सीबीआई बनाम सीबीआई रही सही विश्वसनीयता भी जाती रही

सीबीआई बनाम सीबीआई से जो बात बहुत साफ हुई है वह है इसकी विश्वसनीयता जो अब खत्म हो गई है, क्योंकि पहले यह पिंजरे में बंद थी अब यह भ्रष्ट तोते में तब्दील हो गई है।

यह अभूतपूर्व तनाव सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और सीबीआई विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच खड़ा हुआ है। अतत: देर रात हुई क्रांति में सीबीआई के दोनों बड़े अधिकारियों के अधिकार खत्म कर दिए गए। और एजेंसी के अंतरिम निदेशक एम नागेश्वर राव को नियुक्त कर दिया गया। सीबीआई की विश्वसनीयता भंग होने की यह एक अहम वजह है। हालांकि सीबीआई में चल रही समस्या का समाधान अभी नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के लिए 12 नवंबर की तारीख नियत की है।

सीबीआई के निदेशक और विशेष निदेशक के बीच आरोपों और प्रत्यारोपों का जो सिलसिला है वह सरकार के भी खिलाफ जाता है। जिसे खुद सीबीआई निदेशक ले जाते हैं। इस पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सोने में सुहागा साबित भी हुए। उन्होंने इस मुद्दे पर देश भर में प्रदर्शन किया। राहुल को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया जब वे राजधानी में प्रदर्शन कर रहे थे। उनकी मांग थी कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को फिर से बहाल किया जाए जिनसे तमाम प्रशासनिक अधिकार ले लिए गए हंै। और जिन्हें पिछले सप्ताह छुट्टी पर भेज दिया गया। राहुल गांधी को लोधी कालोनी पुलिस स्टेशन में बिठाए रखा गया। बाद में उन्हें रिहा किया गया।

राहुल गांधी ने अपने आरोप दोहराए: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में हर एक संस्था को नष्ट किया है। चाहे वह सीबीआई हो या चुनाव आयोग। कांग्रेस ने सीबीआई के मुख्यालय पर भारी प्रदर्शन किया जहां पहुंचे कांगे्रस के बड़े नेताओं ने प्रधानमंत्री से माफी मांगने की मांग की। कांग्रेस का यह आंदोलन दिल्ली में ही सीमित नहीं रहा बल्कि पूरे देश में सीबीआई के जहां-जहां दफ्तर हैं वहां भी जोरदार प्रदर्शन हुए।

विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे पर कांग्रेस का साथ दिया। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (सीवीसी) निदेशक आलोक वर्मा और उनके साथी विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ चल रही अपनी जांच पड़ताल दो सप्ताह में पूरी कर ले। तीन जजों की इस बेंच की अगुवाई में भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अपनी बैठक में वर्मा की याचिका सुनी जो भारत सरकार के आदेश को चुनौती देती है और इसने पूर्व न्यायाधीश एके पटनायक को सीवीसी की जांच की निगरानी करने को कहा।

 सीजर की पत्नी की तरह

सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई निदेशक के खिलाफ जांच के लिए सीवीसी को सिर्फ दो सप्ताह का समय देने का स्वागत करते हुए केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली नेे कहा कि किसी खास व्यक्ति में सरकार की कोई रुचि नहीं है। यह तो सिर्फ यही चाहती है कि जांच एजेंसी की विश्वसनीयता बनी रही। सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी से कहा है कि वह दो सप्ताह में सीबीआई प्रमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच खत्म कर ले। यह बेहद सकारात्मक फैसला है जेटली ने कहा। उन्होंने कहा कि वर्मा और अस्थाना दोनों ने एक दूसरे पर आरोप लगाए थे। ऐसे में निष्पक्षता के लिहाज से इन आरोपों की जांच दोनों को ही छुट्टी पर भेज कर ही संभव थी। यह इसलिए भी ज़रूरी था क्योंकि यह उचित नहीं कि आप उस संस्थान मे ं रहें भी और संस्थान ही आपके व्यवहार की जांच करे। उनका कहना है कि सीवीसी की सिफारिशों पर ही कार्रवाई हुई है।

सुप्रीम कोर्ट ने तो आज अपनी निष्पक्षता को और भी मजबूती से रखा है। उन्होंने एक समय सीमा बांध दी है। यह एक सकारात्मक प्रयास है। ऊंचे दर्जों की जांच में निष्पक्षता को होना बहुत ज़रूरी है। इसलिए उन्होंने सेवानिवृत न्यायाधीश से यह जांच कराने को कहा हैै।

वित्तमंत्री ने कहा कि सिर्फ एक पड़ताल से ही सच सामने आ सकता है। सच का सामने आना भारत के व्यापक हितों के लिहाज से भी ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि सीबीआई के दो को छोड़कर बाकी सभी अधिकारी इतने ईमानदार हैं जिन पर संदेह नहीं किया जा सकता।

सीबीआई के खिलाफ मामले

सीबीआई में आज इतने महत्वपूर्ण मामले हैं। आईआरसीटीसी घोटाले से मोइन कुरैशी के मामले में घूस लेने, कोयला घोटाले में खुफिया रपट, जांच एजेंसी सीबीआई में नंबर दो बने विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने नंबर एक अधिकारी आलोक वर्मा पर आरोप लगाए है। उनकी जांच अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (सीवीसी) कर रही है।

वर्मा के खिलाफ भी आरोप है कि वे आईआरसीटीसी घोटाले से जुड़े हैं जिसमें आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद उनकी पत्नी राबड़ी देवी और बेटे तेजस्वी यादव शामिल हैं। अस्थाना का आरोप है कि वर्मा ने उनसे आखिरी क्षणों में कहा कि जिन छापों को पटना में लालू के खिलाफ मारना है वे न मारे जाएं। अस्थाना ने बताया सीबीआई ने छापे फिर भी मारे और एक आरोप पत्र भी दायर किया ।

उनका दावा है कि रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी राकेश सक्सेना के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी। जबकि यह मामला आईआरसीटीसी का था। इसके अलावा उन पर बुरे बर्ताव, जांच पड़ताल में दखल देने और भ्रष्टाचार के भी नौ आरोप हंै। सीवीसी को इन सबका परीक्षण दो सप्ताह में कर लेना है।

वर्मा बनाम अस्थाना

सीबीआई निदेशक पद से छुट्टी पर भेजे जाने के पहले वर्मा ने अस्थाना के खिलाफ एक मामला दर्ज किया था कि कथित तौर पर उन्होंने सतीश बाबू को राहत देने के लिए पैसे लिए थे । जिनकी जांच सीबीआई मोइन कुरैशी के मामले में कर रही है। अस्थाना ने बदले की कार्रवाई के रूप में  कैबिनेट सचिव को 24 अगस्त को लिखे अपने पत्र के जरिए वर्मा के खिलाफ आरोप लगाए थे।

अस्थाना की शिकायत 31 अगस्त की सीवीसी को भेज दी गई थी जिसने अस्थाना को जांच के लिए 10 सितंबर को बुलाया भी था। अस्थाना ने सीबीआई निदेशक के खिलाफ अपने आरोप साबित करने के लिए संबंधित दस्तावेज सीवीसी को सौंपे भी थे। सीवीसी ने 11सितंबर को एक नोटिस भेजा जिसमें संबंधित फाइलें और दस्तावेजों की मांग की गई थी।

मुख्य आरोप जो अस्थाना का था वह यह है कि सतीश बाबू ने मोइन कुरैशी मामले से साफ बरी होने के लिए दो करोड़ रुपए वर्मा को दिए थे। उन्होंने दावा किया कि वर्मा ने चार दिन तक फाइल अपने पास रखी और उसे डायरेक्टर ऑफ प्रोसेक्युशन (डीओपी) को 24 सितंबर को दी और तमाम साक्ष्य की मांग की जो रिकार्ड में थे।

 अस्थाना ने यह भी बताया कि उनके अधीन जो टीम थी उसी ने सतीश बाबू के खिलाफ ‘लुक आउट सर्कुलरÓ जारी किया और विेदेश भाग जाने की उसकी कार्रवाई रोकने की पहल की थी। सीबीआई के विशेष निदेशक ने दावा किया कि फाइल वर्मा के पास तीन अक्तूबर को पेश की गई। इसमें डीओपी के उठाए गए सवालों के जवाब भी थे। वह फाइल लौट कर नहीं आई है।

सीवीसी को अपना जवाब देते हुए वर्मा ने अस्थाना के ही खिलाफ आरोप लगाए। उन्होंने अस्थाना पर ईमानदारी का भी मुद्दा उठाया। सीबीआई कहा कि वह आधा दर्जन मामलों में अस्थाना की भूमिका की पड़ताल कर रही है।

सीवीसी ने 23 अक्तूबर को अपने आदेश में कहा कि सीबीआई ने अनुरोध किया कि अस्थाना की शिकायत को इस तरह देखा जाए कि कथित तौर पर दोषी अधिकारी सीबीआई में ही दूसरे विभिन्न पदों पर काम कर रहे अधिकारियों को इस तरह डर दिखा रहे हैं। दस्तावेजों को उपलब्ध कराने के मुद्दे पर सीबीआई ने सीवीसी में अपने निदेशक की ओर से तर्क दिया कि रिकार्ड तो हजारों पन्नों में हैं लेकिन फाइलों की ज़रूरत विभिन्न शाखाओं, मालखानों और अदालतों में पड़ती है। इसलिए इनसे संबंधित तमाम सामग्री कमीशन में पेश करने में कम से कम तीन सप्ताह लग जाएंगे।

दूसरा कथित आरोप जो वर्मा पर था कि उन्होंने खुफिया जानकारियों के मिलने पर भी कोई कार्रवाई नहीं की। अस्थाना का कहना रहा है कि चेतावनी पाने पर भी संदीप और अशोक चतुर्वेदी जिन पर कोयला घोटाले के आरोप हैं, कोई लुकआउट नोटिस जारी नहीं किया।

जांच से संबंधित एक और आरोप है कि सीबीआई एक प्राथमिक जांच पहले करेगी। हरियाणा के नांगली, उभरपुर, टिगरा, उल्हवास आदि गांवों से भूमि अधिग्रहण किया गया। इसके तहत गुडगांव में आवासीय सेक्टर बनने थे। अस्थाना की शिकायत के अनुसार उन्हें जानकारी मिली थी कि तकरीबन छतीस करोड़ का लेनदेन हुआ जिससे जांच रोक दी जाए। लेकिन कोई भी अपराधिक जांचपड़ताल हुई ही नहीं। यह भी पता लगा कि तब के टाउन प्लैनिंग निदेशक और रियल एस्टेट कंपनी के मालिक का संयुक्त निदेेशक एके शर्मा और आलोक वर्मा से अच्छा संपर्क था। अस्थाना ने अपनी शिकायत में यह लिखा।