साइबर अपराधियों का आसान निशाना हैं महिलाएँ

पंजाब में एक निजी यूनिवर्सिटी में हाल में सामने आये एमएमएस मामले ने सरकार और समाज के सामने यह गम्भीर सवाल उठा दिया है कि साइबर अपराधियों के लिए महिलाएँ अभी भी आसान लक्ष्य क्यों हैं? इसके लिए क़ानून आदि को लेकर बता रहे हैं सनी शर्मा :-

साइबर क्राइम आज के समय में एक गम्भीर समस्या बन गया है। हैकिंग, मॉर्फिंग, सेक्सटॉर्शन, निजता का उल्लंघन विभिन्न प्रकार के साइबर अपराध होते हैं। साइबर क्राइम की चपेट में सबसे ज़्यादा महिलाएँ और बच्चे हैं। 29 अगस्त, 2022 को जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार, सन् 2019 के मुक़ाबले सन् 2021 में साइबर अपराध की घटनाओं की संख्या में 18.4 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है; लेकिन महिलाओं के ख़िलाफ़ ऐसे मामलों की संख्या में उल्लेखनीय रूप से 28 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है।

डाटा कहता है कि सन् 2021 में रिपोर्ट की गयी 52,974 घटनाओं में से 10,730 घटनाएँ, जो कुल अपराध का 20.2 फ़ीसदी हैं; महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के मामलों के रूप में दर्ज की गयीं। डाटा से पता चलता है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ साइबर अपराधों में मुख्य रूप से साइबर ब्लैकमेलिंग, धमकी, साइबर पोर्नोग्राफी, अश्लील यौन सामग्री की पोस्टिंग / प्रकाशन, साइबर स्टॉकिंग, बदमाशी, मानहानि, मॉर्फिंग और नक़ली प्रोफाइल बनाने के उदाहरण शामिल हैं।

हालाँकि एनसीआरबी के आँकड़ों के अनुसार, पंजाब महिलाओं के ख़िलाफ़ साइबर अपराध के मामले में शीर्ष राज्यों में शामिल नहीं था। लेकिन पिछले साल नारकोटिक्स ड्रग्स ऐंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में पंजाब फिर से अपराध दर (प्रति लाख जनसंख्या) की सूची में सबसे ऊपर है, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आँकड़ों में कहा गया है। विवरण के अनुसार, पंजाब में 2021 में 32.8 फ़ीसदी अपराध दर (प्रति लाख जनसंख्या) दर्ज की गयी, जो देश में सबसे अधिक थी। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब की अनुमानित जनसंख्या सन् 2021 में 304.04 लाख थी और इस वर्ष के दौरान राज्य में एनडीपीएस अधिनियम के 9,972 मामले दर्ज किये गये थे।

महिलाओं के ख़िलाफ़ साइबर अपराध बेखौफ़ होकर रुक-रुककर होते रहते हैं। सन् 2001 में रितु कोहली का मामला भारत में साइबर स्टॉकिंग का पहला मामला था। पीडि़ता ने एक व्यक्ति के ख़िलाफ़ पुलिस में शिकायत की, जो इंटरनेट पर चैट करने के लिए अपनी पहचान का इस्तेमाल कर रहा था। उसने आगे शिकायत की कि अपराधी उसका पता ऑनलाइन भी बता रहा था और अश्लील भाषा का इस्तेमाल कर रहा था। उसके सम्पर्क विवरण भी लीक हो गये थे, जिसके कारण विषम घंटों में बार-बार कॉल आती थी। नतीजतन आईपी पते के आधार पर पुलिस ने पूरे मामले की जाँच की और आखिरकार अपराधी मनीष कथूरिया को गिरफ़्तार कर लिया।

पुलिस ने रितु कोहली का शील भंग करने के आरोप में भारतीय दण्ड संहिता की धारा-509 के तहत मामला दर्ज किया है। लेकिन भारतीय दण्ड संहिता की धारा-509 केवल एक महिला के अस्मिता पर हमले या अपमान के उद्देश्य से एक शब्द, हावभाव या कार्य को सन्दर्भित करती है और जब वही चीज़ें इंटरनेट पर की जाती हैं, तो उक्त धारा में इसके बारे में कोई उल्लेख नहीं है।

भारत के साइबर क़ानूनों में न तो साइबर स्टॉकिंग के लिए कोई विशेष प्रावधान था और न ही महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई अन्य धारा। अनुभाग में उल्लिखित शर्तों में से कोई भी साइबर स्टॉकिंग के तहत नहीं आता है। इस प्रकार रितु कोहली के मामले ने सरकार को पूर्वोक्त अपराध के सम्बन्ध में और उसी के तहत पीडि़तों की सुरक्षा के सम्बन्ध में क़ानून बनाने की तत्काल आवश्यकता के प्रति सचेत किया।

परिणामस्वरूप सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम-2008 (आईटीएए 2008) में धारा-66(ए) जोड़ी गयी। यह धारा एक अवधि के लिए कारावास का प्रावधान करती है, जिसे तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है। इसके तहत संचार सेवा आदि के माध्यम से आपत्तिजनक सन्देश भेजने के लिए ज़ुर्माना लगाया जा सकता है।

लेकिन क्या विभिन्न अधिनियम महिलाओं को साइबर अपराध से बचाने के लिए पर्याप्त हैं? इस पर अभी भी सवालिया निशान है। अतीत में राजस्थान की एक निजी यूनिवर्सिटी में एक शिक्षिका को उसके अन्तिम वर्ष के छात्रों द्वारा धमकी दी गयी थी कि या तो वह उनके अंक बढ़ाएँ या वे छात्र समूहों में उनके निजी वीडियो प्रसारित करेंगे। शिक्षिका ने पुलिस को सूचना दी। जाँच में सामने आया कि वीडियो स्वयं रिकॉर्ड किये गये थे और उसी यूनिवर्सिटी में अन्तिम वर्ष के छात्र (अपने प्रेमी) को भेजे गये थे। उसने उन्हें अपने दोस्तों के साथ साझा किया, जो शिक्षिका को ब्लैकमेल कर रहे थे।

एक अन्य मामले में एक महिला को व्हाट्स ऐप पर अपनी 13 वर्षीय बेटी की एक निजी तस्वीर मिली, जिसमें एक सन्देश के साथ उसकी इसी तरह की तस्वीरों की माँग की गयी थी। सन्देश भेजने वाले ने लिखा कि अगर उसने मना किया, तो उसकी बेटी की तस्वीर इंटरनेट पर वायरल हो जाएगी। सन्देश एक अंतरराष्ट्रीय वर्चुअल नंबर से आये थे। पुलिस ने नाबालिग़ के प्रेमी के आईपी एड्रेस को ट्रैक किया, जिसने ख़ुलासा किया कि लडक़ी ने ख़ुद उसे ये तस्वीरें माँगने पर भेजी थीं।

एक अन्य मामले में 10वीं कक्षा की लडक़ी और उसके प्रेमी (कॉलेज के प्रथम वर्ष के छात्र) ने सम्भोग करते हुए अपना वीडियो शूट किया। उसके प्रेमी का मानना था कि वह उसे धोखा दे रही है। इसी प्रतिशोध से उसने यह वीडियो लडक़ी के पिता को इस सन्देश के साथ भेजा- ‘आपकी बेटी मेरे प्रति वफ़ादार नहीं है।’

लडक़ी ने उसे आईने के सामने शूट की गयी 100 से अधिक निजी तस्वीरें भेजी थीं, और वह उन्हें फेसबुक पर निजी फोटो फोल्डर में सहेजता रहा। पुलिस ने उसके सोशल मीडिया अकाउंट से सभी तस्वीरें हटा दीं और सुनिश्चित किया कि उसके पास कोई बैकअप नहीं है।

राज्य पुलिस के साइबर सेल पर साइबर अपराध की ऑनलाइन सूचना दी जा सकती है। इन्हें ष्4ड्ढद्गह्म्ष्ह्म्द्बद्वद्ग.द्दश1.द्बठ्ठ पर भी रिपोर्ट किया जा सकता है। आईटी अधिनियम-2000 में कोई विशेष प्रावधान नहीं हैं, जो विशेष रूप से महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध से निपटते हैं; जैसा कि भारतीय दण्ड संहिता, या उस मामले के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता के प्रावधान हैं।

हाल में सरकार ने साइबर अपराधों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए एक रोड मैप तैयार करने के लिए एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया। समूह की सिफ़ारिशों के आधार पर सरकार द्वारा महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ साइबर अपराध (सीसीपीडब्ल्यूसी) योजना को मंज़ूरी दी गयी है। जिन अपराधों को विशेष रूप से महिलाओं के ख़िलाफ़ लक्षित किया जाता है, उन्हें साइबर-स्टॉकिंग, साइबर मानहानि, साइबर-सेक्स, अश्लील सामग्री का प्रसार और किसी के गोपनीयता डोमेन में अतिक्रमण के रूप में गिना जा सकता है; जो आजकल बहुत आम है।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा-67 प्रकाशन, प्रसारण और इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रसारित और प्रकाशित करने वाली किसी भी सामग्री को यौन रूप से स्पष्ट कार्य या आचरण को दण्डनीय बनाती है। इसका मतलब है कि भारत में साइबर पोर्नोग्राफी देखना गैर-क़ानूनी नहीं है। केवल ऐसी सामग्री को डाउनलोड करने, देखने और संग्रहित करने से कोई अपराध नहीं होता है। यह कैसा विरोधाभास है?