रात के 11 बजे काठमांडू शहर नींद में डूब चुका था. कुछ गिनी चुनी टैक्सियों को छोड़कर सड़क पर हलचल का कोई निशान नहीं था. हमारे संपर्क सूत्र ने हमें बताया कि यहां इस समय टैक्सी मिलना मुश्किल है इसलिए यह अच्छा होगा कि हम बसअड्डे के पास ही किसी होटल में रुक जाएं. सितंबर माह से नेपाल ईंधन की कमी से जूझ रहा है. सार्वजनिक परिवहन पर इसका सबसे बुरा प्रभाव पड़ा है. यहां टैक्सियां कालाबाजारी से मिले ईंधन के सहारे चल रही हैं. इसी कारण टैक्सियों के मालिक मनमर्जी का किराया वसूल रहे हैं. 4-5 किमी की दूरी के लिए भी 1500-2000 रुपये (नेपाली) वसूल किए जा रहे हैं. ये नेपाल में हमारी पहली यात्रा नहीं है, हम यहां पहले भी आ चुके हैं, ऐसे में दक्षिण एशिया के सबसे हलचल वाले शहर को मुर्दा खामोशी से भरा देखकर ज्यादा निराशा हो रही थी.
संकट से जूझती नेपाल सरकार स्थिति को संभालने के लिए पूरी कोशिश कर रही है. इसी कोशिश में बिजली कटौती का रास्ता अपनाया जा रहा है. जब हम नेपाल पहुंचे तो नेपाल सरकार के इस प्रयोग का तीसरा दिन था.
हमारी होटल ढूंढने की पहली कोशिश नाकाम रही. हमने उत्तर दिशा की ओर बढ़ना शुरू किया. 10 डिग्री तापमान में जूतों में भी हमारे पैर सुन्न हो रहे थे. भूख भी लगी थी. करीब डेढ़ घंटे भटकने के बाद एक होटल में कुछ रोशनी दिखी. हालांकि होटल का दरवाजा बंद था लेकिन भीतर से आती आवाजों ने हमारे अंदर उम्मीद जगाई. दूसरे सामान्य दिनों में हम यूं रात-बिरात किसी होटल के थके-मांदे बाशिंदों को तंग नहीं करते लेकिन उस समय हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था. शिष्टाचार से ज्यादा जरूरी हमारा बचना था. हमारी किस्मत अच्छी थी कि हमें सकारात्मक प्रतिक्रिया भी मिली. होटल के मैनेजर गणेश थापा एक 30 साल के एक सज्जन थे. उन्होंने बताया कि सारा स्टाफ जा चुका है और खाने के लिए वे हमें बिस्कुट का आखिरी बचा पैकेट दे सकते हैं. इसके अलावा खाने-पीने का कोई इंतजाम नहीं है. यह विडंबना ही थी कि रिसेप्शन पर ‘वेलकम’ का पोस्टर हमारे सामने था!
हम भारत की नेपाल सीमा पर नाकाबंदी, जिसके बारे में अब तक सिर्फ सुना ही था, की असलियत जानने के लिए नेपाल के एक सिरे से दूसरे सिरे तक यात्रा कर रहे थे. धनगढ़ी कस्टम चौकी पर हम समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक रामकिशन से मिले, जिन्होंने दोनों ओर के लोगों के लिए संकट पैदा करने और मधेसी आंदोलन के बहाने भारत की ओेर से की गई नाकेबंदी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराया. टीकापुर सीमा पर लमकी में हम एक विद्यार्थी बिश्वकर्मा मिले, जो एक छोटा एलपीजी सिलेंडर खरीदने के लिए काठमांडू से वहां तक आया था. अपनी पढ़ाई छोड़कर इस ठिठुरन भरे मौसम में वह बस से 14 घंटों का मुश्किल भरा सफर तय कर यहां आया ताकि नेपाल में आजकल ‘दुर्लभ’ हो रहे ऊर्जा संसाधन को खरीद सके. कालाबाजारी के चलते पेट्रोल भी 300 रुपये (नेपाली) प्रति लीटर मिल रहा है. आम दिनों में नेपाली विद्यार्थियों को सफर करते समय किराए में 20 प्रतिशत की छूट मिलती है, लेकिन ईंधन की अत्यधिक कमी के चलते बिश्वकर्मा का स्टूडेंट आईडी कार्ड अब किसी काम का नहीं है.
टैक्सियों के मालिक पर्यटकों से मनमाना किराया वसूल रहे हैं. 4-5 किलोमीटर की दूरी के लिए भी 1500-2000 रुपये (नेपाली) वसूल किए जा रहे हैं
बिश्वकर्मा ने बताया, ‘हमने काठमांडू में सिलेंडर खरीदने की कोशिश की थी लेकिन वहां एक सिलेंडर 12,000 रुपये (नेपाली) का मिल रहा है.’ बिश्वकर्मा को उम्मीद है कि नेपाल में माओवादी क्रांति फिर होगी. वह क्रांति को नेपाल की सभी समस्याओं के लिए रामबाण जैसा मानता है. उसका कहना है कि केवल क्रांति से ही भ्रष्टाचार, शोषण और अराजकता का अंत हो सकता है. अभी तक की यात्रा में हम ऐसे लोगों से मिले थे जो नेपाल की सभी समस्याओं के लिए 10 साल लंबे जनअसंतोष को जिम्मेदार ठहरा रहे थे, लेकिन बिश्वकर्मा के लिए ये साल सबसे अधिक रोमांचकारी और उम्मीदों से भरे थे.
नेपाल के लोग अपनी सरकार से नाराज हैं. हालांकि वर्तमान संकट की स्थितियों में वे भारत की भूमिका को समझते हैं पर इस पर भी वे अपनी ही सरकार से नाराज हैं कि क्यों वे अपनी समस्याओं (जो खुद उन्हीं की पैदा की गई हैं) का समाधान खुद ढूंढने की बजाय भारत की मदद पर निर्भर हैं. लोगों का गुस्सा स्वाभाविक है. 2014 में नेपाल की जीडीपी 5.48 प्रतिशत हो गई थी, जो वर्ष 2008 के मुकाबले काफी कम है, वह वर्ष जब नेपाल से राजतंत्र खत्म हुआ था.
पिछले साल अप्रैल में आए भयानक भूकंप के कारण हालात बद से बदतर हो गए. 9000 लोग मारे गए और लाखों बेघर हो गए. एक अनुमान के अनुसार इस त्रासदी ने करीब 7 लाख लोगों को गरीबी रेखा से नीचे धकेल दिया. मानव तस्करी बढ़ गई है, साथ ही पलायन भी.
सरकार में होते लगातार बदलावों के कारण नीति निर्धारण और पुनर्निर्माण के कार्य बाधित हुए. संविधान बनने के बाद जब नेपाल फिर से अपने पुनर्वास और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने को ही था कि भारत-नेपाल सीमा की नाकाबंदी ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया. काठमांडू में शुरू हुआ निर्माण कार्य वहीं रुक गया. सितंबर के महीने से नेपाल में रहना कई गुना महंगा हो गया है, मजदूर वहां से पलायन करके ऐसी जगहों पर बसने के लिए मजबूर हैं, जहां जीवन अपेक्षाकृत आसान है. पशुपतिनाथ मंदिर के पास काम करने वाले एक गार्ड का कहना है, ‘जिंदगी इतनी मुश्किल कभी नहीं थी.’
धनगढ़ी सीमा पर ट्रकों की लंबी कतार लगी है. क्लीयरेंस के लिए खड़े ये ड्राइवर तीन दिन के लंबे इंतजार से आजिज आ चुके हैं. एक ट्रक ड्राइवर बताते हैं, ‘मेरे ट्रक में दवाइयां हैं, फिर भी मुझे जाने नहीं दिया गया. एक ड्राइवर ने बताया, ‘सोनौली सीमा पर मैंने 45 दिनों तक क्लीयरेंस के लिए इंतजार किया.’ हमने पूछा, ‘पर भारत सरकार का मानना है कि वहां नेपाल में आप लोगों की जान को खतरा है?’ इस पर नोएडा से सामान ले जा रहे शब्बीर ने जवाब दिया, ‘नहीं! नेपाल में हमें कोई खतरा नहीं है.’
धनगढ़ी सीमा पर एक छोटा कस्टम चेक पॉइंट है. सामान्य दिनों में यहां से केवल 10-15 ट्रक गुजरते हैं लेकिन बीरगंज और सोनौली सीमा पर अशांति के बाद अब इस तरह की छोटी चेक पोस्टों से बड़ी संख्या में ट्रक से गुजर रहे हैं. कस्टम इंस्पेक्टर आरके सिंह बताते हैं, ‘कल यहां से 54 ट्रक गुजरे हैं. दो हफ्ते पहले तक यहां से केवल 15-20 ट्रक गुजरते थे, पर अब ये संख्या सौ तक पहुंच चुकी है. कल तो हमने ओवरटाइम भी किया. 8 बजे के बाद भी कुछ ट्रकों को जाने दिया. पर फिर सीमा सुरक्षा बल के एक अधिकारी ने हमें दोबारा ऐसा करने से मना कर दिया. हमारे ये कहने पर कि हमने ऐसा इंसानियत के नाते किया, उन्होंने कहा, ‘हम इंसानियत नहीं केवल आदेश समझते हैं.’

क्लीयरेंस लेने की प्रक्रिया नए पासपोर्ट के लिए आवेदन करने जितनी जटिल है. पहले ड्राइवर को सरकार द्वारा नियुक्त निजी एजेंट के पास सारे दस्तावेज जमा करने होते हैं. इनकी जांच के बाद कस्टम अधिकारियों को ये दस्तावेज भेजे जाते हैं और अंत में सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी ट्रकों को सीमा पार जाने की अनुमति देते हैं. इसके बाद नेपाल सीमा में पहुंचकर भी ट्रक ड्राइवरों को इसी प्रक्रिया से गुजरना होता है यानी नेपाल के कस्टम अधिकारी, नेपाली पुलिस और कई बार नेपाली सेना द्वारा भी इनकी जांच की जाती है.