‘ईश्वर के दूत’ की नस्लवादी करतूत

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खुद के ईश्वर का दूत होने का दावा करने वाले डेरा सच्चा सौदा के संत गुरमीत राम रहीम की विवादास्पद फिल्म ‘एमएसजी-2’ कुछ राज्यों में प्रतिबंधित कर दी गई है. जिन तीन राज्यों (झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश) में फिल्म को प्रतिबंधित करना पड़ा है, वे तीनों आदिवासी बहुल राज्य हैं. राम रहीम की यह फिल्म इसी सितंबर की 18 तारीख को रिलीज हुई थी जिसे देश के अधिकांश हिस्से के आदिवासियों के कड़े प्रतिवाद का सामना करना पड़ा. फिल्म में की गई नस्लीय टिप्पणी के खिलाफ देश के अधिकांश हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए, राम रहीम का पुतला फूंका गया, रैलियां निकाली गईं, थानों में एफआईआर दर्ज हुए और कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गईं. सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक आदिवासी समाज और उनके विभिन्न सहयोगी संगठनों ने विरोध करते हुए फिल्म पर प्रतिबंध लगाने, फिल्म निर्माताओं द्वारा सार्वजनिक रूप से माफी मांगने और फिल्म के निर्माता-निर्देशक व अभिनेता संत गुरमीत राम रहीम की तुरंत गिरफ्तारी की मांग उठाई.

वैसे फिल्म का विरोध यूट्यूब पर इसका ट्रेलर जारी होते ही शुरू हो गया था. फिल्म में आदिवासियों के बारे में कहा गया है, ‘ये लोग न इंसान हैं और न ही जानवर. ये शैतान हैं शैतान.’ हालांकि डेरा सच्चा सौदा के हरियाणा के प्रवक्ता डॉ. आदित्य इंसान कहते हैं, ‘फिल्म राजस्थान के आदिवासी समाज की सच्ची घटनाओं पर आधारित है. इसमें ऐसा कुछ नहीं, जिसे विवादास्पद कहा जाए. फिल्म का उद्देश्य केवल इंसानियत को बढ़ावा देना है.’ खबर यह भी है कि लीला सैमसन ने इसी फिल्म के पहले भाग के प्रदर्शन को लेकर उठे विवाद के बाद सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.

दिल्ली और झारखंड हाईकोर्ट की टिप्पणी है कि फिल्म में दिखाए और बताए गए आदिवासियों का अनुसूचित जनजाति से कोई संबंध नहीं है. जबकि पूर्व के कई प्रसंगों में विभिन्न राज्यों के हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक अनुसूचित जनजातियों के लिए ‘आदिवासी’ शब्द का प्रयोग करते रहे हैं.

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