सीमा पर सुरंगों के काम में आयी तेज़ी

लद्दाख सीमा पर तनाव से रणनीतिक महत्त्व की ज़ोजिला और जेड-मोड़ सुरंगों के निर्माण भारत लाया तेज़ी

लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ चीनी घुसपैठ से चिन्तित भारत कश्मीर घाटी और लद्दाख क्षेत्र के बीच साल भर की कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए 6.5 किलोमीटर लम्बी जेड-मोड़ सुरंग के निर्माण में तेज़ी ला रहा है। सभी महत्त्वपूर्ण रणनीतिक परियोजनाओं को पूरा करने की समय सीमा जून, 2021 तक बढ़ा दी गयी है।

सुरंग के कार्यों की स्थिति के बारे में जानकारी जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में राष्ट्रीय राजमार्ग अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) की 22 जुलाई को हुई एक बैठक में साझा की गयी थी। इसके साथ ही करीब 13 किलोमीटर की ज़ोजिला सुरंग को पूरा करने के लिए भी सरकार काम कर रही है।

जेड-मोड़ सुरंग परियोजना में 6.5 किलोमीटर लम्बी सुरंग, 6 किलोमीटर की सम्पर्क सडक़, दो प्रमुख पुल और एक छोटा पुल शामिल हैं। इस परियोजना की लागत 2,379 करोड़ रुपये है। परियोजना में एकीकृत पैकेज के रूप 14.15 किलोमीटर लम्बी सुरंग, जेड-मोड़ और ज़ोजिला सुरंग के बीच में 18 किलोमीटर की सम्पर्क सडक़ के अलावा कैरिज-वे, दो स्नो गैलरीज, चार प्रमुख पुल और 18 हिमस्खलन-सुरक्षा बाँध शामिल हैं। करीब 4,430 करोड़ रुपये की लागत वाली इस पूरी परियोजना के जून, 2026 तक चालू होने की उम्मीद है। वैसे तो जेड-मोड़ सुरंग पर काम कई साल से चल रहा था, लेकिन यह सितंबर, 2018 में गैर-बैंकिंग वित्त कम्पनी आईएल ऐंड एफएस के टूटने के बाद अचानक बन्द हो गया, जिसने इसे वित्तपोषित किया था। आईएल ऐंड एफएस ने श्रीनगर-सोनमर्ग सुरंग मार्ग के साथ रणनीतिक परियोजना को सबसे कम बोली के माध्यम से जीता था।

हालाँकि जनवरी में एनएचआईडीसीएल ने 2,379 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली जेड-मोड़ सुरंग का काम एपीसीओ अमरनाथजी टनल-वे प्राइवेट लिमिटेड को सौंप दिया गया। एनएचआईडीसीएल और एपीसीओ अमरनाथजी टनल-वे प्राइवेट लिमिटेड के बीच समझौते पर सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की मौज़ूदगी में हस्ताक्षर किये गये। उस समय इस परियोजना को साढ़े तीन साल में पूरा करने का निर्णय किया गया था। लेकिन अब चीन के साथ एलएसी पर तनाव के बाद परियोजना के पूरा होने की समय सीमा जून, 2021 तय कर दी गयी है।

एलएसी पर वर्तमान गतिविधियों को देखते हुए लद्दाख में भारत की पहुँच के लिए बारह मासी सडक़ बहुत महत्त्वपूर्ण हो गयी है। यह क्षेत्र के बदलते भू-रणनीतिक परिदृश्य में प्रतिक्रिया है और स्थिति आने वाले समय में खराब को सकती है; क्योंकि चीन क्षेत्रीय और वैश्विक मंच पर शक्ति परीक्षण की तैयारी कर रहा है।

दिलचस्प बात यह है कि जेड-मोड़ सुरंग की आधारशिला कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने 4 अक्टूबर, 2012 को रखी थी। सुरंग के अभाव में लद्दाख की सडक़ सर्दियों में 10 फीट बर्फ के नीचे दब जाती है। बर्फबारी के कारण इस क्षेत्र को छ: महीने तक देश के बाकी हिस्सों से काट दिया जाता है।

सुरंगों का गहरा रणनीतिक और आर्थिक महत्त्व है। वे अंतत: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों को एक साथ लाएँगी। परियोजनाओं का दो क्षेत्रों के लोगों के लिए भी विशाल आर्थिक प्रभाव होंगे। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह चीन और पाकिस्तान के रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण सीमावर्ती क्षेत्र में सैनिक और सुरक्षा तंत्र को तेज़ी से जुटाने में मदद करेगा।

पिछले कुछ वर्षों में लद्दाख समय-समय पर चीनी घुसपैठ से प्रभावित रहा है। इससे बीजिंग के बढ़ते आक्रामक क्षेत्रीय इरादों का संकेत भी मिलता है; क्योंकि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी विवादित सीमा के भारतीय क्षेत्र में पाँच बिन्दुओं पर प्रवेश करती रही है। यह बिन्दु गलवान घाटी, पैंगोग त्सो, हॉट स्प्रिंग्स, डेपसांग और गोगरा हैं। इसके अलावा लद्दाख पहले ही 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच रणनीतिक कारगिल पहाडिय़ों पर एक लघु युद्ध का गवाह बन चुका है।

रणनीतिक पर्यवेक्षक एलएसी के साथ चीन की बढ़ती गतिविधियों का श्रेय हाल के वर्षों में उसके वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के किनारे अपने क्षेत्र में खड़े किये गये निर्माण को भी देते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इसने चीन को भारत की परिधि और आंतरिक क्षेत्रों में एक रणनीतिक पहुँच प्रदान की है। लेकिन भारत के लिए लद्दाख में अपने सीमावर्ती क्षेत्रों तक पहुँच में कमी एक समस्या रही है। और इन्हीं समस्याओं के हल के लिए एलएसी के साथ और जम्मू-कश्मीर में रणनीतिक बिन्दुओं पर महत्त्वाकांक्षी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की शुरुआत की गयी है।