शंकरानंद की कविताएँ

कमाया हुआ पैसा

इन दिनों सबसे ज्यादा कठिन है उस पैसे को बचाना

जो बहुत मुश्किल और मेहनत के बाद जेब में आता है

पहले तो उसे पाने के लिए दिन रात सोचना पड़ता है

कि पता नहीं कब आएगा

आएगा भी कि नहीं इसका भी डर बना रहता है हमेशा

क्योंकि वैसे लोग कम नहीं हैं जो दूसरों के पैसे हड़प लिया करते हैं

और भनक तक नहीं लगने देते

जो रोज कमाते हैं वे इसके शिकार सबसे ज्यादा हैं

क्योंकि उन्हें इस खेल के बारे में कुछ नहीं पता

कि जो पैसा उन्होंने बचत के लिए खाते में रखा था कुछ दिन पहले

वह शून्य पर कैसे पहुंच गया है जबकि उन्होंने एक पैसा नहीं निकाला था बैंक से

जब वह पता करना चाहता है तो हर आदमी समय नहीं होने का बहाना करके

उसे भेज देता है दूसरे के पास और कोई जवाब नहीं देता

खीझ कर जब वह पूछता है कि मेरा पैसा कहाँ गया तो

उसे बता दिया जाता है कि बैंक का नया नियम है उसके अनुसार

आपके खातें में जो राशि थी वह रखे जाने की न्यूनतम राशि से बहुत कम थी

इसीलिए वह पैसा आपके खाते से काट लिया गया

आगे से इस बात का ध्यान रखिएगा तभी बच पाएगा आपका पैसा

पसीना पोंछते हुए वह ये सोचकर निकल गया बाहर कि

आखिर वह जो कमाता है तो किसके लिए कमाता है

खुद जिन्दा रहने के लिए कि दिवालिया होते बैंक को जिन्दा रखने के लिए!

 

पिता का दु:ख

कितना अजीब लगता है बात करने पर

जब वे एक पिता कहते हैं कि किसी रात जब सोएंगे तो

नहीं जागेंगे अगली सुबह फिर से जीने के लिए

हो सकता है कि वे मुश्किल में हों ऐसा कहते समय

पर अगर आंखों के उनके स्वप्न सूख गए तो ये उनका गुनाह नहीं है

गुनाह उसका है जिसने छीन ली उनकी आँखों की शांति

और जीना दूभर कर दिया है नाउम्मीद होने की हद तक

हो सकता है कि ये छीनने वाला कोई और नहीं

उनका सबसे प्यारा बच्चा हो!

 

अंधेरे में बैठने वाले लोग

वे किस मिट्टी के बने लोग हैं जो अंधेरे में बैठना चाहते हैं हमेशा

अगर बत्ती जलती है तो लौ एकदम कम कर देते हैं

बल्व जलता है तो बुझा देते हैं इस तरह कि

बाहर से देखने वाला कोई भी यही सोचेगा कि घर में बिजली नहीं है

वे उसी अंधेरे में बैठते हैं हमेशा और जरा भी अजीब नहीं लगता

उसी में खाते हैं चाय पीते हैं हाथ धोते हैं खाने के बाद और

तौलिए से पोंछ लेते हैं उस उस जगह

जहाँ उन्हें लगता है कि पानी अब भी लगा हुआ है हाथ में

ये उनकी बीमारी नहीं है या उन्हें रोशनी से डर नहीं लगता

बस यह एक आदत है जो बिगड़ती जा रही है लगातार

मैं यह सोचकर कांप उठता हूँ कि

आज जो एक मामूली वजह से कि उन्हे अंधेरे में रहना अच्छा लगता है

वे जहाँ बैठते हैं वहीं अंधेरा कर लेते हैं

कहीं यह उनकी कमजोरी न बन जाए इस तरह कि

वे रोशनी देखकर भय से सिहर जाएं!

 

थकान

मैं दस कदम तेज चलता हूँ और थक जाता हूँ

बोलता हूँ थोड़ी देर जोर से तो कंठ में फंसने लगती है आवाज

एक घड़ी बीज रोंपता हूँ तो दर्द करता है घुटना

न देर तक सो पाता हूँ न बैठ पाता हूँ एक ही जगह जमकर

देर तक लिखता हूँ तो दुखती हैं उंगलियां

पढ़ता हूँ तो आँखें परेशान हो जाती हैं

कमीज की सिलवट ठीक करने के लिए इस्त्री करता हूँ तो दुखती है कमर

हर बार सोचता हूँ कि अब आज निपटा दूंगा सारे काम

तभी जवाब देने लगती है देह

फिर सोचता हूँ कि ये एक दिन का काम तो है नहीं कि

किसी तरह खत्म कर दिया जाए

ऐसे में कुछ भी करता हूँ तो यही लगता है कि अधूरा रह गया

अभी और करना बाकी है जिसे पूरा

और थकान है कि वह जाती ही नहीं एक पल दूर

जब मैं परेशान रहता हूँ रोज रोज की थकान से तो यही सोचता हूँ कि

आखिर हत्यारों को क्यों नहीं सताती है ये थकान!

 

दीवाल का होना

मेरे दादा के बनाए घर अब उतने ही पुराने हैं जितने कि वे

और उनकी बनवाई खिड़कियां और दरवाजे तो उनसे भी पहले के

जबकि वे लकडिय़ां नहीं किसी जंगल में पेड़ हुआ करती होंगी

तब से अब तक न जाने कितने साल बीत गए और

दादा की तरह ही कमजोर और जर्जर होता गया उनका बनाया घर

जिसमें रहना दिनोंदिन और मुश्किल होता गया

मैंने सोचा उस घर को तोड़ कर बनाया जाए नए तरीके से

जब तोड़ा जाने लगा घर तो वह और जगह से तो टूट गया आसानी से

पर दीवाल उसकी टूट नहीं पा रही थी जो हद से ज्यादा मोटी थी

लोगों ने कहना शुरु किया कि जब इतना मजबूत था तो

घर तोडऩे की क्या जरूरत थी

मैंने उन्हें तब समझाया कि घर तो यह इतना कमजोर है

कि इससे चूता है पानी झड़ता है पलस्तर गिरता है चूने का भुरभुरा रंग

बस इसकी दीवाल दुनिया की तमाम दीवालों की तरह मजबूत है

जो गिरना नहीं चाहती मैं उसे किसी भी हाल में गिरा देना चाहता हूँ

फिर से दीवार खड़ी करने के लिए नहीं

उस दीवार की जगह घर बनाने के लिए जहाँ सुकून के साथ मिलकर रहा जाए।

 

पानी के बाद

कल एक स्त्री अपने बच्चे के बारे में बता रही थी कि

चाहे कुछ भी हो जाए इसकी आँख में आँसू नहीं आते हैं

अगर कोई मर भी जाए तो देखता रहता है बस एकटक

मुझे लगा वो झूठ बोल रही होगी

पर कुछ ही देर उसके साथ सफर करने के बाद पता चल गया कि

अगर आँख का पानी सूख जाए तो मनुष्य के पास कुछ नहीं बचता

वह स्त्री कह रही थी कि एक दिन उसका बेटा उसे छोड़ कर चला जाएगा

भूल जाएगा उसे हमेशा के लिए जैसे थी ही नहीं

कभी नहीं आएगा वापस जैसे दूसरी माँओं के बेटे मिलने आते हैं

उस स्त्री का सबसे बड़ा डर उसके जीने को लेकर था कि पता नहीं

कैसे बीतेगा उसका जीवन आँख के पानी के सूख जाने के बाद

वह किस हद तक बर्बर हो जाएगा कोई नहीं जानता!

सम्पर्क-क्रांति भवन, कृष्णा नगर,खगडिय़ा