‘लोग संगठन बनाकर चुनाव लड़ते हैं हमने चुनाव के जरिए संगठन बनाया है’

आम आदमी पार्टी के नेता और विधायक मनीष सिसोदिया. फोटो: विकास कुमार
आम आदमी पार्टी के नेता और विधायक मनीष सिसोदिया. फोटो: विकास कुमार

दिल्ली के चुनाव को लेकर आपकी पार्टी इतनी जल्दबाजी में क्यों हैं ?
जल्दबाजी चुनाव को लेकर नहीं है. दिल्ली में हो क्या रहा है कि एक अभिभावक को अपने बच्चों के स्कूल में एडमिशन के लिए एमएलए का चक्कर लगाना पड़ रहा है. ब्यूरोक्रेसी अपने हिसाब से चल रही है. दिल्ली को एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार की तुरंत जरूरत है. सब एक-दूसरे पर टाल रहे हैं. बिजली-पानी की स्थिति खराब हो गई है. राजनीतिक नेतृत्व का आना जरूरी है. नेतृत्व का खालीपन हो गया है. कितनी देर तक यह राजनीतिक खालीपन को बनाए रखेंगे. दिल्ली को एक चुनी हुई सरकार की जरूरत है.

कुछ लोगों का कहना है कि अगर आप चुनाव थोड़ा और टाले तो उसे ही फायदा होगा. कुछ दूसरे लोगों का मानना है कि आपके कार्यकर्ता हड़बड़ी में हैं, कुछ छोड़कर जा रहे है वे परेशान हैं. अगर यह ज्यादा समय तक टलेगा तो आपके लिए उन्हें बनाए रखना बड़ा मुश्किल होगा.
कार्यकर्ता देश बदलने के लिए आए हैं. वे तो चुनाव से पहले आए थे. चुनाव के बाद वे दूसरी तरह से काम करेंगे.

उनमें से कई लोग बहुत निराश हैं. एक तो जिस तरह से दिल्ली की सरकार से आप हटे और बाद में जिस तरह से आप कार्यकर्ताओं को पहले निर्णय की प्रक्रिया में शामिल करते थे अब वैसा नहीं रहा. इसको लेकर कार्यकर्ताओं में काफी नाराजगी है.
हो सकता है कि कुछ लोगों मे ऐसा हो. जैसे-जैसे लोगों की संख्या बढ़ेगी इस तरह की कुछ बातें होंगी. आज जो कार्यकर्ता हमारे साथ खड़ा है वह दूसरी भूमिका में है. कल अगर सरकार बनती है तो वह दूसरी भूमिका में हमारे साथ खड़ा होगा. काम तो कार्यकर्ता ही करेगा. पर हमारे दिमाग में वह बात नहीं है. हमारे सामने स्थिति साफ होनी चाहिए. अगर उपराज्यपाल का ही शासन रहना है तो वही साफ कर दिया जाय.

राजनीतिक लाभ की निगाह से देखें तो आपको नहीं लगता कि थोड़ा और समय लिया जाय तो आप लोगों को और अच्छी तरह से समझा पाएंगे.
मुझे लगता है कि इसकी कोई लिमिट नहीं है. यह तो परीक्षा देनेवाले बच्चे जैसी स्थिति है. वह चाहता है कि दो दिन और मिल जाते तो थोड़ा और तैयारी हो जाती पर यह तो कोई समाधान नहीं है.

कार्यकर्ताओं का जो मामला है वह बड़ी समस्या है. लोकसभा चुनावों में हार के बाद कंस्टीट्यूशन क्लब में हुई बैठक में आप लोगों ने एक रिड्रेशल कमेटी बनाई थी. उसका क्या हुआ. उन्होंने क्या सुझाव दिए?
वह सुझाव देने के लिए नहीं थी. वे सारी चीजें मिशन विस्तार के तहत जोड़ दी गई हैं. मिशन विस्तार के तहत पूरे देश में जो लोग जुड़ते हैं उन्हें जिम्मेदारियां दी जाती हैं.

पर जो खबरें आ रही हैं वह चिंताजनक हैं. जिस करन को आप लोगों ने वालंटियर रिड्रेसल कमेटी की जिम्मेदारी सौंपी थी अब उसे ही बाहर का रास्ता दिखा दिया है. उसके सुझाव को आपने खारिज कर दिया.
करन का काम सुझाव देना नहीं था. करन का काम ये था कि ऑफिस में जो कार्यकर्ता आते हैं उन्हें शीर्ष नेताओं के साथ जोड़ना था. लोगों के बीच में कम्युनिकेट करना था. करन ने थोड़ी-सी गलतियां की. उसे लगा कि उसका काम जगह-जगह जाकर सिर्फ वालंटियर को जोड़ना रह गया है. उसने कई विधानसभाओं में जाकर मीटिंग करनी शुरू कर दी, फिर कुछ और ऐसी एक्टिविटी की जो पार्टी के लिए ठीक नहीं थी तो इस वजह से उसे निकालने का फैसला करना पड़ा. कंस्टीट्यूशन क्लब में जो फैसला हुआ था उसका मकसद यह था कि सेंट्रल ऑफिस में एक टीम होगी जो देश-भर से जुड़ रहे नए लोगों को अलग-अलग कमेटियों और विभागों से जोड़ने और उन्हें डायवर्ट करने का काम करेगी. ताकि कोई अनअटेंडेड न रहे. किसी को यह अहसास न हो कि वह हमसे जुड़ना चाहता था लेकिन किसी ने उसे एंटरटेन ही नहीं किया गया.

अब लोगों के जुड़ने का सिलसिला कैसा चल रहा है. विधानसभा चुनाव के बाद तो हर व्यक्ति आप से जुड़ना चाहता था.     
दो तरह के लोग हमेशा जुड़ते हैं. एक तो पार्टी जब चुनाव जीत रही होती है तब ऐसे लोग जुड़ना चाहते हैं जिन्हें लगता है कि कुछ अच्छा काम करना है और यह पार्टी उनका मकसद पूरा कर सकती है. दूसरे वे लोग होते हैं जो राजनीति में करियर बनाना चाहते हैं, टिकट पाना चाहते हैं. जो लोग करियर की इच्छा लेकर आते हैं वे तो बाद में निकल लेते हैं. जो लोग देश बदलने की इच्छा लेकर आते हैं उन्हें पता है कि यह रास्ता इतना आसान नहीं है.

तो आपको लगता है कि अब भले ही कम लोग जुड़ रहे हैं लेकिन जो लोग जुड़ रहे हैं वे ठोस और अच्छी नीयत से जुड़ने वाले लोग हैं.
कम या ज्यादा का सवाल नहीं है. इस समय हमारी कोई एनरोलमेंट की ड्राइव नहीं चल रही है. आज भी लोग हर दिन आते हैं मेरे दफ्तर में जो हमसे जुड़ना चाहते हैं.

पर अब वैसी बड़ी खबरे नहीं आ रही हैं कि कैप्टन गोपीनाथ जुड़ रहे हैं, बालाकृष्णन जुड़ रहे हैं. अब इसके उलट खबरें आ रही हैं कि शाजिया इल्मी जा रही हैं, योगेंद्र यादव जा रहे हैं. ये नकारात्मक खबरें ज्यादा आ रही हैं.
देखिए जब पार्टी ऊपर जा रही होती है तब लोग आते हैं. जब पार्टी नीचे जाती है तब लोग जाने लगते हैं. यह तो प्रकृति का नियम है.

कार्यकर्ताओ का तो हम नहीं आंक सकते लेकिन वेबसाइट के माध्यम से डोनेशन मिलने की जो रफ्तार है उसका अंदाजा तो मिल ही जाता है.
नहीं उसमे भी लोगों को एक गलतफहमी है. आम आदमी पार्टी ने हमेशा ड्राइव चलाया है. हमने हमेशा लोगों को कॉल दी है कि हम चुनाव लड़ना चाहते हैं या हम फलाना काम करना चाहते हैं हमे पैसे की जरूरत है. उसमें भी हम एक कैंप लगाकर चलते हैं कि इस सीमा से ऊपर हमें डोनेशन नहीं चाहिए. आपको याद होगा हमने दिल्ली के चुनाव में 20 करोड़ रुपये पर कैप लगा दी थी. अब हमने कोई काल ही नहीं कर रखी है. अब आगे अगर कोई चुनाव होगा तब हम लोगो को कॉल करेंगे कि हमें पैसे की जरूरत है.

हालांकि आपने लोकसभा में कोई कैप नहीं लगाई थी पर शायद वह ड्राइव इतनी सफल नहीं रही.
हां लोकसभा में हमने नहीं लगाया था.

अच्छा हम पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र पर लौटते हैं. यह बात बार-बार आ रही है कि पार्टी के भीतर लोकतंत्र का अभाव है. यही बात शाजिया के मामले में आई, योगेंद्र यादव यही बात कह रहे थे. योगेंद्र यादव ने जो मुद्दे उठाए उस पर आपका लिखा जवाब सामने आया था. उस पत्र में योगेंद्र यादव के उठाए मुद्दों का जवाब नहीं था बल्कि कहीं न कहीं ऐसा लग रहा था कि आप थोड़ा पर्सनल हो गए थे.
देखिए हमारी पार्टी अभी शुरुआती अवस्था में है. इस दशा में कुछ गलतियां होंगी, कुछ बदलाव होंगे. कुछ अच्छे काम भी होंगे. शाजिया ने जो मुद्दे उठाए मैं बहुत सारे मुद्दों से सहमत हूं. आप इसे इवॉल्यूशन से जोड़कर देखिए कि पहले कुल पंद्रह-बीस लोग थे दिल्ली में वही लोग हर कमेटी में काम कर रहे थे. वही मेनिफेस्टो कमेटी में थे, वही लोग सिलेक्शन कमेटी में होते थे, वही लोग अलग-अलग कमेटियों में होते थे. आज पार्टी बहुत बड़ी हो गई है. इसके पास 27 एमएलए, चार एमपी, तीन सौ उम्मीदवार हैं जिनमें से कई बहुत हाई प्रोफाइल लोग हैं. अब हम उस स्थिति में है कि जिम्मेदारियों को बांटकर जो तथाकथित कोटरियां है उन्हें तोड़ सकें. आज कर्नाटक मे रहने वाले पृथ्वी रेड्डी संगठन के सबसे प्रमुख व्यक्ति बन गए हैं. आज से डेढ़ साल पहले कहते तो शायद ही बन पाते.

आपने कहा कि शाजिया के कुछ मुद्दों से आप सहमत हैं. योगेंद्र यादव ने भी लगभग उसी तरह के मामले उठाए थे. पर आपने उनका जवाब काफी व्यक्तिगत स्तर पर जाकर दिया.
देखिए योगेंद्र भाई के पत्र का मैंने जवाब नहीं दिया था. वो आप लोगों का इंटरप्रेटेशन है. वह असल में 35 लोगों के बीच चल रही चर्चा थी. उसमें योगेंद्र भाई ने कुछ कहा, मैंने कुछ कहा दस और लोगों ने कुछ कहा होगा. उसका लीक होना दुर्भाग्यपूर्ण है. उसमें जो कुछ कहा गया मेरा मानना है कि वह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है. जब हम 35 लोग ग्रुप में बैठते हैं तो हम 35 तरह की बातें भी कर सकते हैं और एक तरह की भी. अब बाद में कोई सिर्फ दो लोगों की बात को उठाकर इस तरह से उसकी व्याख्या करे तो यह ठीक नहीं है. योगेंद्र भाई और मेरे बीच जो चर्चा हुई वह असल में 35 लोगों के बीच चल रहा एक जीमेल डिस्कशन था. हमारे बीच में कोई गलतफहमी नहीं है.

लेकिन योगेंद्र यादव ने जो सवाल उठाए थे वे हम आपके सामने रख रहे हैं क्योंकि वह सवाल फिर भी महत्वपूर्ण हैं. उनका कहना था कि लोकसभा चुनाव के बाद सिर्फ लोकल यूनिटों को भंग कर देना ठीक नहीं है, जवाबदेही ऊपर तक तय होनी चाहिए. वरना पार्टी में हाई कमान कल्चर की नींव पड़ जाएगी. यह तो कांग्रेसी संस्कृति हो गई कि आप कोई चुनाव जीत गए तो गांधी परिवार की वजह से और हार गए तो लोकल लीडरशिप और कार्यकर्ता जिम्मेदार हैं. जिम्मेदारी मनीष सिसोदिया से लेकर अरविंद केजरीवाल तक सबकी होनी चाहिए थी या नहीं.
पहली बात वह लेटर नहीं है वह हमारे बीच की बातचीत है. अरविंद ने कुछ कहा, मैंने कुछ कहा योगेंद्र भाई ने कुछ कहा. वो सब चीजें जब पार्टी के भीतर 35 लोग तय कर लेते हैं तब वह पार्टी का निर्णय बनता है. वह एक बहुत प्रीमेच्योर बातचीत को सिलेक्टिवली उठा लिया गया है. मान लीजिए आपकी किसी मुद्दे पर एक सोच थी. आप आए, मुझसे बातचीत की और आपकी सोच बदल गई कि हां भाई यह बात ज्यादा सही है. अरविंद ने या किसी और वरिष्ठ नेता ने अपना एक नजरिया रखा था वह यूनिटों को भंग करने का फैसला नहीं था. अब उस पर योगेंद्र भाई ने अपना विचार रखा. अब सिर्फ योगेंद्र भाई के किसी विचार को लीडरशिप के ऊपर हमले जैसा परसेप्शन बनाएंगे तो यह ठीक बात नहीं है.