भाजपा के इन प्रयासों का कांग्रेस पर क्या असर पड़ा है इसका पता उसके मंत्री श्यामलाल के बयान से चलता है जिसमें उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर का अगला मुख्यमंत्री कोई हिंदू बनना चाहिए. जानकारों की मानें तो कांग्रेस को पता है कि अगर प्रदेश में ध्रुवीकरण होता है तो सबसे अधिक नुकसान उसी का होने वाला है.
हालांकि बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो भाजपा के प्रयास को दुस्साहस करार देते हैं. खालिद कहते हैं, ‘यह सही है कि भाजपा ने लोकसभा में अच्छा प्रदर्शन किया. एसेंबली सेग्मेंट्स में उसे अच्छी सफलता मिली. लेकिन अपना मुख्यमंत्री बनाने की बात करना थोड़ा ज्यादा हो गया. उसके पास कश्मीर और लद्दाख में एक भी विधायक नहीं है. हां, यह अमित शाह की तरफ से कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने के लिए छोड़ा गया शिगूफा हो सकता है. वे इसके लिए जरूर प्रयास कर सकते हैं कि उनके बगैर राज्य में किसी की सरकार बन नहीं पाए.’
भाजपा बेहद आक्रामक तौर पर पूरे प्रदेश में अपना चुनावी अभियान चला रही है. पार्टी को सत्ता के शिखर पर पुहंचाने के लिए संघ परिवार भी पूरी जोर-शोर से लगा हुआ है. संघ के एक पदाधिकारी कहते हैं, ‘यह कहना गलत है कि हम भाजपा के लिए लगे हुए हैं. संघ का तो बहुत पहले से यहां काम रहा है. हां, अब यह काम लोगों की नजरों में आ रहा है वह अलग बात है.’
सूत्र बताते हैं कि कैसे जम्मू-कश्मीर खासकर जम्मू के इलाकों में लोकसभा चुनाव के दो साल पहले से ही संघ और उससे जुड़े संगठनों ने बेहद आक्रामक तौर पर काम करना शुरु कर दिया था. लोगों को ‘मोबिलाइज’ करने का काम भाजपा कार्यकर्ताओं से अधिक संघ के स्वयंसेवकों ने किया. कांग्रेस को हिंदू विरोधी ठहराते हुए उन्होंने प्रदेश की हिंदू आबादी को भाजपा से जोड़ने की कोशिशें कीं. जम्मू क्षेत्र के गांवों में संघ के प्रचारक पिछले दो साल से लगातार दौरे और कैंप कर रहे थे. खालिद कहते हैं, ‘जम्मू इलाके में संघ बहुत लंबे समय से काम कर रहा है. संघ की सालों की मेहनत का ही इस बार फायदा भाजपा को चुनावों में मिला. धीरे-धीरे ये लोग घाटी की तरफ भी आ रहे हैं. यहां इन्होंने प्रॉक्सी नामों से तमाम सहायता संगठन खड़े कर लिए हैं.’

कश्मीर के लोगों के बीच भाजपा की पैठ बनाने की कोशिश का पता इस बात से भी चलता है कि जिस धारा 370 को हटाने को लेकर भाजपा हमेशा मुखर रहती है वह अब पीछे छूट चुकी है. पार्टी का कहना है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा उसके घोषणापत्र में शामिल नहीं होगा.
लद्दाख में भी पार्टी ने बौद्धों को जोड़ने का बड़ा प्रोजेक्ट चलाया है. वहां शिया मुसलमानों और बौद्धों के बीच की लड़ाई के बाद संघ ने अपनी एक जगह बना ली है.
कुछ समय पहले ही पाकिस्तान की तरफ से सीमा के इलाकों में जारी भारी फायरिंग से बड़ी संख्या में वहां रहने वाले लोग हताहत हुए. लोगों को अपना घर बार छोड़कर भागना पड़ा. ऐसा पहली बार था कि इन इलाकों में संघ ने कई राहत शिविर खोले जिनमें लोगों के रहने से लेकर उनके खाने-पीने और इलाज तक का इंतजाम किया गया था. प्रदेश में विश्व हिंदू परिषद मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदू धार्मिक स्थानों के जीर्णोद्धार और यात्राओं का अलग मोर्चा खोले हुए है. कुछ समय पहले ही उसने पूंछ जिले के मंडी क्षेत्र में बुद्ध अमरनाथ यात्रा को शुरू कराया. 1990 में आतंकवाद के कारण इस यात्रा को बंद करा दिया गया था.
भाजपा प्रदेश में कैसे पिछले कुछ समय में मजबूत हुई है, इसका पता इससे भी चलता है कि प्रदेश में तमाम नेताओं ने भाजपा का दामन थामा है. जैसे पीडीपी नेता हाजी ताज मोहम्मद खान, पीडीपी की युवा इकाई के प्रदेश महासचिव शौकत जावेद, पूर्व एनसी नेता मोहम्मद शफी भट्ट की बेटी हीना भट्ट, राजौरी से वरिष्ठ नेता चौधरी तालिब हुसैन समेत तमाम नेता आज भाजपा का झंडा बुलंद कर रहे हैं.
ऐसे समय में जब प्रदेश सरकार के खिलाफ लोगों में काफी नाराजगी है और बाढ़ में पूरा राज्य प्रशासन लगभग जलमग्न हो गया है, केंद्र सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. जानकार बताते हैं कि भाजपा को लेकर तो पहले से ही जम्मू क्षेत्र में माहौल है. अगर केंद्र सरकार ने बाढ़ से उपजी इस त्रासदी में लोगों के राहत और पुनर्वास पर अच्छी तरह से काम किया तो भाजपा के लिए जम्मू-कश्मीर में एक नए दौर की शुरुआत हो सकती है. लोग ऐसा मानते हैं कि मोदी के लिए यह भी एक बड़ा मौका है. अगर वे वहां के लोगों को बेहतर तरीके से राहत पहुंचा पाते हैं, उनकी सरकार अगर कश्मीर के लोगों का अच्छी तरह से पुनर्वास कर पाती है तो मुख्यमंत्री बनाने से ज्यादा बड़ा संदेश वे अंतराष्ट्रीय बिरादरी के साथ ही वहां के लोगों को भी दे पाएंगे.
बाढ़ ने जिन दो दलों के राजनीतिक भविष्य पर सर्वाधिक प्रभाव डाला है वे भाजपा और एनसी ही हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस की स्थिति खराब तो पहले ही थी. अब वह और खराब हो गई है. राजनीतिक टिप्पणीकार बताते हैं कि अगर प्रदेश में नवंबर तक चुनाव हुए और केंद्र सरकार ने राहत और बचाव का काम अच्छे से किया तो जरूर भाजपा को इसका चुनावी लाभ मिल सकता है. और अगर बाढ़ त्रासदी के कारण चुनाव और टले और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की नौबत आई, जिसकी हल्की संभावना दिखाई दे रही है तो ऐसी स्थिति में भाजपा को प्रदेश में अपनी छवि चमकाने के लिए बड़ा मौका मिल सकता है. राष्ट्रपति शासन भाजपा के पक्ष में ही जाएगा.
एक तबके का ऐसा मानना है कि चुनाव टलने और राष्ट्रपति शासन लगने की स्थिति में अगर मोदी सरकार ने बाढ़ प्रभावितों के पुनर्वास का काम सही तरह से कर दिया तो इससे भाजपा अपने बेस जम्मू में तो मजबूत होगी ही, वह कश्मीरी जनता की नजरों में भी जगह बनाने में कामयाब हो सकती है.