhi have done to reach out to more ppl..

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