हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष नामवर सिंह नहीं रहे

हिन्दी आलोचना के शिखर पुरुष नामवर सिंह का मंगलवार मध्य रात्रि दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)  में निधन हो गया। वह ९२ वर्ष के थे और पिछले एक माह से अस्वस्थ चल रहे थे।

साहित्य अकादमी सम्मान से नवाजे जा चुके नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य में आलोचना को एक नया आयाम दिया। ‘छायावाद, ‘इतिहास और आलोचना, ‘कहानी नयी कहानी, ‘कविता के नये प्रतिमान, ‘दूसरी परम्परा की खोज और ‘वाद विवाद संवाद उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। उन्होंने हिंदी की दो पत्रिकाओं ‘जनयुग’ और ‘आलोचना’ का संपादन भी किया।
उनके निधन पर जाने माने संपादक-पत्रकार-लेखक ओम थानवी ने अपने फेसबुक वाल पर लिखा – ”हिंदी में फिर सन्नाटे की ख़बर। नायाब आलोचक, साहित्य में दूसरी परम्परा के अन्वेषी, डॉ नामवर सिंह नहीं रहे। हिंदी साहित्य जगत अंधकार में डूब गया है। उल्लेखनीय विचारक और हिंदी साहित्य के एक अगुआ शख्सियत का निधन। उन्होंने अच्छा जीवन जिया, बड़ा जीवन पाया।”

नामवर सिंह के परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री है। उनकी पत्नी का निधन कई साल पहले हो गया था। प्रसिद्ध लेखक-साहित्यकारों अशोक वाजपेयी, निर्मला जैन, विश्वनाथ त्रिपाठी, काशी नाथ सिंह, ज्ञानरंजन, मैनेजर पांडे, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, असगर वज़ाहत,  नित्यानंद तिवारी और मंगलेश डबराल ने सिंह के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है और हिन्दी साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति बताया है।

नामवर सिंह का जन्म २८ जुलाई, १९२६ को वाराणसी के एक गांव जीयनपुर (वर्तमान में ज़िला चंदौली) में हुआ था। उन्होंने बीएचयू से हिंदी साहित्य में एमए और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने बीएचयू, सागर एवं जोधपुर विश्वविद्यालय और जेएनयू में पढ़ाया। साहित्य अकादमी सम्मान से नवाजे जा चुके नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य में आलोचना को एक नया आयाम दिया।