शोपीस बनने लगे उज्ज्वला सिलेंडर

गैस सिलेंडर भराने में असमर्थ हो रहे ग्रामीण, गाँवों में ईंधन चूल्हे पर फिर बढ़ रही निर्भरता

जिस समय ग्रामीणों को केंद्र सरकार की तरफ से उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त में गैस सिलेंडर वितरित किये गये, तब गाँवों के अधिकतर घरों में गैस चूल्हे पर खाना बनने लगा था। इससे न सिर्फ कच्चे ईंधन से फैलने वाले धुएँ में कमी देखने को मिली थी। जब नये-नये उज्ज्वला गैस कनेक्शन हुए थे, तब अधिकतर घरों में गैस चूल्हे पर खाना बनने लगा था; लेकिन अब अधिकतर घरों में फिर से कच्चे ईंधन (लकड़ी, कंडे आदि) से चूल्हे पर ही खाना बनता दिखने लगा है। अब हाल यह है कि गाँवों के अधिकतर घरों से सुबह-शाम फिर वही धुआँ उठता है। बल्कि सर्दियों में तो अगर देखें, तो और अधिक धुआँ उठता दिखायी देता है। क्योंकि अनेक लोग सर्दी से बचाव के लिए अलाव भी तापते हैं। हालाँकि खेत में पराली और ऊख की पताई जैसे दूसरे अवशेष जलाने पर पाबंदी है। यदि कोई ऐसा करता है, तो उस पर मोटा ज़ुर्माना लगता है और जेल जाने तक की नौबत आ सकती है। लेकिन गाँव तो गाँव हैं, गाँवों की कच्चे ईंधन पर विकट निर्भरता है। इस बात को सरकारों को भी समझना होगा और ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रदूषण को कम करने के लिए विशेष और स्थायी व्यवस्थाएँ बनानी होंगी।

सवाल यह है कि सरकार की वातावरण को शुद्ध करने की कोई भी योजना आखिर परवान क्यों नहीं चढ़ पाती? अब से करीब तीन दशक पहले भी तत्कालीन सरकार ने प्रदूषण कम करने के लिए घर-घर गोबर-गैस की योजना चलायी थी। शुरू में गाँवों के अनेक घरों में गोबर-गैस के प्लांट भी लगे; क्योंकि उन्हें सरकार की तरफ से बनवाया जा रहा था। लेकिन धीरे-धीरे गोबर-गैस के वो प्लांट समूल रूप से नष्ट हो गये। उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त में मिले गैस सिलेंडर भी आज गाँवों के अधिकतर घरों में हैं। लेकिन शुरू से ही लोगों को अपने पैसे से सिलेंडर भराने पड़ रहे हैं। केवल लॉकडाउन के समय तीन महीने मुफ्त में सिलेंडर भरे गये थे। इस बारे में कुछ ग्रामीणों से बात करने पर कई ऐसी बातें और परेशानियाँ निकलकर सामने आयीं, जिन पर सरकार को भी विचार करना चाहिए।

क्या कहते हैं लोग

उज्ज्वला सिलेंडर भराने, न भराने के बारे में पूछने पर मीरगंज क्षेत्र के गाँव रसूलपुर के श्याम सिंह कहते हैं कि गाँवों में हर आदमी के पास इन दिनों परेशानी है। बाहर रोज़ी-रोटी कमा रहे बहुत-से लोग इस समय खाली बैठे हैं। मज़दूरों की इतनी आमदनी नहीं होती कि वे हर महीने करीब साढ़े सात सौ की गैस भरा सकें। किसानों पर वैसे ही आफत आयी हुई है। पहले सिलेंडर सस्ता था, कुछ लोग बाहर रहकर पैसा भी कमा रहे थे, तब ज़्यादातर घरों में सिलेंडर भरा लिये जाते थे। अब सिलेंडर भी बहुत महँगा है और कमायी भी नहीं है, तो सिलेंडर कहाँ से भराएँ। अंगनलाल ने इस बारे में कहा कि भैया! सरकार ने सिलेंडर तो दे दिये और गैस महँगी कर दी। हम तो मज़दूर आदमी ठहरे। अकेले कमाते हैं, तो पाँच लोग रोटी खाते हैं। ऐसे में सिलेंडर-बिलेंडर कौन भराये?

हमारे वश की बात तो है नहीं। गाँवों में पंडिताई का पेशा करने वाले कस्बा निवासी रामअवतार आर्य कहते हैं कि जो परिवार सम्पन्न हैं, केवल वे ही दोनों टाइम गैस की रोटी खाते हैं। हम जैसे मध्यम परिवारों में एक सिलेंडर भराने के बाद उसे बहुत खास मौके पर ही उपयोग में लाया जाता है; जैसे मेहमान आ जाएँ तो। लेकिन गरीबों के लिए तो सिलेंडर भराना मोटरसाइकिल में पेट्रोल भराने के जैसा है। सरकार हर महीने सिलेंडर के दाम बढ़ा देती है। उसे सोचना चाहिए कि गाँव के लोग अभी उतने सम्पन्न नहीं है कि वे शहरी लोगों की तरह अच्छा जीवन जी सकें। अब तो सब्सिडी भी नहीं आती। पहले की अपेक्षा अब दो से ज़्यादा महँगा सिलेंडर हो गया। बिजली पहले ही महँगी हो रखी है। पेट्रोल, डीज़ल सब तो महँगा है। गाँवों में अधिकतर लोग या तो किसान हैं या मज़दूर। यहाँ नौकरीपेशा 10 फीसदी भी नहीं हैं। ऐसे में किसके वश की बात है कि वह सिलेंडर भराये? किसान खेत में पानी के देने के लिए ट्रेक्टर से जुताई करने और इंजन से पानी देने में ही हाँफ जाता है। अब तो डीज़ल इतना महँगा है कि अपने ही ट्रैक्टर से जुताई बहुत महँगी पड़ती है, अपने ही पम्पसेट से पानी लगाना बहुत महँगा पड़ता है। सोचिए, जो लोग सब कुछ किराये पर लाकर खेती करते हैं, उनकी क्या हालत होती होगी? ऐसे में सिलेंडर भराने की हिम्मत किसकी होगी? जबसे कोरोना आया है, तबसे तो वैसे भी लोगों की रोज़ी-रोटी पर संकट मँडराने लगा है। अब सरकार कह रही है कि नया कोरोना आ गया है। समझ में नहीं आता कि नया कोरोना ही आया है या लोगों की खाल उतारने की तैयारी की जा रही है! कभी-कभी सियासी लोगों पर विकट गुस्सा आता है। लेकिन हम क्या कर सकते हैं? हम गाँव वालों की न तो कोई सुनने वाला है और न ही हम सरकार के खिलाफ जा सकते हैं। दो मिनट में पुलिस डंडे मारकर सीधा कर देगी; चाहे हम कितनी भी सही बात करें।

कुछ को नहीं मिले कनेक्शन

हालाँकि इस बात की हम पुष्टि नहीं कर रहे, लेकिन कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि उज्ज्वला योजना के तहत ऐसे भी कुछ परिवार हैं, जिन्हें सिलेंडर ही नहीं मिले। इनमें अधिकतर परिवार वे हैं, जिनके गैस कनेक्शन पहले से थे या जिनके बड़े परिवार हैं और उनके घर में दो या दो से अधिक चूल्हे जलते हैं। प्रेमवती बताती हैं कि उनके परिवार में उनका बेटा और बहू हैं। जब गैस कनेक्शन मिल रहे थे, तब वे अपने बेटे के साझे थीं। तब उन्होंने बहुत कहा प्रधान से कि उन्हें अलग कनेक्शन दिलवा दें, पर किसी ने नहीं सुनी। अब अगर कल को बहू-बेटा अलग हो जाएँ, तो उन्हें तो बुढ़ापे में दोनों बेरा (समय) चूल्हा ही फूँकना पड़ेगा। हमारे पास उज्ज्वला के एक सिलेंडर के अलावा बड़ा सिलेंडर तो छोड़ो, छोटा भी नहीं है। गाँव के एक व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि सच्चाई तो यह है कि प्रधान और दूसरे सियासी लोगों से जिनके सम्बन्ध अच्छे थे, उनके घरों में हर औरत के नाम कनेक्शन हुए हैं और जिनके सम्बन्ध प्रधान से या दूसरे सियासी लोगों से अच्छे नहीं थे या थे ही नहीं, उनमें या तो एक कनेक्शन हुआ है या तो कनेक्शन ही नहीं मिला है।

यह बात कितनी सच है? हम नहीं कह सकते। लेकिन गाँवों में इस तरह की बहुत-सी शिकायतें लोगों के पास हैं। एक व्यक्ति ने तो यह तक आरोप लगाया कि गैस कनेक्शन में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि चाहे शौचालय हो या प्रधानमंत्री आवास योजना सबमें या तो अपने-पराये को देखकर सुविधाएँ दी गयी हैं या फिर धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव बरता गया है।

किसी-किसी परिवार में कई-कई कनेक्शन

बता दें कि जब उज्ज्वला योजना के कनेक्शन दिये गये थे, तब किताब के नाम पर सभी से सौ-सौ रुपये लिये गये थे। हर परिवार को एक सिलेंडर, एक रेगुलेटर, एक पाइप और एक चूल्हा दिया गया था। लेकिन लोगों का कहना है कि इस गैस कनेक्शन में कुछ जगहों पर अपने-पराये का भेदभाव देखने को मिला था। यह बड़े अफसोस की बात है कि लोगों को जो कनेक्शन सरकार ने हर परिवार मतलब हर दम्पति को दिये थे, उनमें भी बंदरबाँट जैसी स्थिति के बारे में कुछ लोगों ने बताया। गाँव के एक पढ़े-लिखे और गाँव की गतिविधियों पर नज़र रखने वाले व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि देखिए, गाँवों में हर सरकारी योजना में बड़े पैमाने पर धाँधली होती है। उज्ज्वला योजना में भी खूब धाँधली हुई। इस योजना के तहत हुए गैस कनेक्शनों में देखने को मिला कि जिसके सम्बन्ध प्रधान या दूसरे पहुँच वाले लोगों से थे, उन्हें ज़्यादा लाभ मिला और जिनके सम्बन्ध नहीं थे, उन्हें या कम लाभ मिला या मिला ही नहीं। ऐसे में कई परिवार तो ऐसे हैं, जिनके संयुक्त परिवार में जितने दम्पति जोड़े हैं, उतने ही सिलेंडर मतलब कनेक्शन उन्हें मिल गये। लेकिन कुछ ऐसे भी परिवार हैं, जिनके सम्बन्ध प्रधान या दूसरे सियासी लोगों से नहीं हैं, उनके संयुक्त परिवार में एक ही कनेक्शन दिया गया, जबकि इनमें कई परिवार में दो से तीन-चार दम्पति जोड़े तक हैं। कभी-न-कभी तो  संयुक्त परिवार अलग होंगे ही न! तब क्या उन्हें और कनेक्शन मिलेंगे? उन्होंने कहा कि गाँवों में तकरीबन हर योजना में खूब धाँधली होती है, लेकिन उसकी कोई जाँच नहीं होती; क्योंकि भ्रष्टाचार का जाल नीचे से ऊपर तक फैला हुआ है। उन्होंने तो यह तक कहा कि गाँवों के विकास के लिए आने वाले सरकारी बजट तक का यहाँ बंदरबाँट होता है। इसकी जाँच होनी चाहिए, पर जाँच करे कौन?