तूफान से त्राहि-त्राहि

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21 अप्रैल की रात पौने दस बजे उठे भीषण चक्रवाती तूफान ‘काल बैशाखी’ ने कोसी-सीमाचंल-मिथिला के इलाके के आधा दर्जन जिलों को तहस-नहस कर दिया. दसियों हजार घर एक झटके में जमीन पर आ गिरे. हजारों पेड़ जड़ से उखड़ गए, जिनमें सैकड़ों साल पुराने पीपल और बरगद जैसे पेड़ थे. चार दर्जन से अधिक लोग घरों के नीचे दबकर मर गए, सैकड़ों गंभीर रूप से जख्मी हो गए. पूरे इलाके की विद्युत और संचार व्यवस्था अगले पूरे हफ्ते के लिए ध्वस्त हो गई. खेतों में खड़ी लगभग पूरी मक्के की फसल बर्बाद हो गई.

सैकड़ों पालतू पशुओं की मौत हुई. पहले से ही बाढ़ तथा दूसरी आपदाओं का शिकार इस इलाके के लोगों को इस आपदा ने तोड़कर रख दिया. हर बार आपदाओं से उबरकर खुद खड़े हो जानेवाले लोगों को इस बार लगा कि कोई उनकी टूटी कमर को सहारा देगा तभी खड़े हो पाएंगे.

मगर इस इलाके का दुख-दर्द जब दुनिया के सामने आना था उस रोज दिल्ली में आप की रैली में किसान की खुदकुशीवाली कहानी हो गई. और उम्मीद की आस लगाए बैठे इन पीड़ितों की कथा किसी ने गौर से नहीं सुनी. हालांकि दो दिन बाद केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस इलाके का दौरा और हवाई सर्वेक्षण किया. फिर दलीय राजनीति की सीमाओं से ऊपर उठकर दोनों ने कोसी-सीमांचल को फिर से बसाने के वादे किए. नीतीश ने केंद्र का शुक्रिया अदा किया और राजनाथ ने कहा, बिहार सरकार जितना प्रस्ताव देगी उतनी मदद की जाएगी. यह दावे भी किए गए कि सरकारी राहत कार्य शुरू कर दिया गया है. मगर इससे पहले कि ये दावे जमीन पर उतर पाते, शनिवार को नेपाल में भीषण भूकंप आया और उसके झटके पूरे उत्तरी भारत में महसूस किए गए. दो दिन बाद ही सही सरकारी तबके की जो सहानुभूति कोसी-सीमांचल के इन पीड़ितों के प्रति जो उभरी थी वह पिछले तीन दिन से लगातार आ रहे झटकों में कहीं गुम हो गई है.

तीन दिन से पूरा बिहार भूकंप के खौफ में डूबा हुआ है. लाखों भयभीत लोग रोज सड़कों पर सो रहे हैं, 60-70 लोग सदमे और भगदड़ की वजह से जान गंवा चुके हैं. अफरा-तफरी के कारण सैकड़ों लोग बेहोश हो रहे हैं और अस्पतालों में इलाज करा रही हैं. सोशल मीडिया पर रोज तरह-तरह के अफवाह उड़ रहे हैं और इन अफवाहों ने लोगों से रातों की नीद छीन ली है. मगर इस बीच कोसी-सीमांचल के दसियों हजार लोग पिछले एक हफ्ते से सड़क पर हैं. अपने बांस-बल्ली और टीन-टप्परवाले घरों को खड़ा करने के लिए मददगार हाथों का आसरा देख रहे हैं.

घरों में खाने के लिए साबुत अनाज नहीं बचा है. जिनके घरों में मौतें हुई हैं, उनके आंसू खुद-ब-खुद सूख जा रहे हैं. लोगों से खेतों की तरफ नजर उठाकर देखा नहीं जा रहा.

इस बार की आपदा लाइलाज होती जा रही है. कुछ ही हफ्ते पहले हुई असमय बारिश में ये लोग गेहूं की फसल गंवा चुके हैं, इस बार मक्का, आम-लीची जो भी बचा था खत्म हो गया. बांस और टीन जैसी चीजें जिनसे वे अपनी झोपड़ी खड़ी करते थे, रातों रात काफी महंगी हो गई. यह ऐसा मौसम है जब फसलों के दाम से मिले पैसों से लोगों के पास अगले छह महीने का खर्चा-पानी जुटता है. मगर मौसमी तांडव की वजह से ऐन चैत-बैशाख में लोगों का बटुआ खाली है और खर्चा दसियों हजार का है. सबसे पहले तो घर खड़ा करना है, फिर अगले छह महीनों के लिए खाने-पीने का इंतजाम.

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लोग अभी गांवों में इसलिए बचे हुए हैं कि बार-बार खबर मिलती है कि राहत-मुआवजा बंटेगा. वरना लोग कबके सीमांचल एक्सप्रेस पर बैठकर सपरिवार दिल्ली, पंजाब और हरियाणा चले गए होते. चले ही जाएंगे, राहत-पुनर्वास का पैसा मिले चाहे न मिले. रोज की दाल-रोटी का इंतजाम तो इन पैसों से नहीं हो पाएगा न. और फिर राहत के बंटवारे में कितनी धांधली होती है और जरूरतमंदों के पास कितनी राहत पहुंचती है, यह इस इलाके के लोगों का देखा हुआ है. फिर इस बार की आंधी-पानी ने यहां के गृहस्थों के पास भी इतनी ताकत नहीं छोड़ी कि वे मजदूरों की रोजी-रोटी का इंतजाम कर सकें. घर छोड़ना ही होगा और जाना ही होगा उस देश जहां वे बाजुओं की ताकत से इतना कमा सकें कि अपनी उजड़ी दुनिया को फिर से बसा सकें.

मौसम विभाग के रडार से बाहर है कोसी

पहले आंधी-तूफान आता तो उसे लोग आपदा समझकर झेल जाते थे. मगर अब मौसम विभाग से पूछने का सिलसिला शुरू हुआ है. इस आपदा के बाद जब लोगों ने मौसम विभाग से पूछा तो पता चला कि कोसी का इलाका जो मौसमी आपदाओं का सबसे बड़ा शिकार रहा है, वह मौसम विभाग के रडार के ही बाहर है. मौसमी बदलावों की कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. महज इस एक उदाहरण से हिंदुस्तान के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक कोसी-सीमांचल के प्रति सरकारी रवैए का अनुमान लगाया जा सकता है. इस बार सरकार की आंखें खुली हैं और कहा जा रहा है कि बंगाल के न्यू जलपाइगुड़ी में मौसम विभाग का रडार लगेगा. वह भी 2017 तक. अब यह सवाल समझ से परे है कि एक रडार लगाने के लिए दो साल का समय क्यों लगना चाहिए.

(लेखक प्रभात खबर से जुड़े हुए हैं)