शेखावाटी के सुर्खाब

सहज ही विश्वास करना मुश्किल है कि प्रख्यात उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला कलकत्ता में जूट की दलाली करते हुए शिखर पर पहुँचे थे। पीछे मुडक़र देखें, तो यह भारत में सबसे मुश्किल औद्योगिक रोमांस था। यह कोई मिथ्या वृतांत नहीं है, बल्कि एक ऐसी कहानी है, जो उम्मीदों के साथ खेलने की ज़िद से जुड़ी हुई है। उनकी प्रगति की दास्तान दुरूह परिस्थितियों में अपने लक्ष्य पर संधान की एकाग्रता को सामने लाती है। इन्हें बँधे-बँधाये रास्तों की बजाय नयी पगडंडियों ने ज़्यादा उत्साहित किया। उनका संघर्ष ज़िद की धुरी पर टिका था। शूरवीर शेखाजी की धरती शेखावाटी ने घनश्याम दास बिड़ला सरीखे अनेक नायाब नगीने दिये, जिनमें ऊर्जा थी; युक्तियाँ थीं और थी दूरदृष्टि। इन्होंने अपनी जड़ों को नहीं भुलाया। रेतीले टीबों (टीलों) को भी नहीं भुलाया, जिनकी छत्रछाया में उनका बचपन बीता। इन नगीनों ने अपने महिमा मण्डन की अपेक्षा अपनी धरती का महिमा मण्डन किया।

ये ठेठ कारोबारी नहीं थे, बल्कि सामाजिक सरोकारों के संवाहक भी थे। इन्होंने सामाजिक और औद्योगिक प्रगति का ऐसा पहिया चलाया, जो आज भी अपनी रफ्तार की धार पर टिका हुआ है। औद्योगिक हलकों में नामवर ये लोग सत्ता सम्बन्धों में भी शिरोमणी बने और आॢथक तथा संस्कृति के मोर्चो पर भी एक नयी धारा का सूत्रपात करने वाले भी। इन्होंने साबित कर दिखाया कि पूँजीवाद की धरती पर भी सामाजिक आदर्शों के दरख्त उगाये जा सकते हैं। पिलानी में श्रेष्ठतम शैक्षिक संस्थान की पौध रोपी, तो उद्देश्य स्पष्ट था कि भविष्य में उद्योगों को हुनरमंदों का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। इन्होंने गाँवों, कस्बों में पूरी तरह शैक्षिक संस्थानों की फसल लहलहा दी। जयपुरिया आई हॉस्पिटल सरीखे ढेरों अस्पताल इन उद्योगपतियों के स्वास्थ्य सेवा के प्रति समर्पण की तस्दीक करते हैं। उद्योगों की इबारत चाहे इन्होंने मुम्बई में गढ़ी अथवा कलकत्ता में, लेकिन इन्होंने क्षेत्र के लोगों के लिए रोज़गार सृजन का कोई मौका नहीं छोड़ा। इनके प्रबन्धन का सीधा सरोकार नैतिकता और माटी के कर्ज़ से जुड़ा रहा। यही वजह रही कि इन धन्नासेठों ने अपनी जन्म भूमि में अपने दायित्वों की  प्रतिध्वनि को यथावत बनाये रखा। शेखावाटी आज अगर शैक्षिक संस्थानों से सरसब्ज़ है, तो इसलिए कि दायित्वों को भूलने की तिजारत इन्होंने नहीं की और पूरी लय के साथ सक्रिय बने रहे। रचनात्मकता के आयुधों से लदे-फँदे इन शिखर पुरुषों ने हर जगह, हर मौके पर खास मकाम बनाया। इनके पास गर्व करने को बहुत कुछ था, किन्तु गर्वीली भाव-भंगिमा को इन्होंने अपने पास तक फटकने नहीं दिया। इनका संघर्ष प्रतिरोधों के इतिहास में अपने आप में अपवाद था। इन औद्योगिक महाशक्तियों ने जो इतिहास रचा, उसकी प्रेरणा और प्रतिध्वनि इन्हें विरासत में नहीं मिली, बल्कि इसे अपनी रचनात्मक क्षमता से अॢजत किया; सहेजा और सींचा। इन कहानियों को समझने के लिए हमें संचित ऊर्जा के स्रोत को टटोलना होगा। महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि आॢथक शक्ति बनने की आकांक्षा रखने वाले ये महाबली शायद ही किसी अग्नि परीक्षा गुज़रने में पीछे रहे होंगे। यह असाधारण पड़ताल इसका समीचीन लेखा-जोखा प्रस्तुत करती है।

उद्योगों के सरताज राहुल बजाज 

शेखावाटी के कीॢत-कलशों का इतिहास बाँचने से पहले राहुल बजाज के वाणिज्य व्यवहार को समझ लेना युक्तिसंगत होगा। शेखावाटी के महाबली सुदूर प्रांतों में जाकर व्यावसायिक इतिहास गढऩे में ही नहीं लगे रहे। अपितु उन्होंने आधुनिक भारत की राजनीति को भी प्रभावित किया। स्वातंत्र्योत्तर भारत में उस दौर की आॢथक और व्यावसायिक स्थितियों से तालमेल बनाते हुए जिस तरह से राष्ट्रधर्म का निर्वाह किया, उनमें जमनालाल बजाज का नाम हमेशा सुॢखयों में रहेगा। आज उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे राहुल बजाज। राहुल आज बेशक अलग परिस्थितियों में नायक बने हैं। लेकिन केवल पूँजीवादी विकास की अन्धी दौड़ में शामिल रहने वाले रेसर वह कभी नहीं रहे। महात्मा गाँधी जमनालाल बजाज को पुत्रवत् मानते थे। राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति गहन अनुराग ने ही उन्हें राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के गठन के लिए प्रेरित किया। खादी और ग्रामोद्योग के प्रति उनकी गहन निष्ठा रही। गो-संवद्र्धन के प्रति उनकी आस्था इन्हीं शब्दों में समझी जा सकती है- ‘अगर हमें गाय को जीवित रखना हैं, तो उसकी सेवा में प्राण खोने का संकल्प ले लेना चाहिए।’

जमनालाल बजाज ने वर्ष 1931 में जयपुर राज्य प्रजामंडल की भी स्थापना की। पद लोलुपता से दूर बजाज ने अपनी पत्नी को लिखे गये पत्र में अपनी भावना प्रकट करते हुए कहा- ‘मेरी संतानें मेरे कारण कोई पद अथवा प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं करें।’

राहुल बजाज जमनालाल बजाज के पोत्र हैं। हॉवर्ड यूनिवॢसटी से शिक्षित राहुल बजाज ने देश की सबसे बड़ी कम्पनी बजाज ग्रुप की स्थापना की। भारत के राष्ट्रपति ने वर्ष 2017 में उन्हें लाइफ टाइम अवॉर्ड से सम्मानित किया। अपनी व्यावसायिक ज़रूरतों और व्यस्तताओं में सिमटने की बजाय राहुल बजाज ने कल्याणकारी गतिविधियों को जीवन मंत्र बना लिया। संस्कार और सरोकारों के प्रति प्रतिबद्धता के मद्देनज़र उन्होंने 100 करोड़ रुपये की राशि का निवेश करते हुए विभिन्न ट्रस्ट बनाये, ताकि जनकल्याण की विभिन्न योजनाओं को आकार दिया जा सके। लक्ष्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को उनका जुनून ही कहा जाना चाहिए कि उनकी छवि सतत् प्रवाहमान उदार उद्योगपति की बन सकी।

शिक्षा को दक्षता और प्रवीणता में पिरोये रखने के लिए अपने दादा द्वारा वर्धा में स्थापित शिक्षा मण्डल के संरक्षण में दो कॉमर्स कॉलेज और एक साइंस कॉलेज की स्थापना की। वर्धा में स्थापित कृषि विश्वविद्यालय आज उत्कृष्टता के पायदान पर माना जाता है। कौशल विकास की सार्थकता को प्रमाणित करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे तीन औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र अपनी कहानी खुद कह देते हैं। महिला शिक्षा के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए उन्होंने जानकी देवी बजाज की स्मृति में अनेक कॉलेज खुलवाये हैं।

शैक्षिक संस्थाओं के गठन को लेकर बजाज केवल उद्योगपति नहीं रह जाते अपितु एक सामाजिक सरोकारी व्यक्ति के रूप में सामने आते हैं। जानकी देवी बजाज ग्राम विकसित संस्था ने ग्रामीण क्षेत्रों में महिला शिक्षा की अलख जगाने का काम बखूबी किया। बजाज शैक्षिक संवद्र्धन के साथ स्वास्थ्य के प्रति भी समान रूप से सजग रहे। बजाज समूह द्वारा औरंगाबाद में निर्मित कमलनयन बजाज अस्पताल चिकित्सीय सुविधाओं की दृष्टि से देश में अव्वल माना जाता है। इस संस्था के माध्यम से जल संरक्षण, कृषि उत्पादन बढ़ाने तथा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी बखूबी काम किया जा रहा है।

स्टील किंग लक्ष्मी मित्तल  

दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में शुमार किये जाने वाले लक्ष्मी प्रकाश मित्तल चुरू ज़िले के राजगढ़ कस्बे के रहने वाले हैं। मित्तल विश्व की सबसे बड़ी स्टील उत्पादन कम्पनी आर्सेलर के सीईओ हैं। खेल और शैक्षिक क्षेत्र के बरअक्स उनकी उपलब्धियाँ अद्वितीय मानी जाएँगी। राजस्थान सरकार के साथ भागीदारी में जयपुर में एलएनएम इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉरमेशन एंड टेक्नोलॉजी की स्थापना एक दुर्लभ वृतांत की रचना की तरह माना जाएगा। उन्होंने शैक्षणिक क्षेत्र में मील का पत्थर गिने जाने वाले भारतीय विद्या भवन की भी नींव रखी। भारतीय एथलीटों के उत्साहवद्र्धन के लिए 9 अरब के चैम्पियनशिप ट्रस्ट की स्थापना उनके खेलों के प्रति आवेग की तस्दीक करती है। लक्ष्मी मित्तल ने कोविड-19 के लिए पीएम केयर्स फण्ड में 100 करोड़ रुपये का अनुदान भी दिया है।

लेक्टो वेजीटेरियन मित्तल की जीवन शैली उनकी शिख्सयत के नये पहलू से परिचित कराती है। लंदन स्थित केंङ्क्षसग्टन पैलेस गार्डन में उनके आवास ताज मित्तल में ताजमहल के निर्माण में उपयोग में लाये गये संगमरमर का उपयोग किया गया। दिल्ली में अब्दुल कलाम रोड पर भी उनका आवास है। इसकी कीमत 300 करोड़ बतायी जाती है। मित्तल विश्व के चौथे सबसे अमीर कारोबारी माने जाते हैं। उनकी पुत्री वनिशा मित्तल के विवाह को सबसे महँगा वैवाहिक समारोह माना जाता है।

लक्ष्मी मित्तल पहले शख्स हैं, जो 2005 के दौरान फोब्र्स की रेटिंग में विश्व में तीसरे सर्वाधिक अमीर व्यक्ति शुमार किये गये। वर्ष 2007 में मित्तल यूरोपीय देशों की गणना में सबसे प्रमुख भारतीय अमीर व्यक्ति माने गये। वर्ष 2015 में फोब्र्स की गणना में उन्हें सर्वाधिक शक्तिशाली शिख्सयत माना गया। विश्व स्टील एसोसिएशन में कार्यकारिणी सदस्य रहे मित्तल क्लेवरलेक क्लीनिक के बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज में भी शामिल रहे। वर्ष 2019 में फोब्र्स ने उन्हें भारत के सर्वाधिक अमीर व्यक्तियों की पंक्ति में रखा। पद्म विभूषण से सम्मानित लक्ष्मी मित्तल ने देश के स्टील उत्पादन बाज़ार में स्टील शीट्स उत्पादन क्षेत्र पर कब्ज़ा करके इस क्षेत्र में नयी क्रान्ति की शुरुआत कर दी। स्टील किंग माने जाने वाले लक्ष्मी मित्तल का आॢथक साम्राज्य लगभग 18.6 बिलियन यानी 1,860 करोड़ रुपये का है। ऊषा मित्तल से विवाहित लक्ष्मी मित्तल के दो संतानें हैं- बेटी वनिशा मित्तल और बेटा आदित्य मित्तल।

जिंक किंग अनिल अग्रवाल

जिंक कारोबार की बादशाहत से परे हटकर अनिल अग्रवाल की शिख्सयत के अन्य पहलुओं की पड़ताल करें, तो समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के साथ पारदर्शी विचारों ने उन्हें एक बेहतरीन कारोबारी के साथ-साथ एक सामाजिक पुरुष के साँचे में भी ढाल दिया। मूलरूप से शेखावाटी के रींगस कस्बे के रहने वाले अनिल अग्रवाल के भीतरी प्रवाह ने उन्हें सामाजिक सरोकारों से भी जोड़े रखा। अपनी कम्पनी वेदांता फाउण्डेशन के साथ केंद्र सरकार की साझेदारी में आँगनबाड़ी की तर्ज पर अत्याधुनिक ‘नंदघर’ को जन्म दिया। कारोबार की पूर्णत: को वह व्यापक कल्याण की दिशा में प्रेरित होने पर ही मानते हैं। कॉरपोरेट शिख्सयत के रूप में मित्तल कहते हैं- ‘दर्प की अपेक्षा सामाजिक पेरोकार बनना अधिक महत्त्वपूर्ण है।’

व्यावसायिक ऊँचाइयाँ छूने के साथ सामाजिक दायित्वों का आकर्षण उन्हें बराबर खींचता रहा। उन्होंने अस्पताल और शैक्षणिक संस्थानों को खोलने केे अतिरिक्त पर्यावरण संरक्षण  पर 49.0 मिलियन की भारी-भरकम राशि खर्च की। व्यावसायिक व्यक्ति की स्वाभावगत मर्यादाओं से अलग हटकर अग्रवाल ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने, बाल कल्याण कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने तथा शैक्षणिक गतिविधियों को सम्बल देने में भी पर्याप्त रुचि दिखायी। उदारता के लिए बहुचॢचत रहे अग्रवाल अब तक 1796 करोड़ विभिन्न संस्थाओं को अनुदान दे चुके हैं।  कोविड-19 के पीएम केयर्स फण्ड में 101 करोड़ रुपये दान कर चुके अग्रवाल ने 100 करोड़ और देने की घोषणा की है।

अग्रवाल की रिसोर्सेज लिमिटेड खनिज के क्षेत्र में वैश्विक कम्पनी है। इसका मुख्यालय लंदन में है। वेदांता ने उड़ीसा और पंजाब में अपने पॉवर स्टेशन भी विकसित कर रखे हैं। खनिज के क्षेत्र में वेदांता को भारत की सबसे बड़ी कम्पनी होने का श्रेय प्राप्त है। वेदांता लंदन स्टॉक एक्सचेंज की अनुसूची में भी दर्ज है।

कारोबारी सिंघम कुमार मंगलम बिरला

शेखावाटी के पिलानी कस्बे के रहने वाले कुमार मंगलम बिरला देश के सबसे बड़े औद्योगिक घरानों में शुमार किये जाते हैं। कोविड-19 में पीएम केयर्स फण्ड में 500 करोड़ की आॢथक मदद दे चुके कुमार मंगलम महाराष्ट्र सरकार को कोरोना मरीज़ों को क्वारंटाइन रखने के लिए अपना एक अस्पताल भी दे चुके हैं।

कुमार मंगलम का प्रतिष्ठान आदित्य बिरला ग्रुप कॉर्बन, रसायन वस्त्र, बैंक बीमा तथा अलोह धातुओं सहित अनेक कारोबारों से जुड़ा हुआ है। 28 साल की नाकाफी उम्र में आदित्य बिरला ग्रुप के चेयनमैन बन जाने वाले कुमार मंगलम 1995 में कम्पनी का टर्न ओवर दो खरब तक पहुँचा चुके थे। जबकि आज इस कम्पनी का टर्न ओवर 48.3 खरब पर पहुँच चुका है। उनकी गिनती व्यावसायिक क्षेत्र के शिखर पुरुषों में होती है। कुमार मंगलम बिरला दिल्ली स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के चेयरमैन होने के अलावा बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस संस्थान के चांसलर भी हैं। नीरजा बिरला से विवाहित कुमार मंगलम को ‘बिजनेस ऑर्डर अवॉर्ड, ग्लोबल लीडिरशिप अवॉर्ड से भी नवाज़ा जा चुका है। न्यूज चैनल एनडीटीवी भी इन्हें प्रॉफिट बिजनेस लीडरशिप अवॉर्ड से अलंकृत कर चुका है। कुमार मंगलम प्रखर शिक्षा शास्त्री भी हैं। लंदन बिजनेस स्कूल द्वारा इन्हें मानद सदस्यता प्रदान की जा चुकी है।

जुनूनी शिख्सयत अजय पीरामल

ऊर्जावान शिख्सयत किसी भी क्षेत्र में असाधारण बुलंदियों पर पहुँच सकती है। शेखावाटी में बगड़ कस्बे के अजय पीरामल ऐसी ही जुनूनी शिख्सयत हैं। 22 साल की नाकाफी उम्र में ही उन्होंने अपना पैतृक व्यवसाय सँभाल लिया था और पीरामल औद्योगिक समूह के चेयरमैन बन गये। आज विश्व के 30 देशों में इस उद्योग की उपस्थिति अजय पीरामल की व्यावसायिक क्षमता को मोहरबंद करती है। हालाँकि इस आलेख में हम उनके जीवट के चुनिंदा पहलुओं को ही छूने को प्रयास कर रहे हैं। लेकिन उनकी व्यावसायिक उपलब्धियाँ उनकी सक्रियता में तब सोने जैसी चमक भर देती हैं, जब कहा जाता है कि विश्व के 100 से ज़्यादा बाज़ारों में उनकी कम्पनी के उत्पाद देखने को मिल जाएँगे।

सामाजिक सरोकारों के प्रति उनके रुझान को देखें, तो अजय पीरामल ‘अन्नमित्रा’ सरीखी संस्था की सलाहकार समिति के सदस्य हैं, जो हर रोज़ सवा करोड़ लोगों को टिफिन के ज़रिये भोजन पहुँचाती है। उनके पुत्र आनन्द पीरामल उद्योगों के महाबली मुकेश अंबानी की पुत्री ईशा अंबानी से विवाहित हैं।