सीवरेज की सफाई में होने वाली मौंतों को रोकने की पहल

तकरीबन दो साल से माया कौर (62साल) अपने बेटे इंदरजीत का इंतज़ार कर रही है। उनका बेटा इंदरजीत घिटरौनी (लाज़पतनगर नई दिल्ली) में जुलाई 2017 में एक सीवर की सफाई में घुसा लेकिन वह कभी बाहर नहीं निकल पाया। वह उन चार लोगों में एक था जो पहले इस सीवर की सफाई में मारे गए। इस परिवार में जो शोक जताने आते हैं, वे दिलासा देते हंै, चिंता मत करों एक दिन इंदरजीत आ जाएगा। दिल्ली सरकार ज़रूर कुछ करेगी। अब उसे सीवेज सफाई की एक आधुनिक मशीन, उसे चलाना, रखने और साफ-सफाई का बंदोबस्त दिल्ली सरकार कर रही है।

दिल्ली जल बोर्ड ने इस मशीन के लिए ठेकेदार भी चुन लिए हैं। पहली आठ मशाीनें उन परिवारों में जाएगी जिनके सदस्यों की मौत सीवेज सफाई के दौरान हुई। यह दावा दिल्ली जलबोर्ड का है कि इन मशीनों पर काम करते हुए प्रति परिवार हर महीने रुपए 35 हजार मात्र की आमदनी होगी। इन मशीनों की टूट-फूट, मरम्मत आदि एक अलग कंपनी करेगी जिसे दिल्ली जल बोर्ड ने ठेका दिया है। दलित चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री (डीआईसीसीआई)ने मशीन खरीदने, उसकी देखरेख और भुगतान संबंधी जिम्मेदारी ली है। इसके कार्यकारी अध्यक्ष आरके नारा ने कहा कि इन मशीनों को चलाने के लिए 250 ड्राइवर और पांच सौ सहायक लोगों को भी न्यूनतम वेतनमान पर रखा गया है।

अब मशाीनों से होगी बदबूदार सीवेज की सफाई। यह पहल की है दिल्ली की आप सरकार ने। विदेश से तकरीबन दो सौ मशीनें मंगाई गई हैं ं जो तंग गलियों में भी जाकर सीवर की सफाई कर सकेंगीं और उन दिहाड़ीदार कर्मचारियों को अब कुछ राहत मिलेगी जो ऐसे बदबूदार मौत के कुएं में दम घुटने से मौत के शिकार हो जाते थे। और उनके बच्चे और परिवार लाचारी झेलते थे।

सीवेज की सफाई के काम में नौजवानों को लगाने वाले ठेकेदार भी काम के दौरान हुई ऐसी मौतों की कोई जिम्मेदारी नहीं लेते। देश के विभिन्न महानगरों और कस्बों में न जाने कितने सफाई कर्मी सफाई का काम करते हुए मरते हैं। किसी भी सरकार के पास उनका आंकड़ा नहीं होता। लेकिन वे मौतें उस देश के नागरिकों की हैं जो देश में स्वच्छता अभियान में जुड़े रहे। ये मौतें उन परिवारों के लिए भारी हैं। सफाई का यह काम विभिन्न राज्य सरकारें चाहें तो मशीनें खरीदकर उनको समुचित संचालन की व्यवस्था कर, प्रशिक्षण दिलाकर सफाई कर्मियों की मौत रोक सकती हैं। लेकिन अंतरिक्ष में धावा बोलने का दावा करने वाले देश के महान नेताओं में इस छोटे सी समस्या को हल करने की न तो नीयत है और न इरादा।

तकरीबन एक महीने पहले इन मौतों को थामने का संकल्प लिया दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने। सीवर क्लीनिंग मशीन मंगाने की फाइल पर उन्होंने दस्तखत किए। अभी इनमें से आठ मशीनें ही आई हैं। उन सफाई मजदूरों के परिवारों को ये मशीनें दी जानी हैं जिनके परिवार के लोगों की सफाई करते हुए मौत हुई।

अमूमन देश के सभी शहरों, जि़लों में जनता सीवेज की सफाई में सरकार से तकनालॉजी से सहयोग की मांग करती रहती हैं, लेकिन यह मानवीय मांग की अनसुनी होती रही है। अब उन्हें दिल्ली सरकार के इस नए कदम पर ज़रूर ध्यान देना चाहिए। यदि सीवेज साफ करने वाली इन मशीनों का ठीक संचालन, उचित देखभाल और समय≤ पर उचित मरम्मत होती रही तो दिल्ली, गाजियाबाद , गुडगांव , मेरठ आदि नगरों में सीवेज साफ करने वालों की विषैली गैस और गंदगी में दम घुटने से मौतों होने की तादाद में ज़रूर कमी आ जाएगी।

दिल्ली की आप सरकार ने विदेश से ऐसी दौ सौ मशाीनें खरीद कर इनकी तैनाती से उन अमानवीय मौतों को थामने का बीड़ा उठाया है। मशीनों की खासियत है कि राजधानी में ये झुग्गी-झोपडियों, शहरी होने में जुड़े गांवों तक में सीवेज की अच्छी साफ-सफाई कर सकेंगी। हर मशीन में स्प्रेवाटर और गंदगी को इक_ा करने का टैंक है। सफाई के दौरान मशीन गाद को सड़क पर फैलाने की बजाए साथ ले जाएगी। समुचित जगह उसका निस्तारण किया जाएगा। सीवेज साफ करने वालों का इस मशीन को चलाने, इसे साफ करने और उसमें थोड़ी बहुत टूट-फूट को दुरस्त करने का प्रशिक्षण भी दिल्ली जल बोर्ड दिलाने को है।

सीवेज सफाई के काम में कुल कितने लोग लगे हैं और कितने काम के दौरान मरे इसकी जानकारी दिल्ली के श्रम विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को नहीं हैं। लेकिन पिछले कुछ साल में अखबारों में छपी खबरों के आधार पर ज़रूर कुछ नाम-पते छानबीन करके निकाले गए हैं।

अपने देश में प्रोव्हीशन ऑफ मैनुअल स्कैवेंचर्स एक्ट अमल में हैं। केंद्र और राज्य सरकारों को इस पर कड़ाई से अमल करना चाहिए और प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान में सहयोग देना चाहिए। सरकारों और निजी आवसीय सोसाइटी को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि हाथों से सफाई कानूनन निषिद्ध है और रोजग़ार के इच्छुकों को वे प्रशिक्षित करके मशीनों के जरिए साफ-सफाई अभियान तेज करें।