Author: दिनेश कुमार

  • रेत के बहाने जीवन की कविता

    रेत के बहाने जीवन की कविता

    हाल के वर्षों में आए कविता संग्रहों में श्रीप्रकाश शुक्ल का यह संग्रह इस दृष्टि से विशिष्ट है कि इसमें केवल नदी और रेत को लेकर कविताएं हैं. वैसे तो नदी में पसरे रेत को विषय बनाकर कुछ छिट-पुट कविताएं हिंदी में मिल जाती हैं पर रेत की इतनी बहुविध अर्थ छवियां पहली बार श्रीप्रकाश…

  • उनका नरक, इनका स्वर्ग

    उनका नरक, इनका स्वर्ग

    पिछले दो दशक में देश में ऐसे एनजीओ की बाढ़ आ गई है जो जनहित के नाम पर जनहित के इतर तमाम दूसरे कामों में लिप्त हैं

  • कथा जैसी दिलचस्प

    कथा जैसी दिलचस्प

    क्या कथेतर लेखन भी कहानी या उपन्यास की तरह दिलचस्प और मार्मिक हो सकता है? वरिष्ठ कथाकार राजेंद्र राव के कथेतर लेखन के संग्रह ‘उस रहगुजर की तलाश है’ को पढ़कर लगता है कि ऐसा संभव है. संग्रह में शामिल रिपोर्ताज, संस्मरण और साक्षात्कार खासे दिलचस्प हैं. कोलकाता की यौनकर्मियों के जीवन पर लिखा गया…

  • एक दृष्टिविहीन आयोजन

    एक दृष्टिविहीन आयोजन

    निजी रुचि-अरुचि और राग-द्वेष पर आधारित यह संकलन अच्छे के साथ खराब की मिलावट करके उसे बाजार में बेचने का उपक्रम मात्र है

  • ‘हिंदी साहित्यिक समाज, भय और लालच से संचालित होता है’

    ‘हिंदी साहित्यिक समाज, भय और लालच से संचालित होता है’

    मृदुला गर्ग को हिंदी साहित्य के उन रचनाकारों में गिना जाता है जिन्होंने लेखन के पारंपरिक ढांचे की कभी परवाह नहीं की. मृदुला गर्ग से दिनेश कुमार की बातचीत.

  • ‘मेरा सरोकार स्त्री को लेकर मौज-मस्ती वाला नहीं है’

    ‘मेरा सरोकार स्त्री को लेकर मौज-मस्ती वाला नहीं है’

    अपने लेखन के जरिए ग्रामीण भारत की स्त्रियों को मुख्य धारा के साहित्य में स्थान दिलाने वाली मैत्रेयी पुष्पा से दिनेश कुमार की बातचीत