सादर
बहुत संकोच से आपको यह पत्र लिख रहे हैं. बहुते सोचे-विचारे हमलोग कि का इतनी छोटी-छोटी बातों में प्रधानमंत्री से बात करनी चाहिए! बहस हुई हमारे बीच इस बात पर. कुछ ने कहा कि अपने देश के प्रधानमंत्री का काम क्या यही है कि वे टोले-मोहल्ले की लड़ाई को सुनते रहे, उसमें हस्तक्षेप करे, उसे सुलझाते रहें. एकमत से राय बनी कि नहीं, कतई नहीं. प्रधानमंत्री का काम टोले-मोहल्ले की लड़ाई में फंसना नहीं है. उन्हें देश देखना है, दुनिया को देश से जोड़ना है लेकिन हम मजबूर होकर आखिरी उम्मीद की तरह बिहार के एक सुदूरवर्ती इलाके में बसे एक गांव की छोटी-सी बात आप जैसे बड़े लोगों तक पहुंचा रहे हैं. यह उम्मीद भी कई वजहों से जगी. एक तो आप रेडियो के जरिये ‘मन की बात’ करते हैं तो लगता है कि जब आप जनता से अपने मन की बात कर रहे हैं तो जनता भी तो आपसे अपने मन की बात कर सकती है! और दूसरा, 15 अगस्त वाला दिन याद आता है. उस दिन हम लोगों ने देखा-सुना था कि आप दिल्ली के लालकिला वाले प्राचीर से क्या बोल रहे थे. आप बोले थे न कि हम शौचालय की बात कर रहे हैं, लोग कहते हैं कि देश का प्रधानमंत्री शौचालय-सफाई वगैरह जैसी छोटी-छोटी बातों में दिमाग खपा रहा है. आपने ताल ठोंकते हुए कहा था कि हम लगाएंगे छोटी-छोटी बातों में दिमाग. जिसे जाे कहना है कहे लेकिन आपके इन वाक्यों पर मर मिटे थे हम लोग कि सही कह रहे हैं और उसी दिन उम्मीद भी जग गई थी कि छोटी बातें भी आपसे कह सकते हैं.
इसकी कुछ और वजहें भी हैं. एक तो यह बात हमें बिहार के मुखिया तक पहुंचानी चाहिए थी लेकिन बिहार के मुखिया के लिए हमारे सुदूर इलाके में बसे गांव की छोटी-सी लड़ाई कोई मसला ही नहीं बन सका. ऐसा नहीं कि हम लोगों ने कोशिश नहीं की. बहुत कोशिश की उन तक अपनी बात पहुंचाने की. बात उन तक पहुंच भी गई लेकिन उन्होंने हमारी पीड़ा पर ध्यान नहीं दिया. तब हम सबने तय किया आप तो इतनी व्यस्तता के बावजूद अपने मन की बात लोगों से कहते हैं तो क्यों नहीं हम लोग भी अपने मन की बात आप तक पहुंचाएं. आप तो देश के अलग-अलग हिस्सों में घूमने वाले पीएम भी हैं, इन दिनों लगातार बिहार आ रहे हैं और बिहार को रसातल के आखिरी तल से निकालने की बात कर रहे हैं, उस बात से भी उम्मीद जगी थी कि आप हम लोगों की बात जरूर सुनेंगे, उस उम्मीद से भी यह पत्र आपको प्रेषित कर रहे हैं. आप जब पिछले माह उत्तर बिहार के सहरसा इलाके में आये थे, तब ही हम लोगों ने तय किया था कि अपने समुदाय की पीड़ा की पाती आपको सौंप देंगे लेकिन तब आप तेज बारिश में आए और जाने की भी उतनी ही जल्दबाजी थी, सो हम यह खत नहीं सौंप सके.
प्रधानमंत्री जी, बस थोड़ी देर तक हमारी बातों को सुनिएगा. बहुत संक्षिप्त में हम अपनी बात रख रहे हैं. हम बिहार के खगड़िया जिले के परबत्ता इलाके के नयागांव के शिरोमणि टोला के वासी हैं. तांती जाति से आते हैं हम. आप ही के जाति समूह से. आप भी खुद को पिछड़ा कहते हैं, हम लोग भी पिछड़े समूह से ही हैं. राजनीति के फेरे ने फिर अतिपिछड़ा समुदाय में पहुंचाया था और अभी दो माह पहले ही हम लोग दलित-महादलित वाले श्रेणी में आ गए हैं. सबसे ताजातरीन दलित बने जातियों में आते हैं हम.