विपक्ष ने फिर भी हौसला नहीं खोया

कांग्रेस आला कमान ने उत्तरप्रदेश की सचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को वाराणसी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लडऩे की अनुमति नहीं दी। नौका से पिछली बार जब प्रिंयका वाराणसी पहुंची थी तो उन्होंने कहा था यदि पार्टी कहेगी, पार्टी अध्यक्ष कहेंगे तो चुनाव वाराणसी से लडंूगी। लेकिन पूरे शहर और आसपास के इलाकों में हवा बंध गई कि प्रियंका वाराणसी से चुनाव लड़ेंगी। लेकिन आला कमान के राजी न होने से पूरे संसदीय क्षेत्र, विपक्षी दलों और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में उदासी छा गई।

वाराणसी से अपने पुराने कार्यकर्ता अजय राय को कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के मुकाबले फिर उतारा। हालांकि अजय राय इस बार कतई तैयार नहीं थे। लहुराबीर में अपने कार्यालय में बैठे हुए अजय राय अब कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को फिर सक्रिय कर रहे हैं। इन्हें हताशा पर काबू पाकर फिर घर-घर जाकर सक्रिय होने और मतदाताओं को मत देने के लिए प्रेरित करने में जुट गए। प्रिंयका गांधी वाड्रा ने भी उन्हें वाराणसी में लगातार सक्रिय रहने और खुद प्रचार में आने का भरोसा दिया ।

अपने कार्यकताओं के बीच अजय राय कह रहे थे, घर-घर जाइए। समझाइए, अब की उन्हें बाबा ने नहीं बुलाया।  मंा गंगा ने नहीं बुलाया। वे आए, गंगा आरती की। नामांकन पत्र दाखिल किया और लौट गए। यहां की समस्याएं क्या निपटीं। बाबा के दरबार में जाने के लिए पुरानी ऐतिहासिक गालियों को ध्वस्त कर मैदान बना दिया। क्या बाबा खुश हैं? क्या उनकी महत्ता बढ़ी। क्या फिर बाबा ने उन्हें विकास के लिए बुलाया है? मां गंगा क्या भव्य आरती से खुश  हो गई? पांच साल बीते आज भी वैसी ही गंदगी? क्या गंगा अब आधुनिक छोटे जहाज़ों के आने के बाद यहां के मल्लाहों पर रोजी-रोटी का संकट नहीं गहराया? क्या बनारस और आस-पास के लघु हस्तशिल्प उद्योग का विनाश पिछले पांच साल में नहीं हो गया। क्या उसे और भी बर्बाद होने में काशी की जनता साथ देगी।

एक अच्छी बात हुई कि अब अजय राय के साथ दूसरी पार्टियां मसलन बसपा और सपा के कार्यकर्ता भी कांग्रेस से जुड़ रहे हैं। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की सचिव प्रियंका गांधी वाड्रा पार्टी प्रत्याशी अजय राय के साथ यहां के चुनाव प्रचार में नए सिरे से जुट रही हैं। वाराणसी की जनता और शहर कोतवाल बाबा भैरव नाथ भी शिव की नगरी में बढ़े खंडहरों की तादाद से काफी दुखी हैं। वे चाहते हैं कि वाराणसी की जनता अपना अच्छा बुरा खुद तय करे। जहां मुसीबत आएगी वे रक्षा करेंगे।

वाराणसी  मेंं छोटे उद्योग धंधे, हस्तशिल्प के विकास में ठहराव से बेचैन लोग आज विपक्ष के साथ हैं। वे चाहते हैं कि विपक्ष मिल कर कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन दे। विपक्षी दलों के बड़े नेताओं की सहमति का उन्हें अब इंतजार नहीं है। वे खुद अब अजय राय के पक्ष में आ चुके हैं। गांवों और शहर के भूमिहर ठाुकर और ब्राहमण और दलित प्रिंयका के कारण अब फिर एकजुट हो रहे हैं।

मोदी की भव्य शोभायात्रा के बाद प्रदेश और देश के विपक्षी नेताओं को एक बार मिल-बैठ कर अपनी रणनीति पर सोचने का मौका मिला है। वाराणसी हमेशा आंदोलनकारियों का केंद्र रहा है। एक नई चेतना का अब विकास हो रहा है। कैसे बचाएं वाराणसी।