भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) धीरे-धीरे क्रिकेट के बजाय गड़बड़ियों और अव्यवस्थाओं का बोर्ड बनता जा रहा है. कारण स्वाभाविक हैं. क्रिकेट के मामलों में अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत करने का कोई भी मौका मुश्किल से ही छोड़ने वाला बीसीसीआई अपनी संस्थागत परेशानियों से जूझ रहा है. बोर्ड की परेशानियों में अध्यक्ष जगमोहन डालमिया के असमय निधन ने और इजाफा कर दिया है. अपने खराब स्वास्थ्य के चलते ही वे बीसीसीआई अध्यक्ष के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का ठीक तरीके से निर्वहन नहीं कर पा रहे थे. डालमिया की मौत ने बीसीसीआई को और मुश्किल में डाल दिया है, जिसके कारण इसकी भविष्य की योजनाएं बुरी तरीके से प्रभावित होंगी.
वर्तमान स्थिति में ऐसे ढेरों सवाल उठ रहे हैं, जिनका जवाब देने में बोर्ड के अधिकारियों को खासा संघर्ष करना पड़ेगा. खराब सेहत के बावजूद डालमिया बीसीसीआई अध्यक्ष पद पर क्यों बने रहे? गौर करने वाली बात यह है कि बीसीसीआई अध्यक्ष के रूप में डालमिया की नियुक्ति पर सबसे पहला सवाल सुप्रीम कोर्ट ने उठाया. पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज अशोक भान और आरवी रवींद्रन के पैनल ने अध्यक्ष पद के साक्षात्कार के दौरान डालमिया की सेहत को ठीक नहीं पाया था. इस पैनल का गठन सुप्रीम कोर्ट द्वारा आईपीएल 2013 में सट्टेबाजी के दोषी पाए जाने के बाद पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मयप्पन और राजस्थान रॉयल्स के सह मालिक राज कुंद्रा के लिए दंड निर्धारित करने के लिए किया गया था.
जस्टिस लोढ़ा की अध्यक्षता वाले इस पैनल ने डालमिया के काम पर सवाल उठाए, जिस पर अपने पिता के स्थान पर डालमिया के बेटे अभिषेक ने न्यायाधीशों को उनकी सफाई दी, जो इस पैनल को बेतुकी लगी. उनका सवाल था कि आखिर बीसीसीआई को चला कौन रहा है. ये पैनल डालमिया के स्वास्थ्य पर बीसीसीआई अधिकारियों की चुप्पी पर आश्चर्यचकित था. उन्होंने टिप्पणी भी की, ‘यदि इस समय बीसीसीआई अध्यक्ष के मानसिक और शारीरिक सेहत की ये स्थिति है तो क्या तीन महीने पहले उनका चयन करने वाले उनके इस हाल से अनभिज्ञ थे? और अगर उनकी सेहत हाल के समय में लगातार गिर रही है तो आखिर दुनिया के इस सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड को चला कौन रहा है?’
वरिष्ठ क्रिकेट लेखक आशीष शुक्ला ‘तहलका’ को बताते हैं, ‘वास्तव में बोर्ड ने डायरेक्टर के रूप में रवि शास्त्री के कार्यकाल को दो साल न बढ़ाकर अपना ही नुकसान किया है. कितने कोचों ने विदेशी दौरों में पहले मैच को हारने के बाद तीन टेस्ट मैचों की सीरीज में जीत दिलाई है? भारत को शास्त्री के रूप में एक हेड कोच की जरूरत नहीं है, हालिया सपोर्टिंग स्टॉफ बढिया काम कर रहा है. श्रीलंका की भीषण गर्मी में जब वहां के स्थानीय खिलाड़ी नहीं खेल पा रहे थे तब भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन बेहतर रहा. राहुल द्रविड़ एक अच्छे कोच हो सकते हैं और वे यह जिम्मेदारी भी लेना चाहते हैं. नए खिलाड़ी भी उनसे लगातार सलाह लेते रहते हैं. वे बोर्ड को सुझाव दे सकते हैं और मुझे लगता है वे खुशी से द्रविड़ की बात मान भी लेंगे.’
डालमिया की अस्वस्थता के समय बीसीसीआई सचिव अनुराग ठाकुर और आईपीएल चेयरमैन राजीव शुक्ला क्रिकेट से संबंधित सभी मामले देख रहे थे. इस साल मार्च में जब डालमिया ने बीसीसीआई अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला था तो उनसे ढेरों उम्मीदें थीं, हालांकि वे इन्हें पूरा कर पाने में असफल रहे. वैसे भारतीय क्रिकेट की वर्तमान हालत, आईपीएल से जुड़े विवाद और डालमिया के खराब स्वास्थ्य पर चिंतित होने के बजाय बीसीसीआई के अधिकारियों को समस्याओं से निपटने के लिए ज्यादा बेहतर तरीके से काम करना चाहिए. हालांकि डालमिया के निधन से स्थिति बद से बदतर हो गई. अब बीसीसीआई को ऐसे अध्यक्ष की तलाश करनी होगी, जो बोर्ड को इन सभी परिस्थितियों से उबारने में सक्षम हो और फिर से शून्य से शुरुआत करे.
डालमिया की नियुक्ति के शुरुआती दौर में लोगों को बहुत सारी उम्मीदें थी. पूर्व खिलाड़ी और राष्ट्रीय स्तर के चयनकर्ता अशोक मल्होत्रा ‘तहलका’ से बात करते हुए कहते हैं, ‘डालमिया एक अनुभवी प्रशासक थे, खिलाड़ी उनसे प्यार करते थे. उनका कार्यकाल भारतीय क्रिकेट के लिए काफी अच्छा होता.’