सुरक्षा की सुरंग: हिमाचल के रोहतांग में बनी अटल सुरंग का है सामरिक महत्त्व, 3 अक्टूबर को प्रधानमंत्री करेंगे उद्घाटन

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने इसका सपना देखा, अटल बिहारी वाजपेयी ने मंज़ूरी दी, सोनिया गाँधी ने आधारशिला रखी और अब जल्दी ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3 अक्टूबर को इसका उद्घाटन करेंगे। वक्त कुछ लम्बा खिंचा; लेकिन लद्दाख के लिए सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण अटल टनल अब हिमाचल के रोहतांग में बनकर तैयार है। चीन के साथ सैन्य तनाव के बीच इस सुरंग का बनकर तैयार होना भारतीय सेना के लिए एक सुखद खबर है। भले यह सुरंग नागरिक इस्तेमाल के लिए भी है, इमरजेंसी में रसद लेह-लद्दाख ले जाने के लिए भारतीय सुरक्षा बलों को अब एक कम दूरी वाला मार्ग मिल गया है। यह इसलिए भी बहुत महत्त्वपूर्ण है कि बर्फबारी में यह रास्ता पहले महीनों बन्द रहता था; लेकिन अब साल भर खुला रहेगा। ज़ाहिर है कि आम जनता के लिए भी ज़िन्दगी यहाँ सुगम होने जा रही है।

पिछले साल के आखिर में प्रधानमंत्री मोदी ने अटल बिहारी वाजपेयी की 95वीं जयंती के अवसर पर घोषणा की थी कि इस सुरंग का नाम अटल सुरंग होगा। करीब 9.02 किलोमीटर लम्बी 3000 मीटर की ऊँचाई पर बनी  यह सुरंग दुनिया की सबसे लम्बी सुरंग है। प्रधानमंत्री मोदी 3 अक्टूबर को इसे राष्ट्र को समर्पित करने वाले हैं। सुरंग पूरी होने पर सभी मौसम में लाहुल स्पीति घाटी के सुदूर इलाकों में सम्पर्क सुगम हो जाएगा। यही नहीं इस सुरंग के शुरू होने से मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम हो जाएगी। यह आम जनता ही नहीं सेना के लिए भी बहुत लाभकारी होगी।

रोहतांग दर्रे के नीचे रणनीतिक रूप से अहम एक सुरंग बनाने की कल्पना इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्री रहते ही कर ली गयी थी। इसे मंज़ूरी मिली सन् 2000 में, जब अटल बिहारी देश के प्रधानमंत्री थे। वाजपेयी ने सुंरग के दक्षिणी हिस्‍से को जोडऩे वाली सड़क की आधारशिला 26 मई, 2002 को रखी। इसके बाद जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार बनी तो 2010 में सुरंग की भी आधारशिला रख दी गयी। यह आधारशिला यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने रखी, जिसके बाद सुरंग का निर्माण शुरू हो गया। तब इस सुरंग की अनुमानित लागत राशि 1500 करोड़ रुपये थी और इसे 2015 तक तैयार करने का लक्ष्य रखा गया था। हालाँकि बीच में कई तरह की अड़चनें आने से इसका लक्ष्य आगे खिसक गया। अड़चन का सबसे कारण था, सेरी नाले में रिसाव होना। इससे चलते इंजीनियरों ने यह लक्ष्य पाँच साल आगे बढ़ा दिया। बनते-बनते इसकी लागत भी बढ़कर करीब 3500 करोड़ रुपये पहुँच गयी।

यही नहीं, शुरू में इसकी लम्बाई भी 8.8 किलोमीटर थी, जो अब 9.02 किलोमीटर हो गयी है।  इसका कारण सुरंग के दोनों छोर पर एवलांच विरोधी सुरंग बनना है। इसके कार सुरंग की लम्बाई 220 मीटर बढ़ गयी है। अर्थात पहले यह 8800 मीटर लम्बी थी, जबकि अब यह 9020 मीटर लम्बी हो गयी है। यह क्षेत्र सड़क और पुल के लिहाज़ से सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के तहत है। हाल में बीआरओ के बड़े अधिकारी सुरंग के निर्माण के तमाम पहलुओं का जायज़ा ले चुके हैं। बीआरओ के डीजी लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह ने फोन पर ‘तहलका’ से बातचीत में कहा कि केंद्र सरकार की मदद से बीआरओ ने समय-समय पर ज़रूरी सामान उपलब्‍ध करवाया है। सभी के सहयोग से कार्य समय पर पूरा हुआ है। देश के लिए यह सुरंग एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट है। निश्चित ही अटल सुरंग के निर्माण के रूप में बीआरओ के नाम एक ओर बड़ी उपलव्धि जुडऩे जा रही है। बीआरओ के खाते में इतनी उपलब्धियाँ हैं, जिनकी गिनती करना भी मुश्किल है। बीआरओ के रोहतांग सुरंग परियोजना के चीफ इंजीनियर के.पी. पुरशोथमन ने बताया कि बीआरओ ने अधिकतर कार्य पूरा करने में सफलता पायी है। सुरंग के नॉर्थ पोर्टल सहित दारचा में भव्य पुल बनकर तैयार है।

पूर्वी पीर पंजाल की पर्वत शृंखला में बनी 9.02 किलोमीटर लम्बी यह सुरंग लेह-मनाली राजमार्ग पर है। यह करीब 10.5 मीटर चौड़ी और 5.52 मीटर ऊँची है। सीमा सड़क संगठन ने साल 2009 में शापूरजी पोलोनजी समूह की कम्पनी एफकॉन और ऑस्ट्रिया की कम्पनी स्टारबैग के संयुक्त उपक्रम को इस टनल के निर्माण का ठेका दिया। सुरंग के निर्माण किस कदर बड़े पैमाने पर था, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एफकॉन ने इस सुरंग के निर्माण में करीब 150 इंजीनियरों और एक हज़ार श्रमिकों को लगाया। एफकॉन के हाइड्रो एंड अंडरग्राउंड बिजनेस निदेशक सतीश परेटकर ने कहा कि यह सुरंग घोड़े के नाल के आकार की है और इसने भारत के इंजीनियरिंग इतिहास में कई कीर्तिमान रचे हैं। इसमें बहुत-से ऐसे काम हैं, जो सुरंग के लिहाज़ से देश में पहली बार हुए हैं।

बता दें अटल सुरंग में डबल लेन सड़क होगी। समुद्र तल से करीब 10 हज़ार फीट की ऊँचाई पर बनी दुनिया की सबसे लम्बी वाहन योग्य सुरंग है। यह देश की पहली ऐसी सुरंग होगी, जिसमें मुख्य सुरंग के भीतर ही बचाव सुरंग भी बनायी गयी है। इससे इसके महत्त्व को समझा जा सकता है। परेटकर के मुताबिक, यह पहली ऐसी सुरंग है, जिसमें रोवा फ्लायर टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया है। उन्होंने ‘तहलका’ से बातचीत में कहा- ‘यह तकनीक विपरीत स्थिति में इंजीनियरों को काम करने में सक्षम बनाती है।’

यह सुरंग 2015 में ही बनकर तैयार हो जाती, यदि सेरी नाला ने समस्याएँ खड़ी नहीं की होतीं। सुरंग निर्माण में देरी की मुख्य वजह 410 मीटर लम्बा सेरी नाला है। यह नाला हर सेकेंड 125 लीटर से अधिक पानी निकालता है। सेरी नाला क्षेत्र में ही सुरंग का दक्षिणी द्वार पड़ता है। कमज़ोर भू-वैज्ञानिक परिस्थितियों के चलते इंजीनियरों को इस क्षेत्र में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। इसकी वजह से बार-बार सुरंग का दरवाज़ा बन्द हो जाता था।

लगातार बैठकें

कुछ समय पहले बीआरओ के डीजी लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह ने अटल रोहतांग सुरंग के कार्य का जायज़ा लिया था। उन्होंने लगातार सोलंगनाला में बीआरओ रोहतांग सुरंग परियोजना के मुख्यालय में अधिकारियों के साथ बैठकें की हैं। डीजी ने दक्षिण और उत्तर छोर का दौरा किया और कार्य में जुटी स्ट्रॉबेग एफकॉन और समेक कम्पनी के अधिकारियों से भी चर्चा की है। उद्घाटन से पहले वहाँ पूरी तैयारियाँ की गयी हैं। बीआरओ रोहतांग सुरंग परियोजना के चीफ इंजीनियर के.पी. पुरशोथमन डीजी को सुरंग के निर्माण कार्य की लगातार जानकारी देते रहे हैं। बीआरओ दीपक परियोजना के चीफ इंजीनियर एमएस बाघी, कर्नल शशि चौहान, कर्नल उमा शंकर, कर्नल प्रेम जीत, स्ट्रॅाबेग, एफकॉन के प्रोजैक्ट मैनेजर सुनील त्यागी और कम्पनी अधिकारी राजेश अरोड़ा लगातार बैठकों में हिस्सा लेते रहे हैं। उनका कहना है कि सुरंग पूरी तरह राष्ट्र को सौंपे जाने के लिए तैयार है।

सुरंग का सफर

रोहतांग टनल परियोजना पर पहली बार साल 1983 में चर्चा की गयी थी। मई, 1990 में रोहतांग पास पर सुरंग के लिए एक स्टडी की गयी। परियोजना को तकनीकी मंज़ूरी सन् 2003 में मिली, जब वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। स्टडी के आधार पर परियोजना के लिए भू-वैज्ञानिक रिपोर्ट सन् 2004 में प्रस्तुत की गयी। यूपीए की सरकार में सन् 2005 में सुरक्षा पर कैबिनेट कमेटी ने इसे मंज़ूरी प्रदान कर दी। डिजाइन से जुड़ी रिपोर्ट को दिसंबर, 2006 में प्रस्तुत किया गया।  जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। सन् 2007 में सुरंग निर्माण के लिए टेंडर जारी किये गये, जबकि सन् 2010 में यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने रोहतांग सुरंग प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया, जिसके बाद उसका निर्माण कार्य शुरू हो गया। करीब 10 हज़ार फुट की ऊँचाई और किसी हाईवे पर बनी यह एकमात्र सबसे लम्बी सुरंग है। इस सुरंग का सामरिक महत्त्व इसे और महत्त्वपूर्ण बना देता है। रक्षा विषेशज्ञों के मुताबिक, सुरंग के निर्माण से भारत को रणनीतिक तौर पर बढ़त मिलेगी। हिमाचल प्रदेश के लिहाज़ से भी यह सुरंग काफी अहम है। हिमाचल और लद्दाख से साल भर अब सड़क सम्पर्क बना रह सकेगा, जो सबसे ज़्यादा सेना के काम आयेगा। इस सुरंग में 15 अक्‍टूबर, 2017 को दोनों छोर तक सड़क निर्माण पूरा कर लिया गया था। वैसे बहुत काम लोगों को जानकारी होगी कि रोहतांग में सुरंग बनाने का सबसे पहले विचार 160 साल पहले आया था। सुरंग का डिजाइन तैयार करने वाली ऑस्ट्रेलियाई कम्पनी स्नोई माउंटेन इंजीनियरिंग ने अपनी वेबसाइट में दावा किया है कि रोहतांग दर्रे पर सुरंग बनाने का पहला विचार 1860 में मोरावियन मिशन ने रखा था। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में रोहतांग दर्रे पर रोप-वे बनाने का प्रस्ताव आया था। हालाँकि मनाली-लेह के बीच साल भर कनेक्टिविटी वाली सड़क निर्माण की परियोजना इंदिरा गाँधी की सरकार के समय बनी।

लाहुल के लोग खुश

सामरिक दृष्टि से अहम रहने वाली रोहतांग सुरंग कबाईली ज़िले लाहुल स्पीति के शून्य से नीचे के तापमान में रहने वाले हज़ारों लोगों के लिए एक नयी सौगात लेकर आयेगी। इस ज़िले में अब साल भर बिजली की समस्या नहीं आयेगी। भारी बर्फबारी में लाहुल क्षेत्र में हमेशा कुछ महीने कमोवेश ब्लैकआउट जैसी स्थिति बन जाती है। अब इन लोगों को सुरंग के भीतर से बिजली की लाइन पहुँचायी जाएगी। साल के आखिर तक यह काम पूरा हो जाएगा। सुरंग के भीतर बिजली लाईन बिछाने का ज़िम्मा ग्रेफ को सौंपा गया है। इसके पूरा बनने से इलाके में बिजली की सप्लाई लाइन की लम्बाई 15 किलोमीटर कम हो जाएगी।

हिमाचल के बिजली विभाग के शिमला में एक वरिष्ठ अधिकारी ने ‘तहलका’ को बताया कि सुरंग के भीतर 33 के.वी. की बिजली लाइन बिछायी जाने की योजना है। फिलहाल लाहुल के लिए रोहतांग दर्रे से होते हुए कोर-कसर और सिस्सू तक बिजली की लाइन बिछायी गयी है, जिससे लाहुल घाटी में बिजली पहुँचायी जाती है। लेकिन भारी बर्फबारी और ग्लेशियर गिरने के कारण बिजली लाइन बार-बार क्षतिग्रस्त होती है, जिससे लाहुल के दुर्गम इलाकों को बिजली सप्लाई ठप पड़ जाती है। अधिकारी के मुताबिक, बिजली लाइन सुरंग के मुहाने तक पोल के ज़रिये, जबकि आगे  पाइप के ज़रिये सुरंग के भीतर से गुज़रेगी। ज़ाहिर है इससे तार को कोई नुकसान पहुँचाने का खतरा भी खत्म हो जाएगा। अधिकारी के मुताबिक, बहुत ज़्यादा सम्भावना है कि आने वाली सर्दियों में लाहुल की जनता को बिजली की समस्या से स्थायी छुटकारा मिल जाएगा।

भविष्य की योजनाएँ

रोहतांग के बाद आगे की योजनाओं का खाका भी खींच लिया गया है। रोहतांग के बाद बारालाचा दर्रा के नीचे 11.25, ला चुगला में 14.77 और तंगलंगला में 7.32 किलोमीटर लम्बी सुरंग बनाने की तैयारी शुरू कर दी गयी है। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, बीआरओ ने फिजिबिलिटी रिपोर्ट पर काम करना शुरू कर दिया है। बता दें कि रोहतांग सुरंग से जहाँ लेह की 46 किलोमीटर की दूरी कम होगी, वहीं नयी सुरंगों सेना और आम जनता को और ज़्यादा लाभ देने वाली साबित होंगी। इनमें से बारालाचा से 19 किलोमीटर, लाचुंगला से 31और तंगलंगला से 24 किलोमीटर दूरी कम होगी। अधिकारियों ने इस संवाददाता को बताया कि जब यह सभी सुरंगे बनकर तैयार हो जाएँगी तब मनाली-लेह मार्ग की दूरी करीब 120 किलोमीटर कम हो जाएगी। निश्चित ही इस मुश्किल इलाके में यह बड़ी उपलब्धि होगी। वर्तमान में मनाली से लेह पहुँचने के लिए 14 घंटे का समय लगता है। हालाँकि रोहतांग टनल दो घंटे का सफर कम कर देगी।

इन सभी तीन प्रतावित सुरंगों के बन जाने से लेह का सफर 10 घंटे का ही रह जाएगा। सड़क के ठीक नीचे आपातकालीन सुरंग का भी निर्माण किया है। अटल सुरंग में 500 मीटर की दूरी पर आपातकालीन द्वार स्थापित किये जा रहे हैं। अत्याधुनिक तकनीक से बन रही इस सुरंग वेंटीलेशन डक्ट लगाये गये हैं। दुर्घटना होने की सूरत में यह वेंटीलेशन डक्ट दूसरे मुसाफिरों का सफर मुश्किल में नहीं पडऩे देंगे। सीसीटीवी कैमरे सुरक्षा की दृष्टि से हर गतिविधि पर नज़र रखेंगे।

अपनी तरह की अनोखी सुरंग

यह सुरंग कई मायनों में अनोखी है। इसमें प्रत्येक 150 मीटर की दूरी पर टेलीफोन लगे हैं। प्रत्येक 60 मीटर की दूरी पर अग्निरोधी यंत्र हैं जबकि हर 250 मीटर की दूरी पर ऑटोमैटिक इंसिडेंट डिटेक्टिव सिस्टम के साथ सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। हर एक किलोमीटर के बाद हवा की गुणवत्ता बताने वाले मॉनिटर लगाये हैं तो हर 500 मीटर पर आपातकालीन निकास द्वार हैं। प्रत्येक 2.2 किलोमीटर पर गुफानुमा मोड़ हैं, ताकि बीच में ही आपको वापस मुडऩा हो तो ऐसा कर सकते हैं। इसके अलावा मनाली की तरफ से सुरंग तक पहुँचने के लिए स्नो गैलरी बनी है। सुरंग शुरू होने से पूरा साल मनाली को कनेक्टिविटी मिलती रहेगी। सुरंग के भीतर इमरजेंसी एग्जिट का निर्माण भी किया गया है। सुरंग के भीतर अधिकतम 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार हो सकती है। इसमें से हर रोज़ करीब 1,500 ट्रक और 3,000 कारें गुज़र सकेंगे।