विश्व मलेरिया रिपोर्ट-2020: भारत में कम हो रहे मलेरिया के मामले

सुधार के बावजूद मलेरिया के मामलों में भारत दक्षिण पूर्व एशिया में अग्रणी बना हुआ है, भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में तत्काल अधिक-से-अधिक सुधार की है ज़रूरत

विश्व जनसंख्या के हिसाब से अगर देखें, तो जनसंख्या घनत्व के मामले में भारत का हाल किसी घनी आबादी वाली बस्ती से कम नहीं है। यही कारण है कि यहाँ अनेक तरह की बीमारियों ने पाँव पसार रखे हैं। हाल ही में कोरोना वायरस के संक्रमण से फैली महामारी में काफी कोशिशों के बावजूद भी यहाँ लाखों लोग संक्रमित हो गये थे। लेकिन कुछ पुरानी और खतरनाक बीमारियाँ और भी हैं, जिनके चलते भारत के अस्पतालों में मरीज़ों का तांता लगा रहता है। हाल यह है कि देश में एम्स समेत साढ़े तीन हज़ार से अधिक सरकारी और इनसे तकरीबन 10 गुना ज़्यादा प्राइवेट अस्पताल होने के बावजूद कई अस्पतालों में बेड की कमी है। देश के कई राज्यों में तो सरकारी अस्पतालों में मरीज़ों को बेड तक नहीं मिलते और कई अस्पतालों में एक-एक बेड पर तीन-तीन मरीज़ तक रखे जाते हैं। डॉक्टरों से पूछो, तो वे अपनी मजबूरी बताते हैं; प्रशासन से पूछो, तो इसका कोई जवाब नहीं मिलता।

अगर हम सभी बीमारियों से पीडि़तों और उन्हें मिलने वाली सुविधाओं की बात करें, तो एक दयनीय और अफसोसजनक तस्वीर सामने आएगी। लेकिन यहाँ हम केवल मलेरिया की बात करेंगे। मलेरिया की रोकथाम के मामले में भारत ने पिछले दो साल में अच्छा प्रदर्शन किया है। यह बात विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में जारी अपनी एक रिपोर्ट में कही है। लेकिन बावजूद इसके भारत की स्थिति दक्षिण-पूर्व एशिया में अभी भी काफी दयनीय है। सन् 2018 की एक रिपोर्ट बताती है कि पूरी दुनिया के करीब 106 देशों में मलेरिया का खतरा मँडराता रहता है। इन देशों की जनसंख्या करीब 3.3 अरब है, जिसमें से हर 10वाँ आदमी मलेरिया के खतरे के साये में रहता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, मलेरिया के कारण 2012 में 6 लाख 27 हज़ार मौतें हुईं, जिनमें अधिकतर मौतें अफ्रीकी और एशियाई देशों तथा लैटिन, अमेरिका में हुई। भारत में मलेरिया के सबसे ज़्यादा मामले उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, त्रिपुरा और मेघालय और उत्तर पूर्व भारत के कई राज्यों से देखने में आये। इसी तरह सन् 2015 में दुनिया भर में मलेरिया के करीब 21 करोड़ 10 लाख मामले सामने आये, जिनमें से 4 लाख 46 हज़ार मौतें हुईं। सन् 2016 में दुनिया भर में मलेरिया के 21.60 करोड़ मामले दर्ज हुए, जिनमें करीब 4 लाख 45 हज़ार मौतें हुईं। मलेरिया पर जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन की सन् 2017 की रिपोर्ट बताती है कि भारत दुनिया के उन 15 अग्रणी देशों में शामिल है, जहाँ मलेरिया के सबसे अधिक मामले आते हैं। उस समय की एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में केवल मलेरिया से 69 फीसदी मौतें होती हैं। वहीं 2010 में रॉयटर्स द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में हर साल मलेरिया से करीब दो लाख पाँच हज़ार मौतें होती हैं। लेकिन भारत ने पिछले कुछ साल से मलेरिया पर काबू पाया है।

कितना हुआ है सुधार

पिछले ही महीने डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी विश्व मलेरिया रिपोर्ट-2020 में कहा गया है कि एशिया में मलेरिया के मामले काफी कम हुए हैं। मलेरिया के मामलों की यह रिपोर्ट 87 देशों के सर्वे के बाद जारी की गयी है। यह सर्वे नेशनल मलेरिया कंट्रोल प्रोग्राम एवं अन्य पार्टनर्स के द्वारा जारी सूचना के आधार पर की गया था। हालाँकि रिपोर्ट में 2020 के साथ-साथ 2019 का अधिकतर डाटा है। रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण-पूर्व एशिया में मलेरिया के मामलों में सबसे ज़्यादा गिरावट आयी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण-पूर्व एशिया में मलेरिया के मामलों में सबसे ज़्यादा गिरावट भारत में आयी है। रिपोर्ट बताती है कि पिछले कुछ वर्षों में मलेरिया के मामलों में 73 फीसदी गिरावट आयी है, जबकि मलेरिया से होने वाली मौतों के मामलों में 74 फीसदी की गिरावट आयी है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पूरी दुनिया में होने वाले मलेरिया के कुल मामलों में तीन फीसदी मामले दक्षिण-पूर्व एशिया में सामने आते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भारत ने मलेरिया पर तेज़ी से शिकंजा कसा है, जिसके लिए भारत की सराहना डब्ल्यूएचओ ने भी की है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में भारत में मलेरिया के मामलों में 18 फीसदी और 2020 में 20 फीसदी की कमी आयी है। वहीं यहाँ पर 2019 और 2020 में मलेरिया से होने वाली मृत्यु दर में भी काफी कमी आयी है।

पर एक निराशाजनक बात यह भी है। रिपोर्ट बताती है कि दक्षिण-पूर्व एशिया में 2019 में मलेरिया के सबसे ज़्यादा 88 फीसदी मामले भारत में ही सामने आये हैं। इतना ही नहीं यह रिपोर्ट बताती है कि दक्षिण-पूर्व एशिया में मलेरिया से हुई कुल मौतों में से 86 फीसदी भारत में हुई हैं। लेकिन इसमें आशाजनक और खुशी की बात यह है कि भारत में ही मलेरिया के मामलों में सबसे ज़्यादा गिरावट भी दर्ज की गयी है। उम्मीद की जाती है कि अगर भारत ने इसी रफ्तार से मलेरिया पर काबू पाया, तो आने वाले कुछ वर्षों में मलेरिया से भारत को काफी हद तक मुक्ति मिल जाएगी।

घटने के बाद बढ़े हैं मामले

भले ही भारत सरकार ने मलेरिया की रोकथाम के लिए पिछले दो साल में काफी कुछ किया है और इसके नतीजे भी सामने आये हैं, लेकिन इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि पिछले रिकॉर्ड की अपेक्षा अब ज़्यादा मौतें हो रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक पुरानी रिपोर्ट के मुताबिक, 2001 में दुनिया भर में मलेरिया के कुल 20 लाख 9 हज़ार मामले दर्ज किये गये थे, जिनमें कुल 1,005 लोगों की मौत हुई थी। हालाँकि इससे पहले 70 और 80 के दशक में भी मलेरिया से बड़ी संख्या में मौतें हुई थीं, लेकिन 2001 के बाद धीरे-धीरे मलेरिया के मामलों और इससे होने वाली मौतों में इज़ाफा होने लगा था।

नये प्रयासों से मिल रही सफलता

मलेरिया उन्मूलन के लिए एक तरफ जहाँ डब्ल्यूएचओ ने ठोस कदम उठाये हैं, वही भारत सरकार द्वारा इस दिशा में कई नये प्रयास किये गये हैं। इन प्रयासों की वजह से मलेरिया की रोकथाम कार्यक्रम को सफलता मिलती दिखायी दे रही है।

डब्ल्यूएचओ ने मलेरिया के ज़्यादा मामलों वाले 11 देशों, जिनमें भारत भी शामिल है, में हाई वर्डन टू हाई इंपेक्ट (एचबीएचआई) नाम की पहल शुरू की है। इस पहल को सबसे पहले 2019 में भारत के चार राज्यों पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में शुरू किया गया।

बता दें कि भारत में मलेरिया उन्मूलन प्रयास 2015 में शुरू किया गया था। 2016 में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा नेशनल फ्रेमवर्क फॉर मलेरिया एलिमिनेशन (एनएफएमई) की शुरुआत के बाद मलेरिया उन्मूलन की मुहिम में काफी तेज़ी आयी, जिसके बाद धीरे-धीरे मलेरिया के मामले देश में कुछ कुछ कम होने लगे। इतना ही नहीं स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के द्वारा जुलाई, 2017 में मलेरिया उन्मूलन के लिए एक राष्ट्रीय रणनीतिक योजना की शुरुआत की गयी थी, जिसके तहत तय किया गया कि अगले पाँच साल यानी 2022 तक मलेरिया के मामलों को रोकने की भरपूर कोशिश की जाएगी। इस योजना के तहत देश में 2030 तक मलेरिया से मुक्ति का भारत सरकार का सपना है।

मलेरिया जैसी गम्भीर बीमारी पर काबू पाने के लिए हर साल 25 अप्रैल को विश्व मलेरिया दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य मलेरिया से लोगों को जागरूक और उनकी जान की रक्षा करना है। विश्व मलेरिया दिवस की स्थापना मई, 2007 में 60वें विश्व स्वास्थ्य सभा के सत्र के दौरान की गयी थी।

अब सर्दियों में भी नहीं मरते मच्छर

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मच्छरों के काटने से मलेरिया की बीमारी होती है। यही वजह है कि यह बीमारी गर्मियों और बारिश के मौसम में बहुत फैलती है। लेकिन अब सर्दियों में भी मलेरिया के मामले यदा-कदा सामने आ जाते हैं। क्योंकि अब सर्दियों में भी मच्छर काटने के लिए शरीर के पास मँडराते मिल जाते हैं। बड़े शहरों में अक्सर मच्छर अब पूरे साल ज़िन्दा रहते हैं। इसकी एक वजह शहरों में एयर कंडीशनर और प्रदूषण भी है। पहले के दौर में सर्दियों में मच्छर नहीं रहते थे। भारत में कहा जाता था कि दीपावली के बाद मच्छर खुद-ब-खुद मरने लगते हैं और कड़ी सर्दियों में तो यह बिल्कुल भी नहीं रहते। हालाँकि ऐसा नहीं होता। बस मच्छरों की संख्या सर्दियों में न के बराबर रह जाती है। लेकिन जो मच्छर बच जाते हैं, वो किसी प्रकार अपना अस्तित्व ऐसी जगहों पर रहकर बचाते हैं, जहाँ उन्हें थोड़ी गर्मी मिल सके, जैसे अँधेरी गुफाओं, कंदराओं में छिपकर। वहीं इनका लार्वा सर्दियों में गन्दे पानी में काफी समय तक सुरक्षित रह जाता है। बता दें कि मलेरिया एक प्रकार के परजीवी प्लाजमोडियम से फैलने वाला रोग है, जिसका वाहक मादा एनाफिलीज मच्छर होता है।

डीडीटी का छिड़काव ज़रूरी

पहले गाँवों से लेकर शहरों तक सरकार द्वारा साल में दो या इससे अधिक बार डिक्लोरो डिपेनिल ट्राइक्लोरोइथेन (डीडीटी) का छिड़काव कराया जाता था, लेकिन अब एक धुआँ छोड़ा जाता है, जिससे मच्छर मरते ही नहीं हैं। वो केवल इस धुएँ की धुंध से थोड़ी देर के लिए छिपकर बैठ जाते हैं और धुआँ कम होते ही फिर से सक्रिय हो जाते हैं। भारत सरकार ने सबसे पहले सन् 1953 में राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम के तहत डीडीटी का छिड़काव शुरू कराया था, जिससे मलेरिया रोगियों की संख्या कुछ कम हुई थी। फिर सन् 1958 से राष्ट्रीय मेलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किया गया, जिसके तहत डीडीटी के छिड़काव के अतिरिक्त ज्वर पीडि़त व्यक्तियों की खोज करके उनके रक्त की जाँच भी शुरू की गयी थी। सन् 1977 में पुन: राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम की संशोधित योजना लागू की गयी। इस योजना के तहत मलेरिया के मरीज़ों की खोज उनके इलाज और डीडीटी के अतिरिक्त छिड़काव की व्यवस्था की गयी। यह कार्यक्रम भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के आधे-आधे अनुदान पर चलाया जाता था। अब मच्छर पहले से काफी स्ट्रॉन्ग (परिपक्व) हो गये हैं। ऐसे में एक ऐसी दवा के हर जगह छिड़काव की ज़रूरत है, जो मच्छरों को प्रभावी तौर पर खत्म कर सके; ताकि साल 2030 तक मलेरिया को खत्म करने का सरकार का सपना पूरा हो सके।