ह्त्याग्रही गांधी!


इस मामले में भी प्रथम सूचना रिपोर्ट घटना के लगभग दस दिन बाद दर्ज की गई थी वह भी तब जब चुनाव आयोग ने इसके निर्देश दिए. तब तक समाचार चैनलों के माध्यम से सारा देश साप्रदायिकता का जहर उगलते वरुण को  देख-सुन चुका था. अपनी पड़ताल के दौरान तहलका ने पाया कि पुलिस ने इस मामले में कई ऐसे लोगों को भी गवाह बना दिया जो कि वहां मौजूद ही नहीं थे और उन्होंने वरुण का भाषण सुना ही नहीं था. कोर्ट के आदेश में लिखा है कि इस मामले में कोई वीडियो भी कोर्ट में पेश नहीं किया गया. गवाहों की संख्या भी इस मामले में बरखेड़ा वाले मामले की तुलना में कम थी. इन सभी कारणों से यह मामला काफी कमजोर तरीके से कोर्ट में पेश हुआ.

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मौहल्ला डालचंद वाले मामले के अदालती दस्तावेजों से पता चलता है कि इसमें शामिल ज्यादातर गवाहों द्वारा दिए बयानों की भाषा तक एक जैसी थी. तहलका ने इस मामले से जुड़े चार गवाहों से बात की तो इसकी वजह शीशे की तरह साफ हो गई. इन चार गवाहों ने अलग-अलग समय पर तहलका के ख़ुफ़िया कैमरों पर यह स्वीकार किया कि उनकी गवाही के दौरान जज साहब अदालत में मौजूद ही नहीं थे. इस मामले की सुनवाई भी बरखेड़ा वाले मामले की सुनवाई करने वाले पीलीभीत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अब्दुल कय्यूम ही कर रहे थे. गवाहों द्वारा पुलिस को दिए गए बयानों की इसीलिए कोर्ट में ज्यादा अहमियत नहीं होती क्योंकि यह माना जाता है कि पुलिस उनके बयान दबाव बनाकर भी दर्ज कर सकती है. इसीलिए कोर्ट में जज के सामने दिए बयानों को ही सबसे अहम माना जाता है. मगर मोहल्ला डालचंद के मामले में जज होता तभी तो यह सुनिश्चित होता.

गवाह नंबर 1: विजयपाल
इस मामले के मुख्य गवाह विजयपाल का बयान था, ‘दिनांक 07.03.2009 को डालचंद मोहल्ले में वरुण गांधी की चुनावी सभा नहीं हुई, न ही घर से कहीं गए थे, न ही वरुण गांधी का भाषण सुना था, न ही उन्होंने मुसलमानों के खिलाफ भाषण दिया था.’ मोहल्ला डालचंद मामले के एक अन्य गवाह रियासत तहलका से कहते हैं, ‘मैं सभा खत्म होने के बाद वहां पहुंचा था. विजयपाल, प्रताप आदि लोग सभास्थल के पास पहले से ही मौजूद थे.’ यानी वरुण की सभा भी हुई थी और विजयपाल वहां मौजूद भी थे. मगर यदि रियासत की हमसे कही बात को नज़रंदाज़ कर भी दिया जाए तो भी चार वाक्यों का विजयपाल का बयान बड़ा अजीब-सा है. मगर उनके इस बयान के बेतुकेपन पर न तो अभियोजन पक्ष ने ही कोई सवाल किया और न ही अदालत ने. अदालत करती भी कैसे जब जज साहब विजयपाल की गवाही के वक्त वहां मौजूद ही नहीं थे. यह बात खुद विजयपाल ने हमें बताई-

तहलका : जज साहब से तुम मिले थे कोर्ट में?
विजयपाल : जज साहब नहीं-नहीं, पेशकार साहब के सामने हुई थी गवाही..
तहलका : अच्छा, जज साहब बैठे नहीं थे?
विजयपाल : न, जज साहब नहीं बैठे थे.

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गवाह नंबर 4 – रियासत
जहां इतने प्रभावशाली व्यक्ति के खिलाफ गवाही हो रही हो तब तो जज का दायित्व और भी बढ़ जाता है कि वह यह सुनिश्चित करे कि गवाहों पर कोई दबाव तो नहीं है और वे स्वेच्छा से बयान दे रहे हैं.  लेकिन इस मामले को पीलीभीत के सीजेएम कितनी गंभीरता से ले रहे थे इसका अंदाजा गवाह नंबर चार के रूप में पेश हुए रियासत की बातों से भी लगाया जा सकता है.
तहलका : कोर्ट में क्या हुआ?
रियासत : कोर्ट में बोले फोटो खिंचवा लो जब पहुंचे. अरे हमने कहा खेत पे से आके …पैसे लेके तो लाए नहीं हैं … 40-50 रुपये लाए हैं, 20 रुपये रिक्शेवाला लेता है , जाएंगे काए से? और 20 रुपये के फोटो हैं. अरे बोले फोटो तो खिंचवा लो पैसे वो पुलिसवाला बोला मुझसे ले लो. अरे मैंने बोला तुझसे क्यों लेंगे? फोटो खिंचवाया. फिर वो बड़े भाई थे हमारे उधर. उनसे लिए पैसे मैंने, फोटो खिंचवाय के पैसे-वैसे लेके. उन लोगों को फोटो दिए तीन. उन्होंने फोटो-वोटो लगाया फाइल में …अंदर से … कुछ उन्होंने हमसे पूछा ही नहीं क्या है …ना अंदर जाने का मौका मिला किसी गवाह को. किसी मतलब कि किसी गवाह को .. मुझे ही नहीं … किसी गवाह को…अंदर कोई नहीं गया गवाह.
तहलका : अंदर मतलब कोर्ट में कोई नहीं गया ?
रियासत : कागज बने हुए रखे हैं. क्या है वो … फोटो लगे सबकी .. सब गवाह सब गवाहों के.
तहलका : बस आपने अंगूठा लगा दिया ?
रियासत : बस,…. अंगूठा लगा दिया ….फिर चले गए …
तहलका : और जज ने आपसे कुछ पूछा?
रियासत : अरे जज ससुरा छुट्टी ले रहा तीन-तीन दिन से. तीन दिन पहुंचे हम अदालत, तीनों दिन साहब बैठे नहीं. एक फेरे गवाही पे गए लौट आए, दिन बर्बाद किया. दूसरा दिन गए, दूसरा गए लौट आए. फिर 20 तारीख जब गए.
तहलका : जिस दिन गवाही हुई उस दिन भी जज साहब नहीं थे ?
रियासत : जज साहब उस दिन बैठे थे मगर लंच हो गया था. लंच के बाद सब गवाह पहुंचे. अंगूठा लगा लगा के चले आए लौट के
तहलका : तो जज से कोई मुलाकात भी नहीं हुई आप लोगों की?
रियासत : कोई मुलाकात नहीं किसी की .. हमारी नहीं किसी भी गवाह की
तहलका : मतलब कोई बातचीत कुछ भी नहीं
रियासत : ना
तहलका : और वो अंगूठा जहां आपने लगाया, वो कोर्ट के बाहर ही हो गया था वो ? जज साहब के सामने हुआ या अलग ही ?
रियासत : नहीं, वो पेशकार जो बैठता है न …
तहलका : हां, पेशकार के सामने ?
रियासत : हां .

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गवाह नंबर-2: प्रताप

गवाही के दौरान जज साहब की नामौजूदगी की बात एक और गवाह प्रताप के मुंह से भी सुनिए–
तहलका: जज साहब ने पूछा कुछ सवाल
प्रताप: नहीं.. उधर साहब(पेशकार) थे नीचे अर्दली था…
तहलका: जज साहब नहीं थे?
प्रताप: जज साहब नहीं थे..

 

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गवाह नंबर 5 नफीस

जज की नामौजूदगी में गवाही होने की बात नफीस भी तहलका के कैमरे पर स्वीकार करते हैं.

तहलका : जज साहब ने कुछ कहा नहीं कि फिर आपको गवाह क्यों बनाया गया…उन लोगों को डांटा नहीं कि जब आप थे ही नहीं वहां पर तो क्यों…
नफीस : ना-ना-ना उन्होंने कुछ भी नहीं कहा…पहली बात तो जज साहब थे ही नहीं…पेशकार साहब थे…

स्पष्ट है कि बिना कोर्ट में उपस्थित हुए और बिना गवाहों को सुने या बिना उनसे कोई सवाल-जवाब किए सीजेएम अब्दुल कय्यूम ने 27 फरवरी, 2013 को वरुण गांधी को मोहल्ला डालचंद के मामले से दोषमुक्त करने का आदेश जारी कर दिया.

इस सबको पढ़कर कोई बच्चा भी आसानी से समझ सकता है कि किस तरह कानून का हर जगह हर तरह से मजाक उड़ाया गया जिससे वरुण गांधी भड़काऊ भाषणों के दोनों ही मामलों में साफ बच निकले.

इसके बाद कम से कम यह सवाल तो हमारे सामने खड़ा होता ही है कि क्या इन मामलों की दुबारा जांच और ट्रायल नहीं किए जाने चाहिए. और जिन्होंने ऐसा किया या होने दिया उनके बारे में भी क्या नहीं सोचा जाना चाहिए?
लेकिन वरुण गांधी की खुद को बचाने की कहानी यहीं खत्म नहीं होतीः

आखिरी मामलाः दंगा भड़काना, पुलिस के ऊपर जानलेवा हमला करना और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना
घटना दिनाँक : 28 मार्च 2009
प्रथम सूचना रिपोर्ट : 28 मार्च 2009
अंतर्गत धारा : 147, 148, 149, 307, 427, 336, 332, 188 भारतीय दंड संहिता
कुल गवाह: 39

चार मई को वरुण गांधी बलवा, फसाद और हत्या के प्रयास से संबंधित आखिरी मामले में भी अदालत से बरी हो गए. तहलका को इस अपराध से जुड़े दो तथ्य अपनी तहकीकात के दौरान ही मिल गए थे. भाजपा जिलाध्यक्ष परमेश्वरी गंगवार का छिपे कैमरे पर बयान और योगेंद्र गंगवार का शपथपत्र जिससे यह बात सिद्ध होती है कि वरुण गांधी के आत्मसमर्पण के दौरान जो कुछ हुआ वह पूर्वनियोजित था. वरुण गांधी के खिलाफ यह तीसरा मामला 28 मार्च, 2009 को दर्ज हुआ था. इस मामले पर अदालत का निर्णय तब आया जब हम अपनी स्टोरी के अंतिम पड़ाव पर थे. इसके बावजूद थोड़ी-सी खोजबीन करने पर ही कुछ बड़ी गड़बड़ियां सामने आ गईं.

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वरुण गांधी के साथ इस मामले में कुल नौ लोगों को अभियुक्त बनाया गया था. इसमें कुल गवाहों की संख्या 39 थी. इस मामले में जहां वरुण गांधी तो बरी हो चुके हैं वहीं बाकी आठ आरोपितों का मुकदमा अभी प्रारंभिक चरण में ही है. बाकी दोनों मामलों की तरह इस मामले में भी सभी 39 गवाह अपने बयान से मुकर गए. किसी भी आरोपित का ट्रायल अन्य आरोपितों से अलग किए जाने के बारे में पीलीभीत के अधिवक्ता अश्विनी अग्निहोत्री हमें समझाते हैं, ‘किसी भी मामले में एक से ज्यादा अभियुक्त हों तो उन सभी का ट्रायल एकसाथ ही होता है. किसी भी अभियुक्त को सिर्फ उसी हालत में बाकियों से अलग किया जा सकता है जबकि वह फरार हो या कोर्ट में पेश न हो रहा हो. लेकिन वरुण गांधी को यह विशेष रियायत पीलीभीत कोर्ट में दी गई.’ एक ही मामले में आरोपित लोगों के अलग-अलग ट्रायल न किए जाने की भी कुछ वजहें हैं. जैसे एक तो उन्हीं गवाहों को बार-बार गवाही के लिए बुलाना होता है, ऊपर से कोर्ट का भी कीमती समय नष्ट होता है. इसके अलावा न्यायिक प्रक्रिया में आने वाला सरकारी खर्च भी बढ़ जाता है. लेकिन वरुण को यह विशेष कृपा मिली. बाकी अभियुक्त अभी कचहरी के चक्कर काटते रहेंगे.

इस तीसरे मामले में जिस तरह की स्थितियों में गवाहों की गवाहियां हुईं हैं वे बाकी दोनों मामलों से बिल्कुल मेल खाती हैं. इस मामले में भी एक-एक दिन में कई-कई गवाहों की गवाही हुई और सब के सब अपने बयान से मुकर गए. वरुण गांधी के तीनों मामले शायद भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक कीर्तिमान होंगे. एक व्यक्ति के खिलाफ तीन आपराधिक मामले थे. हर मामले में बीस-तीस-चालीस गवाह. मगर एक भी गवाह अपने बयान पर कायम नहीं रहा. ये स्थितियां पहली नजर में ही गड़बड़ी के संदेह को जन्म देने के लिए पर्याप्त हैं. ऊपरी अदालतें इनका संज्ञान ले सकती है. यह न्यायपालिका की विश्वसनीयता का भी मामला है.

जो वरुण गांधी ने 2009 में किया था, वह उन मूल सिद्धांतों के ही खिलाफ था जिन पर हमारे देश की बुनियाद टिकी है. मगर उसके बाद वरुण ने खुद को बचाने के लिए जो किया वह उससे कई कदम आगे था. पहले उन्होंने देश के धर्मनिरपेक्ष और विविधताओं से भरे ताने-बाने को उधेड़ने की कोशिश की थी और बाद में उन्होंने जो किया वह न्याय पर आधारित व्यवस्था की जड़ पर चोट करने जैसा था. इन सभी मामलों को लेकर जब हमने वरुण गांधी से संपर्क किया तो उन्होंने इन पर किसी भी तरह की प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया.

आज वरुण गांधी खुद पर लगे सभी आरोपों से मुक्त हैं, पार्टी में उन्हें बड़ी जिम्मेदारियां दी जा रही हैं और भाजपा उनके रूप में भविष्य के एक बड़े राजनेता को तलाश रही है. लेकिन क्या वरुण गांधी का इन आरोपों से मुक्त हो जाना एक अपराधी का सजा से बच निकलना भर है? या फिर उनका दोषमुक्त होना उस बुनियाद का मजबूत होना है जिस पर आगे चलकर इसी तरह के और भी अपराध फलते-फूलते हैं. उन्नीस सौ चौरासी के सिख विरोधी दंगों के अपराधियों को यदि सजा हुई होती तो 2002 का नरसंहार रोका जा सकता था. चौरासी के दंगाइयों को मिला राजनीतिक संरक्षण ही आगे चलकर बाबू बजरंगी और माया कोडनानी जैसे लोगों को पैदा करता है. ठीक उसी तरह से यदि वरुण गांधी को उनके अपराधों की समय रहते सजा मिलती तो कोई अकबरुद्दीन ओवैसी पैदा नहीं होता.

अपने राजनीतिक हित साधने के लिए जिस तरह से वरुण गांधी ने पूरे क्षेत्र की सांप्रदायिक भावनाओं को भड़का दिया था उसके परिणाम बहुत ही घातक हो सकते थे. वरुण के ही नजदीकी परमेश्वरी हमारे खुफिया कैमरे पर यह कहते हैं, ‘हमारे यहां मोम्डन गांवों में नहीं जाते थे फेरी करने वाले…बंद हो गए थे… बहुत भयभीत, पूरा पीलीभीत.’ वरुण के उस जहरीले भाषण के एक चश्मदीद और उसको रिकॉर्ड करने वाले पत्रकार रामवीर सिंह भी बताते हैं,  ‘बरखेड़ा वाला इसने इतना गलत कहा था…कि सामने मुस्लिम बस्ती है पूरी, कम से कम एक-डेढ़ हजार मुस्लिम था. वो खाली अपनी छत से ईंट-पत्थर फेंक देते…बाजार का दिन था उस दिन तो सौ-दो सौ मर जाते’. इसी तरह से मोहम्मद यामीन ने भी हमें बताया कि वरुण के भाषण के बाद पीलीभीत में दंगा होते-होते बचा. और इस मामले के एक गवाह रामऔतार ने तो यहां तक कहा कि गांव के लोग मुसलमानों को मारने की तैयारी भी करने लगे थे, ‘गांव का इंटेलिजेंट पर्सन तो इन बातों को नहीं मानता है…ठीक है…गांव का जो इलिट्रेट पर्सन है उसने कहा अच्छा यार ये नेता बढ़िया है. हम लोग हिंदू, साले ये चार-छह मुसलमान…ये सही कह रहे हैं बिल्कुल.. तो गांववाले मुसलमानों को मारने की तैयारी करने लगे…’इसे एक सुखद संयोग ही कह सकते हैं कि वरुण गांधी की लगाई हुई चिंगारी आग बनते-बनते रह गई.

(प्रदीप सती के सहयोग के साथ)