सुप्रीम कोर्ट ने खोली निर्वाचन आयोग की आंखें

आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने भारत निर्वाचन आयोग पर जब अपनी कार्रवाई का डर पैदा किया तो आयोग की आंखें कुछ खुलीं। आयोग तो यही दुहाई देता रहा हक उसके पास अधिकार नहीं हैं।  वह लाचार है। जब एक वरिष्ठ वकील अनंत हेगड़े ने कहा कि आयोग संविधान की धार 324 के तहत चुनावी अनियमितताओं पर कार्रवाई कर सकता है।

आम या राज्य चुनावों की घोषणा के साथ ही ‘माडल कोड ऑफ कंडक्ट’(आदर्श चुनाव संहिता) अमल में आ जाती है। इसकी अनदेखी इसलिए नहीं की जानी चाहिए क्योंकि पूरी चुनाव प्रक्रिया ठीक से बिना किसी हिंसा के अमल में आ सके और नई सरकार अपना पद संभाल सके।

जिन चार चुनाव प्रचारकों योगी आदित्यनाथ, मनेका गांधी, आज़म खान और मायावती पर भारत के निर्वाचन आयोग ने कार्रवाई की है उसे गलत नहीं कहा जा सकता। इनमें योगी और मेनका  तो एक धर्म विशेष के खिलाफ हैं। मेनका तो खुद मंत्री हैं वे तो संविधान की भी अनदेखी कर रही हैं जहां समानता की बात की गई है। जबकि आज़म खान ने अमर्यादित तरीके से बात की। मायावती को किसी धर्म विशेष के लोगों से किसी और दल को वोट न देने की बात नहीं कहनी थी।

भारत के निर्वाचन आयोग की आंखें अब कुछ खुली हैं। यह लोकतंत्र की खातिर बड़ी बात है। केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने (14 अप्रैल को) आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के कहने पर उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को 72 घंटे और सभा चुनाव में चुनाव प्रचार करने से रोक दिया। इन पर चुनाव में आदर्श चुनाव संहिता (माडल कोड ऑफ कंडक्ट) का पालन न करने का आरोप था। इनके अलावा समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आज़म खान को भी प्रचार से 72 घंटे दूर रहने और केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी को भी चुनाव प्रचार से दूर रहने को कहा। निर्वाचन आयोग के आदेश का इन सबने अपने-अपने तरीके से पालन किया। निर्वाचन आयोग की इस कार्रवाई को आम मतदाता ने पसंद किया।

चुनाव आयोग की कमेटी ने मायावती को उत्तरप्रदेश में देवबंद में मुसलमानों से एक खास पार्टी को वोट न देने की अपील करने का दोषी माना। इसी तरह भाजपा के वरिष्ठ नेता और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को मेरठ में ‘अली’ और ‘बजरंग बली’ टिप्पणी करने के लिए दोषी माना गया। उन्होंने इस्लाम में एक सम्माननीय व्यक्तित्च अली से बजंरग बली की तुलना की थी।

योगी आदित्यनाथ की इस टिप्पणी पर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा था,’अली भी हमारे हैं, जैसे बजरंग बली। हमें दोनों की ज़रूरत है । खासकर बजरंग बली की इसलिए क्योंकि वे दलित  समुदाया के थे। खुद योगी यह कहते भी रहे हैं कि बजरंग बली वनवासी और दलित थे।

समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता आज़म खान नेे रामपुर निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव प्रचार के दौरान चुनावी रैली में विपक्षी उम्मीदवार जयप्रदा पर एक भद्दी और अरूचिकर टिप्पणी कर दी थी।  हालांकि आज़म खान ने कहा कि उनकी टिप्पणी जयप्रदा के लिए नहीं थी। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ने भी इस मुद्दे पर तुरंत संज्ञान लिया। केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी सपा के सुप्रीमो को एक संदेश ट्वीट किया।

 केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने सुल्तानपुर में चुनाव प्रचार (11अप्रैल को) करते हुए कहा कि मुसलमान यदि मुझे वोट नहीं भी देंगे तो भी मैं जीत जाउंगी। अगर मेरी जीत मुसलमानों के बिना होती है और फिर मुसलमान आता है काम के लिए तो मैं (फिर) सोचती हूं रहने दो।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा था,’मुस्लिम समाज वोट बांटना नहीं। आप बीएसपी, एसपी, रालोद के ही उम्मीदवारों को वोट देना। निर्वाचन आयोग के फरमान पर उन्होंने देर रात लखनऊ में कहा चुनाव आयोग प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष उन बयानों की अनदेखी लगातार करता रहा। अपने भाषणों में देशभक्ति और सेना की वीरता की तारीफ़ चुनावी वोट बटोरने के लिए करते रहे हैं। उन्हें कभी कारण बताओ तक नहीं भेजा। आयोग ने अलग लेकिन एक से पत्रों में योगी कहा है कि चारों नेताओं ने चुनाव प्रचार दौरान आदर्श चुनाव संहिता का उलल्घन किया।  इससे दोनों धार्मिक समुदायों में विरोध और ज्य़ादा बढ़ सकता है।

मायावती और योगी आदित्यनाथ को ऐसे बयान देने से खुद को रोकना था क्योंकि इससे चुनाव में ध्रुवीकरण का अंदेशा कहीं ज्य़ादा हुआ। इसका असर एक ही निर्वाचन क्षेत्र में नहीं बल्कि देश के दूसरे हिस्सों पर भी पड़ेगा क्योंकि आज बड़ी तेज़ी से खबर पहुंच जाती है।

चुनाव आयोग ने कहा कि दोनों ही नेताओं ने धार्मिक आधार पर वोटों की अपील की है जिसके कारण आदर्श चुनाव संहिता का हनन हुआ है। मायावती को 16 अप्रैल को आगरा और पास ही फतेहपुर सीकरी में बसपा-सपा-सलाद की संयुक्त रैली में प्रचार करना था। यहां पर 18 अप्रैल को दूसरे चरण का चुनाव हो रहा है। यहां उन्होंने अपने भतीजे को भेजा।

योगी आदित्यनाथ को लखनऊ में एक आयोजन में हिस्सा लेना। जहां देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह को 16 अप्रैल को अपना नामांकन दाखिल करना था। और इनके रोड़ शो में भाग लेना था। वे सुबह ही हनुमान मंदिर गए। आयोग ने नहीं रोका। बाकी काम भी किए।

दरअसल सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग पर नाराज़गी जताई थी कि वह ऐेसे नेताओं पर कार्रवाई क्यों नहीं करता जो प्रचार के दौरान अपने भाषणों में घृणा के बीज बोते हुए निकल जाते हैं। सुप्रीमकोर्ट ने चुनाव आयोग की गठित समितियों (पैनेल) की ताकत के बारे में भी जानना चाहा। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित बेंच पर जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना ने जानना चाहा कि चुनावी पैनेल ने क्या कुछ किया। चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि उनके पास ज्य़ादा कानूनी ताकत इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है। वे चुनाव प्रचार के दौरान घृणा फैलाने वाले भाषणों पर सिर्फ नोटिस दे सकते हैं।

बेंच ने सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग को वकील को धमकाया कि यदि वे ठीक जवाब नहीं देंगे तो मुख्य चुनाव आयुक्त को भी आधे घंटे में अदालत बुलवा सकती हैं। बेंच ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वे नोटिस देें। सलाह दे सकते हैं और आखिर में निर्देश न मानने वाले राजनेता माडेल कोड ऑफ कंडक्ट ने मानने और जाति और धर्म पर घृणा से भरपूर भाषण चुनाव प्रचार करने वाले के खिलाफ पुलिस में एफआईआर भी दर्ज कर सकते हैं।

चुनाव आयोग ने कहा था कि उनके पास कानूनी अधिकार नहीं है, तो पहले नोटिस जारी करें, फिर उन्हेें सलाह दें और फिर उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराएं। चुनाव प्रचार में बेंच ने यह भी कहा कि चुनावी पैनेल को कानूनी ताकत दिलाने पर वे भी विचार करेंगे।

उन्होंने कहा हम खुद इस पूरे मामले का जायजा लेंगे। हम एक प्रतिनिधि भेंजेगे जिसे पूरी जानकारी होगी। वह सुबह साढ़े दस बजे से निगरानी का काम करेगा।

बेंच उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जो सांप्रदायिक भाषणों और धार्मिक आधार पर वोट मांग रहे थे। उन्होंने चुनाव आयोग के वकील अमित शर्मा से कहा, यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप बताएं कि आप क्या कर रहे हैं।

शर्मा ने इस पर कहा कि हम दोषी नेताओं को नोटिस दे रहे हैं। उन्होंने कुछ उदाहरण भी बताए। यह जताने के लिए कि चुनाव आयोग सतर्क है। सुप्रीम कोर्ट ने योगी आदित्यनाथ और मायावती का नाम आने पर आयोग के वकील से कार्रवाई का ब्यौरा पूछा। मायावती को 12 अप्रैल तक जवाब देना था। लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि आप अब क्या करेंगे। क्या हम मुख्य चुनाव आयुक्त को यहां बुलवा लें। क्या यह चुनाव आयोग के नोटिस की अनदेखी नहीं है? आप क्या करने को हैं। चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि यदि और भी शिकायतें हुई तो नोटिस जारी होगी और शिकायत दर्ज करेंगे। हमारे पास किसी उम्मीदवार को चुनाव में भाग लेने से रोकने का अधिकार नहीं है। वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े से सुप्रीम कोर्ट ने जब पूछा तो उन्होंने कहा कि आयोग संविधान धारा 324 के तहत चाहे तो समुचित कार्रवाई करने में साक्षम है।

सुप्रीम कोर्ट में एक अनिवासी भारतीय हरप्रीम मनसुखनी ने जनहित याचिका दायर की थी। हरप्रीत यूएई में योग प्रशिक्षक हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपनी जनहित याचिका से यह निर्देश मांगा था कि चुनाव प्रचार के दौरान जाति, धर्म के आधार पर उम्मीदवार जनता में चुनाव प्रचार करते हैं तो उनके खिलाफ भारतीय आयोग समुचित कार्रवाई क्येां नहीं करता।